Friday 18 May 2012

पप्पू यादव: 'धर्मात्मा' बनने की कोशिश में 'डॉन'


पप्पू यादव: 'धर्मात्मा' बनने की कोशिश में 'डॉन'

आमतौर पर उनके दिन की शुरुआत सुबह साढ़े पांच बजे हो जाती है. सबसे पहले वे ध्यान लगाते हैं और फिर अखबारों एवं किताबों के गहन अध्ययन में घंटों गुजार देते हैं. उनका वजन 175 से 150 किलो पर आ गया है. चार बार सांसद रह चुके इस शख्स की एक समय पूर्वी बिहार में तूती बोला करती थी.

बाहुबली राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव अब पूरी तरह से बदले हुए इंसान नजर आते हैं. वे नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी से समाजशास्त्र में एमए कर रहे हैं और 2012 में बेऊर जेल से एमए की परीक्षा देने वाले एकमात्र कैदी हैं. पप्पू यादव की इन दिनों प्रथम वर्ष की परीक्षा चल रही है. वे जेल में ही अपनी कोठरी से परीक्षा दे रहे हैं. परीक्षा देते समय, एक इंविजिलेटर की मौजूदगी में पप्पू यादव उत्तर पुस्तिका के सारे पन्ने भरने की जी-तोड़ कोशिश करते हैं.



पप्पू ने जब लोकसभा में पूर्णिया और मधेपुरा सीटों का चार बार प्रतिनिधित्व किया था, तब वे सिर्फ इंटरमीडिएट पास हुआ करते थे. बाद में, तिहाड़ जेल में रहते हुए उन्होंने मानव अधिकार और आपदा प्रबंधन में डिग्री हासिल की. अब उनका ख्वाब आगे चलकर पीएचडी करना है.

अगस्त, 2010 में जमानत रद्द होने और फिर गुड़गांव के एक अस्पताल से गिरफ्तार किए जाने के बाद से यह 46 वर्षीय बाहुबली पटना की बेऊर सेंट्रल जेल में बंद है. सीपीआइ-एम के विधायक अजीत सरकार की जून, 1998 में हुई हत्या की साजिश रचने के लिए पप्पू यादव को फरवरी 2008 में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी. इस सजा के चलते वे चुनाव लड़ने के अधिकार से पहले ही वंचित हो चुके हैं.

मई, 1999 में पहली बार गिरफ्तार हुए  पप्पू यादव एक दशक से ज्‍यादा समय सलाखों के पीछे गुजार चुके हैं. अब ऐसा लगता है कि उनकी अंतरात्मा की आवाज उस पप्पू यादव पर हावी हो चुकी है, जो एक दौर में बेखौफ और बेताज बादशाह हुआ करता था.
पप्पू यादव अपनी आत्मकथा लिख रहे हैं, जिसका शीर्षक अभी तय नहीं है. जिसने भी उन्हें डायरी लिखते हुए देखा है, उसका यही कहना है कि यह आत्मकथा काफी भारी-भरकम होगी. सवाल यह है कि पप्पू को यह एहसास कब हुआ कि उनकी कलम उनकी तलवार से कहीं ज्‍यादा ताकतवर है?

जेल में उनके एक साथी बताते हैं, ''आत्मकथा लिखना अपनी प्रतिष्ठा दोबारा हासिल करने के लिए है क्योंकि पप्पू सोचते हैं कि अब उन्हें सिर्फ अपने लेखन और शैक्षणिक योग्यता के बूते ही समाज में सम्मान मिल सकता है.'' बेऊर जेल में सजा काट रहे पप्पू अध्ययन, परोपकार, वेब स्तंभ लेखन और कई अन्य सकारात्मक चीजों में शामिल हैं, जो आम तौर पर उनकी पहचान नहीं रही हैं. वे पहली बार 1990 में 25 वर्ष की उम्र में निर्दलीय विधायक बने थे.

जून, 2011 में जब पटना पुलिस ने बेऊर सेंट्रल जेल पहुंच कर पप्पू यादव की कोठरी पर अचानक छापा मारा था, तो यह पूर्व सांसद कुछ लिखता हुआ मिला था. पप्पू यादव की छवि वाले इंसान और उस पर भी जब वह जेल में रह रहा हो, के लिए यह एक बेहद असामान्य बात थी. हो सकता है पप्पू यादव को अपनी लेखन शैली में कुछ सुधार करने की जरूरत हो लेकिन वह अपनी छवि के साथ चस्पां दाग को छुड़ाने की पुरजोर कोशिशों में लगे हैं और अपनी आत्मकथा का एक-चौथाई हिस्सा पहले ही खत्म कर चुके हैं.
जेलों में उनका पिछला सफर अलग तरह का था. सितंबर 2004 में, पप्पू ने अपनी जमानत का जश्न मनाने के लिए बेऊर जेल में कैदियों को एक भव्य पार्टी दी थी. उसी साल, उसने जेलों से कोई 670 बार फोन लगाया था और इनमें से कुछ नंबर बिहार के मंत्रियों के भी थे. दिसंबर, 2004 में पप्पू जेल में समर्थकों का दरबार लगाते हुए पकड़े गए थे, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें दिल्ली की तिहाड़ जेल भेजने का आदेश दिया था. अभी तक बेऊर जेल में उनकी मौजूदगी कुछ खास घटनात्मक नहीं रही है.

खुद को अपने अतीत से बाहर लाने की पप्पू की इस कवायद ने उन्हें दूसरों की भलाई करने के लिए भी प्रेरित किया है. पिछले साल उनके संगठन युवा शक्ति के कार्यकर्ताओं ने एक प्रतिभाशाली गायिका अंशुमाला की किडनी के प्रत्यारोपण के लिए 6 लाख रु. जुटाए थे. अंशुमाला को उसके ससुरालवालों ने छोड़ दिया था.

मुसीबत में फंसे लोगों की मदद करने के पप्पू यादव के कई उदाहरणों में से यह सिर्फ एक है. कार्यकर्ताओं के योगदान के अलावा, पप्पू की पूर्व सांसद पत्नी रंजीता रंजन और पांच बहनें, उनकी दूसरों की भलाई करने की हसरतों को पूरा करते रहने के लिए अपने संसाधनों को झोंकती रहती हैं. पप्पू और उनकी पत्नी ने कुछ स्कूल और व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र भी स्थापित किए हैं, जहां गरीबों को रियायती दरों पर शिक्षा मिलती है.
बेऊर जेल की लाइब्रेरी में जितने भी अखबार मंगाए जाते हैं, पप्पू उन सब का अध्ययन करते हैं. वे गरीबों के हालात बयान करने वाले समाचारों के नोट्स बनाते हैं. हर सप्ताह, व्यक्तिगत कूरियर इन सिफारशी नोट्स को रंजीता रंजन तक पहुंचाता है. पप्पू ने पत्नी को जेल आने की मनाही कर रखी है.

यह जाहिर तौर पर उस शख्स के लिए बड़ा बदलाव है, जो अतीत में खतरनाक डॉन हुआ करता था. पप्पू के नाम का एक समय बिहार में भारी दबदबा था. नब्बे के दशक में जब अपराधी से नेता बनने वालों की छवि आसमान छूने लगी थी, पप्पू यादव तब बड़ी आसानी से हर ओर दबंगई दिखा रहे थे और लोगों को अपनी इच्छा के आगे झुकाते जा रहे थे.

इस अतीत की एकमात्र खास बात उनका खुद को रॉबिनहुड की छवि में ढालना था. अपने दबदबे के बूते, पप्पू प्रशासन को लोक-लुभावन नीतियां अपनाने के लिए मजबूर करने में सफल हो जाया करते थे. उन दिनों उनके निर्वाचन क्षेत्र में शायद ही कभी बिजली कटौती हुई हो. अपने उभार के दिनों में, पप्पू डॉक्टरों से गरीबों का मुफ्त इलाज करवाते थे, भ्रष्ट अफसरशाह उनके डर से कांपते रहते थे. वे उन खांटी जातिगत मठाधीशों के लिए भी एक मानक थे, जिन्हें बिहार के खंडित समाज ने राजनीति के केंद्र पर पहुंचा दिया था. अपने निर्वाचन क्षेत्र से संबंधित मुद्दों पर अक्सर अंतिम फैसला उन्हीं का होता था.

सीपीआइ-एम के विधायक अजित सरकार की हत्या के सिलसिले में मई, 1999 में गिरफ्तार किए जाने के बाद से पप्पू लगभग जेल में ही रहे हैं. उन्हें तीन बार जमानत मिली थी और तीनों बार सुप्रीम कोर्ट ने इसे फौरन रद्द करके उन्हें वापस जेल भेज दिया.
सीपीआइ-एम के चार बार विधायक रहे सरकार का पूर्णिया में अच्छा-खासा जनाधार था, पप्पू यादव को भी राजनैतिक ख्याति की बुलंदियों तक ले जाने वाला पूर्णिया ही था. एक विशेष अदालत में दाखिल सीबीआइ की चार्जशीट में कहा गया है कि अजित सरकार का खात्मा इसलिए करवाया गया था, क्योंकि उन्होंने 1998 के लोकसभा चुनाव में पप्पू यादव की चुनावी हार सुनिश्चित कराई थी. पप्पू को सजा सीबीआइ की इसी चार्जशीट ने दिलवाई थी. हालांकि पप्पू ने इस सजा के खिलाफ अपील कर रखी है.

पप्पू का खराब समय फरवरी 2008 में तब शुरू हुआ, जब सीबीआइ की विशेष अदालत ने उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई. मौज भरे दिनों के दोस्त पप्पू से किनारा कर गए. जल्द ही, वह गहरे आत्ममंथन की हालत में पहुंच गए और उन्हें एहसास हो गया कि उनके जीवन में सुधार की सख्त जरूरत है. पप्पू का दावा है कि उन्होंने जितने पाप किए हैं, उससे अधिक पाप उनके खिलाफ किए गए हैं; लेकिन उन्हें अब किसी के खिलाफ कोई शिकायत शायद ही हो.

जेल में अपने लंबे दौर में पप्पू बाहर से विनम्र और मृदुभाषी बने रहे. यही वह गुण है, जो उनके साथ तब से है, जब उनकी तूती बोला करती थी. लेकिन इस सारे आत्ममंथन के बावजूद कुछ बातों ने अब भी पप्पू यादव का पीछा नहीं छोड़ा है. अतीत की काली परछाइयां अब भी उनकी स्मृतियों पर मंडरा रही हैं. जिनके चलते वे बेचैन रहते हैं और नींद न आने की बीमारी से ग्रस्त हो चुके हैं. वह दिन में चार घंटे से ज्‍यादा मुश्किल से ही सो पाते हैं.

पिछले दो साल से वे बेऊर जेल में हैं और इतना ही समय उन्हें अपने बड़े होते बच्चों से मिले हुए हो गया है. वे नहीं चाहते कि उनके बच्चे उन्हें जेल में देखें. उनकी छह साल की बेटी को यह तक नहीं पता कि वे जेल में हैं. पप्पू इस पर इतना ही कहते हैं, ''भगवान दुश्मन को भी कभी ये दिन न दिखाए''.