Tuesday 14 June 2011

भ्रष्टाचार समाप्त करने का दो मूल मन्त्र



किसी भी समस्या का पड़ताल करने पर हम पाते हैं कि उसका मूलजड़ एक ही स्थान पड़ जा अटका है- नैतिक-मूल्य और नैतिक शिक्षा का अभाव| सबसे भयानक रोग  कैंसर/एड्स जो किसी भी व्यक्ति की जीवनलीला को समाप्त करता है, परन्तु भ्रष्टाचार हमारे समाज हमारी जिंदगी में शामिल होकर सवा करोड़ जनता को चपेट में लिए हुए है| दुनिया के लगभग हर मुल्क में भ्रष्टाचार से आम आदमी त्रस्त है| खास तौर पर जब से उदारीकरण का नया दौर चला, इसके बाद कॉर्पोरेट कल्चर मानव जीवन और राष्ट्रीय अर्थ व्यवस्था को सीधे-सीधे प्रभावित करने लगा| और धीरे-धीरे भ्रष्टाचार हमारी राष्ट्रीय संस्कृति बन गयी| हमारा पूरा संस्कार (व्यावहारिक रूप से) भ्रष्टाचार की जय-जयकार करने में लगा है| सोते-जागते, सांस लेते, मानो भ्रष्टाचार हमारी मूल जीवन पद्धति बन गयी हो| यदि समाज की यही स्थिति बनी रही तो वह दिन दूर नहीं जब सरकार को शिक्षा का सिलेबस बदलने होंगे और स्कूल, कॉलेज में भ्रष्टाचार स्थापित करने के लिए सब्जेक्ट में लेना मज़बूरी बन जाएंगे|

जिस देश में रावन की पूजा को ही प्राथमिकता मिले, अधर्मों को साथ देने वालों को ही महामंडित किया जाता हो, नाथू राम गोडसे की तस्वीर लगायी जाती हो, तो भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों की पूजा करने में कहाँ देर है| भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी दोनों ही मनुष्य को प्रभावित करते हैं| भारत जैसे बेमिसाल लोकतंत्र में सब कुछ संभव है| चारों तरफ हाहाकार है – भ्रष्टाचार को खत्म करो! भ्रष्टाचारियों को फांसी दो! परन्तु इस बात को लेकर चिंतन-मनन, विचार या आवाज़ नहीं उठ रही है कि भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के जन्मदाता कौन हैं? हम उस व्यवस्था को समाप्त नहीं करना चाहते हैं जो व्यवस्था इतनी बड़ी भयानक बीमारी समाज को घुन की तरह अंदर ही अंदर खाए जा रही है| हम सिर्फ कुछ-दिन के लिए जीने का उपाय ढूंढते हैं; वह भी कृत्रिम तरीके से| प्रकृति और सृष्टि से विपरीत जाकर, यह कैसे हो सकता है! इस पर विचार करना होगा| यह एक गंभीर विषय है| भ्रष्टाचार और ईमानदारी की व्याख्या क्या है? और कौन करेगा इसकी व्याख्या? इस देश में कौन देगा इसका प्रमाणपत्र कि कौन ईमानदार है और कौन बेईमान? इस व्याख्या को जन्म देने वाला या इस व्याख्या को स्थापित करने वाला कौन है? चुपचाप मूक दर्शक के रूप में चुप रहने वाले वे लोग जो इस रोग को आम जीवन में फैलने तक का इन्तजार किया और आज वे सिविल सोसाइटी की बात करते हैं| ऐसे लोग सभी तरह की सुविधाएं भोग रहे हैं|
मेरे विचार से और जो मै समझता हूँ या समझने का प्रयास कर रहा हूँ उन्ही बातों को मै आप तक पहुँचाने का प्रयास कर रहा हूँ| यह जरूरी नहीं कि मेरी ही बातें सही हो, अन्य की नहीं| आप सुनें और पढ़ें सबकी; समझे और मानें अपने मन और विवेक से |

भ्रष्टाचार माने – भ्रष्ट आचरण, अर्थात जिस व्यक्ति का आचरण पतित हो गया हो...भ्रष्ट हो गया हो| आचरण से मेरा मतलब है पूरा जीवन दर्शन – सामाजिक आचरण, अध्यात्मिक, नैतिक, मानसिक, व्यावहारिक, सैद्धांतिक, आहार, विचार, पूरा जीवन| अध्यात्म और विज्ञान को परमात्मा के भाव से देखते हुये उसके प्रति ईमानदार रहना| अपने और अपने परिवार के प्रति जितना ईमानदार हम रहते हैं, उससे ज्यादा जब हम दूसरों के प्रति ईमानदार रहते हैं, इसे ही ईमानदारी कहते हैं| लोगों का मानना है कि भ्रष्टाचार का मतलब सिर्फ रुपया और धन अथवा विशेष सेवा का लेन-देन| और वह भी किसी सरकारी पद पर बैठकर करने वाला ही व्यक्ति– राजनीतिज्ञ, नौकरशाह और जज, से जुड़ा हो तब| भ्रष्टाचार हमेशा इन्ही तीनों व्यवस्था के इर्द-गिर्द घूमती रही है| मेरे विचार से यह गलत है अपूर्ण है| मनुष्य के भीतर किसी भी तरह की ऐसी भौतिक विलासिता वाली भूख जो समाज, मानव जीवन, भारतीय संस्कृति, संस्कार और संविधान को प्रभावित करता हो, हमरी परंपरा, आध्यात्मिकता, हमारी साधना, इवादत, पूजा को प्रभावित करता हो, खुद को और गृहस्थ जीवन को प्रभावित करता हो, उसे भ्रष्टाचार कहा जा सकता है|

परन्तु आज सिर्फ इस बात को लेकर हाय-तौबा है कि कितना घोटाला हुआ, किसने किया और किस सरकार के रहते हुआ? परन्तु आम आदमी के दैनिक जीवन का जो नैतिक पतन हुआ है, उस पर बहस नहीं है| यह बात बिलकुल सच है आम आदमी के प्रति जिम्मेवार और जवाबदेह व्यक्ति और संस्था जिसे हम न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका कहते हैं| वह सीधे तौर पर जिम्मेवार है राष्ट्र, समाज और मानव जीवन के प्रति| उसकी छोटी भूल सम्पूर्ण राष्ट्र और समाज को प्रभावित करती है| और यह तीनों तंत्र किसी भी परिस्थिति में अपनी जिम्मेवारी से मुकर नहीं सकती और उनका किसी भी तरह का अपराध माफ़ी के योग्य नहीं हो सकता| परन्तु यह देखना भी बहुत ही जरुरी है कि यह जो सरकार है उसे चुनती कौन है| एक ऐसी जनता जो बेबस है, अशिक्षित है, कमजोर है, शोषित है, मजबूर है, भूखी है, बीमार है| उसकी अपनी कोई सोच, चिंतन और विचार नहीं है| ऐसी जनता जो सिर्फ अपने भाग्य, किस्मत, चमत्कार और भगवान के भरोसे जीती है|

इस भीड़ को मुट्ठी भर पूंजीपति, राजा, जमींदार, पंचायती राज व्यवस्था के बिचौलिये, दलाल, प्रधान और खास तौर पर ऐसे पढ़े-लिखे ज्ञानी विद्वान नागरिक जिसके पास नैतिक, सार्वभौमिक, आत्मज्ञान वाली कोई ज्ञान नहीं होता, जिसकी पढाई होती ही है मानव-मशीन बनने के लिए, जो सिर्फ अपने और अपने परिवार के भौतिक सुख के लिए जीता है| और यह मासूस भीड़ इस नेतृत्व के पीछे एक उम्मीद लिए, विश्वास के साथ, आँख मूंदकर, अपना सम्पूर्ण जीवन ही समर्पित करके अनवरत चलता रहता है| इस पढ़े-लिखे नेतृत्व को जाति, धर्म, मजहब, क्षेत्रीयता, भाषा के नाम की बहुत बड़ी व्यवस्था हाथ लग गयी है आम समाज को प्रभावित करने के लिए| मानो लौटरी खुल गयी| ये जो पूंजीपति और पढ़े-लिखे व्यक्तियों का गठजोड़ है इससे इन्हें गलतियों और भ्रष्टाचारों को ढकने के लिए कुछ करने की जरुरत नहीं है| बस कहावत चरितार्थ है सपेरा आयेगा, बीन बजायेगा; फिर क्या उसे सपेरे के कब्ज़े में तो होना ही है| जितना अच्छा जादूगर उतना अच्छा चमत्कार|

आप एक तरफ कहते हैं कि लाखों-करोड़ों जनता भ्रष्टाचार के खिलाफ गोलबंद है, और वही जनता देश और राज्य के सरकार को बनाती है और उतारती है| यदि आपके साथ करोड़ों जनता भ्रष्टाचार पर है तो जयललिता, मायावती, नरेन्द्र मोदी, येदुरप्पा इनके साथ कौन सी जनता है – अमेरिका की  या इसी देश की? आप यदि अपने को एक करोड़ के अनुयायी का बाबा और संत कहते हैं, तो बीस करोड़ का वोट लेकर कोई सरकार अपने को क्या कहेगी? भीड़ या लोकप्रियता से किसी बात का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता| भीड़ तो मदारी के खेल के लिए भी लग जाता है| कभी मंडल तो कभी कमंडल के नाम पर भीड़, तो कभी मंदिर और मस्जिद के नाम पर भीड़| जिस भारत के लोगों में यह भावना प्रवेश कर जाये कि प्रवचन सुनने से पाप धुल जायेगा और गंगा स्नान से पाप धुल जायेगा, किसी ढोंगी लाल वस्त्र धारी भ्रष्टाचारी के पैर छूने से पाप धुल जायेगा या मंदिर के चौखट पर दूध चढाने से भगवान खुश हो जायेंगे, पूरा साल कुकर्म करेंगे और और सोचेंगे कि नवरात्र कर लेने से पाप धुल जायेगा; जिस देश में ऐसी सोच वाले लोग बहुसंख्यक हों, ऐसी भीड़ से हमारे लेखकों और विचारकों को खुशफहमी नहीं पालनी चाहिए|

भ्रष्टाचार के पक्ष और विपक्ष में जो यह भीड़ है, इसे आप किस बिना पर सही कह सकते हैं? अभी हाल ही में चार विधानसभा चुनाव के पहले चारों तरफ भ्रष्टाचार की गूँज टी.वी. और अखबार के माध्यम से दिखाई दे रहा था और कुछ ऐसे मुट्ठी भर लोग जो अपने को हाई सोसाइटी के लोग कहते हैं उनके दिनचर्या की गतिविधि से दिख भी रही थी| क्या हुआ असम, केरल, बंगाल और आंध्र में? क्यों नहीं कोई संत वहाँ जाकर चुनाव लड़ लिए? क्यों लेखकों की कलम वहाँ रुक जाती है? आंध्र में जनता ने एक भ्रष्ट को हटाकर दूसरे भ्रष्ट को कुर्सी पर बैठाया| इसे आप क्यों नहीं देखते? इसी बात को समझाने की जरुरत है| किसी खास पार्टी को टारगेट कर हम भ्रष्टाचार को समाप्त नहीं कर सकते| यदि हम मान भी लें तो एक सरकार के जाने के बाद दूसरी आयेगी, तो कौन सी सरकार आयेगी जो दूध की  धुली है? आना तो उन्हें ही है जिन्हें कहते हैं कि हमाम में सब नंगे हैं|
बर्बाद-ए-गुलिश्तां करने को एक ही उल्लू काफी है
हर डाल पे उल्लू बैठा है अंजामे गुलिश्ता क्या होगा!
मेरा सिर्फ इतना कहना है कि हमे जड़ से इन समस्याओं का विचार करना चाहिए| किसी भी तरह की व्यवस्था में सुधार आने के पहले उन्हें अपने जीवन में अमूल-चूल परिवर्तन करना होगा| मानसिक परिवर्तन करना होगा| बगैर सही ज्ञान के, आत्मज्ञान के जीवन नहीं बदल सकता, बगैर ज्ञान के मानसिक परिवर्तन नहीं हो सकता और ज्ञान के लिए जरुरी है – नैतिक और अध्यात्मिक शिक्षा की| नैतिक और अध्यात्मिक शिक्षा के बगैर आत्मिक ज्ञान नहीं हो सकता और सभी समस्याओं का समाधान है- ज्ञान| भ्रष्टाचार या किसी भी तरह की कुरीति को रोकने का मूल मन्त्र है अध्यात्मिक और नैतिक शिक्षा| आज इस बात पर कोई चिंता नहीं करता| मनुष्य में परिवर्तन के बगैर कुछ भी नहीं मिट सकता| जैसे – वाल्मीकि कैसे बदले, अध्यात्मिक भाव के कारण| ऊँगलीमाल में बदलाव, उनका महात्मा बुद्ध का संसर्ग से हुआ, उनके भीतर के भाव का आध्यात्मिकता में बदलना| सम्राट अशोक बहुत बड़े तानाशाह थे| बुद्ध के संसर्ग में आने से उनका अध्यात्मिक भाव जगा|

कानून बनाओ, कानून बनाओ! पहले से ही ३ करोड़ ३० लाख कानून इस दुनिया में बने हुये हैं| कानून में तो लिखा है कि चोरी नहीं करना है, घूस नहीं लेना है, भ्रष्टाचार, लूट, बलात्कार आदि नहीं करना है| तो क्या कानून से रुका? १९४७ में  भ्रष्ट्राचार निरोधक अधिनियम बनाया गया तो क्या भ्रष्ट्राचार बंद हो गया? करपशन पर संसद में सैकरों बिल आ चुके हैं, अब एक और बिल आयेगा, तो क्या हो जायेगा? अब्राहम लिंकन ने जब १८६४ में गुलाम-प्रथा के खिलाफ कानून बनाया तो उसके अगले कई दशकों तक यह कुरीति और जोड़ पकड़ ली| अमेरिका जैसे देश में नस्ल भेद, तमाम कानून के बाद, एक या दूसरे रूप में, एक लंबे अरसे तक रहा| किसी कानून से वह नहीं बदला| विचारों के नीव पर और चरित्र निर्माण पर यह संभव हो पाया| यदि गीता के चंद श्लोक, कुरान के कुछ आयतें, बाइबल के वर्स से ही लोग अंत:करण से मिल लिए होते तो कानून की क्या आवश्यकता होती? कानून बनाना समाधान होता तो दुनिया में अपराध बहुत पहले ही खत्म हो चुका होता| अगर किसी समाज में नैतिक मूल्यों का क्षरण हो रहा है तो आचार के आधार पर किये गए काम में गुणातम्क गिरावट होगी| भ्रष्टाचार को लेकर समाज असहिष्णु नहीं होगा, भ्रष्टाचारी अपने पैसे से महामंडित होता जायेगा| कहने का मतलब यह है कि करपशन का एक बड़ा भाग कानून के बजाये नैतिक मूल्यों से निर्धारित होता है| जैसे – हरियाणा, पंजाब में शराब पाबन्दी के लिए एक कानून बना| तो क्या शराब रुका? वहाँ शराब के लिए भ्रष्टाचार शुरू हो गया और शराब की भूख बढ़ गयी|

भ्रष्टाचार भी खत्म होगा; ऐसा नहीं है कि नहीं होगा| आप, याद कीजिये लोग सोचते थे कि कम्युनिज्म, मर्क्सिज्म तथा फासिज्म कभी खत्म नहीं होगा, पर दिशा बदली| लोग कहते थे कि भारत से अंग्रेज कभी नही जायेंगे| लोगों का विचार बदलने से यह भी संभव हुआ| लोग सोचते थे दो भागों में बंटने के बाद जर्मनी एक नहीं होगा, लेकिन जर्मनी एक हुआ| सबके पीछे उचित विचारों का होना आवश्यक है|

आपको यह भी समझना होगा कि कौन लोग हैं जो भ्रष्टाचार के महासागर में गंगा स्नान करना चाहते हैं| यह जो महानगरों में भीड़ लगती है कैंडल जलाने के लिए, जंतर-मंतर पर बैठने के लिए कौन हैं ये लोग? इन भीड़ों से अन्ना हजारे जी को सावधान होना होगा| वकील, इंजिनियर, फिल्मी कलाकार, पत्रकार सभी बुद्धिजीवी का नैतिक समर्थन प्राप्त है इस लड़ाई को| कौन हैं ये लोग? ९९.९% बुद्धिजीवी चाहे जिस संस्था से आते हों सभी शीशे के घर में रहकर दूसरे के घर पर पत्थर मारते हैं| अपने कभी यह जानने का कोशिश किया कि सबसे ज्यादा भारत के टैक्स की चोरी और चारित्रिक दोष कहाँ है? वह देखा गया है बॉलीवुड में| कौन कलाकार या निर्माता है जो टैक्स चोरी नहीं करता? वे भ्रष्टाचार को समाप्त करने की बात करता| जो हर तरह कि भौतिक विलासिता वाली सुविधा से परिपूर्ण हैं| वकील भाई लोग एक मिनट सिर्फ खड़े होने के लिए ५०० रुपये से लेकर २-३ करोड़ रुपये तक लेते हैं| जब तक गरीब का घर, जमीन सब, बिक नही जाता तब तक केस समाप्त नहीं होता| इतना ही ईमानदार हैं तो सिर्फ सच के लिए ही लड़ें| इतना ही ये लोग ईमानदार हैं तो आर्थिक अपराध जैसे मुक़दमे के लिए करोड़ों रुपये लेकर देश को कंगाल क्यों बना रहे हैं| क्यों नहीं ऐसे लोगों को फांसी दिलवाने के लिए आगे आते? इन लोगों के समर्थन से बू आती है अपने स्वार्थ की| ये जो अन्य लोग हैं जो दिन के उजाले में कुछ और तथा रात के अँधेरे में कुछ और! जिन लोगों का निजी और सार्वजनिक जीवन दोहरे चरित्र का हो| जिनका सर्वाजनिक जीवन बहुत ही गंदा हो, ऐसे लोग किस मुंह से भ्रष्टाचार के खिलाफ बात करते हैं| जो डॉक्टर लोग हैं जिन्हें हम भगवान कहते उनके बारे में समाज के आम आदमी से पूछ कर देखिये कि क्या अवधारणा है| क्या नहीं करते रुपये कमाने के लिए डॉक्टर लोग| कहाँ कहाँ से इन लोगों को कमीशन मिलता| सभी तरह के लैब, सभी तरह के जांच लिखने पर फीस, भारी फीस, एक महीना के बाद फिर फीस| कहाँ से ये लोग साल-दो साल में करोड़पति-अरबपति हो जाते? ऐसे लोगों के समर्थन से भ्रष्टाचार रोका जायेगा? जो शिक्षक, प्रोफेसर नोट-बुक, जाति, धर्म, मजहब के आधार पर बेचकर एशो-आराम की जिंदगी जीते हैं! इनसे क्या उम्मीद किया जाये| जिन्हें सामाजिक व्यवहारिक पहलु की जानकारी नहीं, सिर्फ हो-हो करने पहुँच जाना है, जहाँ गंभीरता नहीं हो वहाँ से आप क्या उम्मीद करेंगे?

आज जो सबसे बड़ी बात समाज के बीच आ रही है वह है सेक्सुअल-करपशन| ऐसे लोग हैं जो पद पर या अन्यत्र रहकर यह कहते मिलते हैं कि मै तो ईमानदार हूँ एक रुपया घूस नहीं लेता पर उनका असली चेहरा काफी काला है| ये जो व्यवस्था को करप्ट करने वाले पूंजीपति लोग हैं, जिन पर ना तो सरकार का अधिकार है ना ही किसी तरह के व्यवस्था का खौफ|
दिल्ली के एक सचिव एक रूपया नहीं लेता था पर चारित्रिक रूप से काफी कमज़ोर इंसान था| शुक्रवार के रात में अपने परिवार से इजाजत लेता कि मै ऑफिस के काम से मुंबई या बहार जा रहा हूँ सोमवार को आऊंगा| फिर क्या था; पूरी आज़ादी के साथ, ये बड़े घराने के, कॉर्पोरेट घराने के, मुंसी लोग बीन बजाने, महँगी प्लेन की टिकेट लेकर ईमानदार बाबु के दफ्तर शुरू होता है रात के १ बजे का महँगी प्लेन का सफर| रात को १ बजे ईमानदार बाबु का प्लेन मुम्बई एअरपोर्ट पहुँचता है| बाबु के इंतज़ार में बहार महँगी बड़ी गाड़ी| बाबु के बहार निकलते ही महानगर के रोड पर तेज रफ़्तार से गाड़ी ताज होटल की ओर, मानो अपनी सही मंजिल की ओर बढ़ता जा रहा हो| कुछ ही देर में गाड़ी पाँच सितारा होटल में पहुच चुकी होती है| होटल उनके सेवा के लिए तैयार थी| शुरू होता है शुक्रवार, शनिवार, रविवार रात का रंगीन सफर| दुनीया की सबसे महँगी शराब जिसकी कीमत हम आप नहीं जान सकते| शराब के बाद फिर शबाब| लाखों-करोड़ों में उपलब्ध लड़की और ईमानदार बाबु! ऐसे बीतता है; कुछ, सीधे तौर पर रुपये नहीं लेने वाले भ्रष्टाचारियों की जिंदगी| सोमवार के सुबह पुन: १०:३० वो बाबु पहुँच जाते हैं दिल्ली या अन्य दफ्तर में दो, तीन या चार दिन बाद पहुँच जाता है कॉर्पोरेट घराने का करोड़ों अरबों का घोटाला वाला फाइल| फिर ईमानदार बाबु के दफ्तर आने के साथ ही शुरू होता है भारत को गर्त में ले जाने वाला योजना| तीन रात-तीन दिन तक करोड़ों रुपये, शराब और शबाब पर खर्च किये गए किस बात के लिए? वह कोई रिश्तेदार तो थे नहीं!

इस तरह के सेक्सुअल करप्शन अभी अत्यधिक रूप से प्रचालित है, इन भ्रष्टाचारियों को जिन्हें सिविल सोसाइटी के लोग करप्ट नहीं मानते| यह कैसे संभव है? समाज में आज-कल सीधे रुपये लेने का प्रचलन बंद है| गरीब लोग को तो कोई भीख में भी ५० पैसे नहीं देता, पर ईमानदार बाबु, नेता या अन्य संस्था के लोग साल में पाँच-पाँच बार अपना या अपने परिवार का जन्मदिन और शादी का सालगिरह मानते हैं| उसके लिए दो सौ कार्ड बांटा जाता है, ५० अपने परिवार दोस्तों में और १५० पूंजीपतियों के बीच| ये जो पूंजीपति लोग बधाई देने पहुंचते हैं, उनक हाथों में कम से कम २-५ लाख रुपये की महगी गिफ्ट होती है| आये, मिले, औपचारिकता निभाई, चेहरा दिखाए, काम तमाम, चलते बने! इतना ही नहीं, आज-कल सभी पर्व-त्योहार में जैसा काम, जैसी कुर्सी, वैसा गिफ्ट लेकर पहुँचने की परंपरा काफी जोरों से बढ़ता जा रहा है| यह गिफ्ट सिर्फ गलत काम करवाने के लिए दिया जाता ना कि रिश्तेदारी के लिए| आज-कल लोग इसे भ्रष्टाचार में नहीं गिनते हैं| एक बड़ा आदमी सिर्फ गिफ्ट से साल में १०-२५ करोड़ रूपया कमाता है, उसे हम बेईमान नहीं कहते| किसी गरीब की बेटी की शादी में ये गिफ्ट क्यों नहीं जाता या किसी गरीब के बीमारी पर किसी कॉर्पोरेट लोग के जेबों से हज़ार रुपये क्यों नहीं निकलता! यह जो मानसिकता है, यही राष्ट्र को समाप्त करती है|

सबसे बड़ा जो रोग है जात और धर्म का, उसे हम आप करपशन का जड़ कह सकते हैं| बिना जात-धर्म का पैरवी नहीं, बिना जात-धर्म का सम्मान नहीं| जात पूछ कर काम करने की प्रवृति को खतरनाक करपशन कह सकते हैं| पूरा मानवीय व्यवस्था ही प्रभावित हो जाती है| पूरा का पूरा व्यवस्था इन दो सवालों के चलते प्रभावित हो जाती है| आपके विवेक पर हम छोड़ देते हैं कि क्या यह तीनों व्यवस्था, भ्रष्टाचार में आता है या नहीं? इस कोढ़ को ठीक करना जरुरी है या नहीं?

दूसरी तरफ यह जो एन.जी.ओ. गोबरछत्ते की तरह बढ़ा है, और जनता के कमाई, खरबों रूपया को निजी संपत्ति बनाकर अपना अधिकार समझता है, इस करप्शन को कौन रोकेगा? लाखों-करोड़ों का धार्मिक ट्रस्ट जिसके लिए ना तो कोई कानून है ना ही कोई सरकार ना ही कोई व्यवस्था| उस ट्रस्ट पर आस्था के नाम पर स्वयम्भू भगवान लोग अपना साम्राज्य बनाये बैठे हैं| जनता भी चमत्कार और आस्था के नाम पर इन्ही ढोंगी के अनुयायी है| फिर कौन बनेगा भगत सिंह या सुभाष चन्द्र बोस? किसी ना किसी को इस सारे व्यवस्था के खिलाफ जंग लड़ना ही होगा| इसे किसी भी कीमत पर भ्रष्टाचार से अलग नहीं रखा जा सकता| ये लोग विकास और समाज सुधार के नाम पर अपनी विलासिता कि जिंदगी जीते हैं| खास कर नैतिकवान नौजवानों को सोचना होगा, विचार करना होगा| यह जो एन.जी.ओ, धार्मिक ट्रस्ट हैं सभी कॉर्पोरेट व्यवस्था का पूरा हिस्सा बना हुआ है| कॉर्पोरेट लोग ही चाहते हैं धर्म जात का हफीम जनता को खिलाते रहो कि होश ना आने पाए| ये लोग हमेशा गरीब का तकदीर बदलने की बात करते हैं|
इसने अवाम की संघर्ष वाली तमाम उर्जा को अपनी दुनियावी संस्कृति से समाप्त कर दिया| गरीब के थाली से रोटी, दाल, भात कम होती चली गयी| आज स्थिति यह है कि परिवार के मालिक भूखे और बच्चे आधे पेट से अपना जीवन बसर करते हैं| कई लेखक लेख लिखते हैं कि रामदेव जी कला धन लाकर देश, गरीब का भला करना चाहते हैं| ये लोग गरीब के लिए शुभचिंतक होते, तो गरीबों के लिए माकन  बनती! बड़े लोगों के ठहराने की सुबुध के बजाय ५ हज़ार गरीब बच्चों के शिक्षा के लिए बेहतरीन स्कूल बनवाते जहाँ पर फ्री शिक्षा दी जाती| अनिवार्य शिक्षा दी जाती| इतने कंपनी के जगह पर निशुल्क सुविधायुक्त अस्पताल गरीब लोगों के लिए बनवाते जिससे भारत में रुपये के अभाव में किसी की मौत नहीं होती| एक भी बाबा, सन्यासी या किसी पूंजीपतियों का नाम आप बता दें कि आज़ादी के बाद से आज तक का हो कहाँ कौन-कौन नेक काम ये लोग किये हैं जिससे गरीब का भला हुआ हो| जो भी खुला है व्यापार के लिए, मात्र दिखाने के लिए, कोई कहीं १० बच्चे को पढ़ा दिया हो या गोद ले लिया, उससे समस्या का हल नहीं हो सकता| मै अपने लेख के माध्यम से इन ढोंगी या अन्य समाजसेवी को बड़े सभ्य, विनम्र तरीके से कहना चाहता हूँ कि हिम्मत है तो समाज को बताये कि देश में कितने स्कूल, अस्पताल, अनाथालय, वृद्धा आश्रम आपने खोला है जहाँ गरीबों का कल्याण होता हो| कहीं अनाथालय, वृद्ध आश्रम अपने खोला भी है तो उसके बदले आपका देश-विदेश से करोड़ों रुपये मिलते हैं| यह भी कमाने का जरिया ही है| इनलोगों को क्या पता कि बीमारी से कितने लाख बच्चे, औरत और आमलोग प्रत्येक साल मरते हैं| क्यों नहीं विदर्भ, उड़ीसा, आंध्र, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, मणिपुर जैसे जगहों पर जो भूख से मरते उनके लिए कार्य योजना चलाते हैं? सिर्फ कहने के लिए कि ‘आर्ट ऑफ लिविंग’ के द्वारा मैंने बाढ़ में भोजन चलाया, कुछ घर बनवाए, एक गाँव को गोद लिया या सुनामी आया तो बहुत काम किये| डॉक्टर की टीम भेजी, दवाई बाँटी|

यह सब आप लोग दिखाकर भगवान बन जाते हैं पर यह क्यों नहीं बताते हैं कि समाज में थोड़े काम करके अरबों रूपया विदेश से दान लेते हैं| ये लोग एक रूपया का काम फायदे के लिए करता और लाखों-करोड़ों कमाता है| इन लोगों से कहिये कि फ्री शिक्षा के लिए सौ-सौ स्कूल और टेक्निकल कॉलेज खोलें ताकि बच्चे अपने पांव पर खड़ा होकर समाज के लायक बन सके| १०-१० अस्पताल ही खोलें ताकि एक भी गरीब पैसा और पैरवी के अभाव में मर नहीं सके| किसी भी कीमत पर बीमारी से भारत के लोग नहीं मरें| ये लोग इस जन्म में ऐसा नहीं करेंगे| इसलिए जो लोग गरीब की तकदीर बदलने या उसके लिए हमदर्द दिखते हैं वह कृपया नाटक करना छोड़ दें|

यदि गरीब पर स्वयम्भू भगवान लोग या बाबा लोग कृपा करना चाहते हैं तो एक काम कर दें, इस मासूम भीड़ को भाग्यवादी बनाना बंद कर दें| किस्मत पर जीने की सलाह देना बंद करें| इन्हें कर्मयोगी बनाना शुरू करें| इनपर कृपा करना चाहते हैं तो आई.ए.एस., आई.पी.एस., डॉक्टर, वैज्ञानिक या बड़ा उद्यमी बनाना शुरू करवाएं या रास्ता बताने की कृपा करें| जो कुछ भगवान के किताब में है नहीं उसे अपने फायदे के लिए बताना बंद करें| तब समझेंगे कि आप सही मायने में गरीब के लिए सोच रहे हैं| काला धन आप जरूर लायें; पर अपना सारा काला धन आवाम के उपयोग के लिए देने के बाद| मेरा मानना है कि सिविल सोसाइटी के हित और रामदेव जी को एक बात किसी भी कीमत पर समझना होगा कि इन नेता, पदाधिकारी, जज या आवाम को भ्रष्ट बनाती है| कौन सी व्यवस्था है जो सारे नेता को ही खरीदने की क्षमता रखती है? यह जो कॉर्पोरेट लोग हैं, पूंजीपति लोग जो किसी भी कीमत पर ऐन-केन प्रकारेण सभी कों खरीदने की क्षमता रखते हैं| जब जिसे जैसे मन होता है भ्रष्ट बना देता है या सभी तरह शासन-प्रशासन, तंत्र को अपने हित के लिए बदल देते हैं| जो अपने सहूलियत के मुताबिक कानून बनवाता, अपना धन उर्पाजन के लिए अपने तरीके से बजट बनवाता है, इन लोगों को रोकना होगा|

जब तक इन लोगों के परचेजिंग पॉवर (क्रय शक्ति) को खत्म नहीं किया जायेगा, तब तक भ्रष्टाचार को कोई नहीं मिटा सकता| सारे व्यवस्था पर मनुष्य ही बैठा है कोई भगवान तो है नहीं| करोड़ों-अरबों रूपया देखकर विचलित नहीं हो या सुरा-सुन्दरी देखकर मन कमजोर ना हो ऐसा लगभग असंभव है; आखिर इसी समाज के लोग हैं सभी| सभी सामाजिक वातावरण से प्रभावित हैं| इसलिए इनके धन पर रोक लगाना होगा, कानून बनाना होगा, संपत्ति रखने की एक सीमा तय करनी होगी|

जिस तरह गाँव में किसानों पर भूहदबंदी कानून लागू है कि कौन कितना जमीन रख सकता है| जब सरकार ज़मींदारों के लिए क़ानून बना सकती है तो पूंजीपतियों के लिए क्यों नहीं? एक ही देश में दो तरह के कानून क्यों? किसी को ५० लाख से ज्यादा की जमीन रखने की इज़ाजत नहीं है, और किसी कों खरबों-खरब रुपये रखने की छूट है| वह तो अपने फायदे के लिए किसी भी स्तर तक जा सकता है और किसी को भी भ्रष्ट कर सकता है| मेरा मनना है कि शहरी संपत्ति पर कानून बनाकर वेल्थ की व्यवस्था करे सरकार| एक व्यक्ति १०-२५ करोड़ रूपया निजी तौर रखे उसके बाद कोपरेटिव सिस्टम बनाकर उनके व्यवसाय में मजदूर तथा कर्मचारी का भी ५ रूपया या १०० रूपया का शेयर लगा दें; तो देश के आवाम खुशहाल हो सके| मजदूर के मन में भी मालिक का बोध हो| कर्मचारी को भी मालिक का बोध हो| लोग शेयरधारक होने के बाद, अधिक मुनाफे के लिए अधिक काम करेंगे और चोरी भी बंद करेंगे| इस व्यवसाय से जो मुनाफा होगा सरकार को या व्यवसायी को कमटी तय करेगी कि देश में अब क्या लगाना है| देश कि खुशहाली और आम आदमी के शेयर के लिए ज्यादा से ज्यादा उस मुनाफे से लघु उद्योग, कुटीर उद्योग की नीति बनाकर आगे की कार्य योजना पर काम करेगी| उससे एक व्यक्ति का स्वामित्व खत्म होगा| देश भी आर्थिक रूप से मज़बूत होगा| कोई किसी को खरीद नहीं पायेगा| व्यक्तिओं में खरीदने की क्षमता ही नहीं होगी| किसी एक व्यक्ति के पास धन होगा ही नहीं तो बड़ा लोभ दे नहीं पायेगा|

मेरी समझ है भ्रष्टाचार को रोकने के लिए दो कानून आवश्यक है एक नैतिक अध्यात्मिक शिक्षा एक से दस क्लास तक; और दूसरा शहरी संपत्ति पर वेल्थ के साथ बड़े व्यवसाय को कोपरेटिव सिस्टम से जोड़ना और बड़े-बड़े फैक्ट्री के साथ एग्रो-बेस लघु-उद्योग और कुटीर-उद्योग| जब तक सरकार इन दोनों व्यवस्था के लिए अपना विचार नहीं बनाती है तब तक कानून बनाना बेईमानी है| सिविल सोसाइटी और रामदेव जी जैसे सभी बाबाओं से आग्रह है देश के जनता को गोलबंद करें कि इन दो कानूनों कों बनवाने के लिए सरकार पर जोड़ दें|

मेरी बात सही भी हो सकती है और नहीं भी, पर मेरा मानना है कि यह दो व्यवस्था ही सभी समस्याओं का समाधान है| हम लोगों को, खास तौर पर चरित्रवान नौजवान को विचार करना चाहिए कि कैसे हमलोग जड़ से ही इस समस्या को खत्म करें|
 

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