Friday 28 December 2012

बलात्कारी कौन ?


रिश्तों के आड़ में छुपे बलात्कारियों को कौन सा कानून और कंदील रोकेगा?   


आदिकाल से मनुष्य बाहरी शक्ति का उपासक है| बाहरी शक्ति से मेरा तात्पर्य भौतिक शक्ति से है| जबकि असल में मनुष्य अपने कर्म का निर्णय लेता है आतंरिक शक्ति अर्थात मन से| मनुष्य का मन प्रधानत: तीन गुणों से प्रभावित होता है- सतो गुण (सात्विक), रजो गुण (राजसिक) और तमो गुण (तामसिक)| इन तीनों गुणों का जिस मन में संतुलन है वहीं शांति है| मन पर जब सतो गुणों का प्रभाव रहता है, तो मन में अच्छे विचार आते हैं और मनुष्य सद कार्य को प्रेरित होता है| रजो गुण का प्रभाव रहेगा तो मन में चंचलता, आवेग, जोश, नाच-गान, उछल-कूद करने का भाव पैदा होता है| मन में नाम, यश, धर्म प्राप्ति की भूख होती है| और इसी तरह तमो गुण का प्रभाव जब मन पर रहेगा तब मन में किसी का शोषण करने, परेशान करने, कष्ट देने जैसा भाव पनपता है| तथा साथ-साथ भय, आहार और मैथुन की प्रबलता रहेगी| इसलिए आज जररूरत है मन पर नियंत्रण रखने की| मनुष्य को यम-नियम के अभ्यास की आवश्यकता होती है जिसके कारण मन में शुद्धता और पवित्रता आती है| तब मन नियंत्रण में रहता है |

मन का उत्स ईश्वरी भाव है पर मानव का विकास पशुता से अग्रसर होते हुए हुआ है| इसलिए मनुष्य के मन में दोनो तरह के गुण मौजूद हैं- दैवीय गुण और पशुवत गुण| इन्हीं कारणों से मनुष्य का एक विचार उसे ऊपर उठाता है, तो दूसरा नीचे गिराता है| मनुष्य का व्यक्तित्व उसके विचारों का प्रोडक्ट होता है| एक मनुष्य होता है जिसके भीतर नैतिकता नाम की कोई चीज़ नहीं होती है, दूसरा मनुष्य होता है जिसके भीतर सहज नैतिकता होती है और तीसरा मनुष्य होता है जिसके भीतर अध्यात्मिक नैतिकता होती है| सहज नैतिकता वाले मनुष्य की  वृति लोभ, मोह, ईर्ष्या, द्वेष के आवेग में टूट जाता है| परन्तु जहाँ अध्यात्मिक नैतिकता होती है वहाँ व्यक्ति इष्ट के प्रति समर्पित होता है| ऐसे लोगों का नैतिक पतन असंभव सा होता है| मनुष्य के नैतिक उत्थान के लिए साधना और ध्यान में प्रतिष्ठित होना आवश्यक है| सिर्फ वही व्यक्ति समाज का कल्याण कर सकता है, जो ध्यान में प्रतिष्ठित है| क्योंकि वह व्यक्ति इस बात को मान कर समाज में जीता है (हरेड़ पिता, गौरी माता, स्वदेशो त्रिभुवन) परम पिता परमात्मा मेरे पिता हैं, परमा प्रकृति मेरी माँ है और त्रिभुवन मेरा घर है| हम सभी जीव-जंतु मनुष्य उसी परम पिता के संतान हैं इसलिए वह व्यक्ति किसी भी तरह का सामाजिक शोषण बर्दास्त नहीं करेगा| इसलिए मानव समाज को नैतिक मूल्यों को ग्रहण कर अध्यात्मिक पथ पर चलना ही होगा|

वर्तमान में जो शिक्षा मनुष्य को दी जाती है, उससे लोगों के नैतिक मूल्यों का उत्थान नहीं हो पता| ऐसी शिक्षा से मनुष्य का नैतिक पतन होने की अत्यधिक सम्भावना बनी रहती है| मनुष्य का शारीरिक एवं मानसिक विकास हो जाने से उसका पूर्ण विकास नहीं माना जा सकता| आदि काल में जो लोग शारीरिक रूप से बलवान होते थे वही राज करते थे, नेतृत्व  करते थे | उस युग को क्षत्रिय युग कहते थे| परन्तु जब बुद्धिजीवी वर्ग नेतृत्व करने लगे तो उसे विप्र युग कहने लगे| परन्तु समाज में नैतिक पतन की स्थिति वही रही | नैतिक उत्थान के लिए समय-समय पर बुद्ध,  गुरूनानक, मोहम्मद जैसे महापुरुष धरती पर आकर उत्थान किये हैं| नैतिक उत्थान के लिए जो शिक्षा-दीक्षा है, वह सिर्फ अध्यात्मिक क्षेत्र है| इसलिए मानव समाज के मानसिक विकास के साथ-साथ अध्यात्मिक विकास आवश्यक है| जिस तरह विज्ञान, भूगोल, इतिहास की पढाई होती है, उसी तरह अध्यात्मिक विज्ञान की पढाई नीचे क्लास से ही होनी चाहिए, तभी हम नैतिकवान व्यक्ति का निर्माण कर पाएंगे | उसी से सामाजिक परिवेश भी सुंदर बनेगा| तभी जाकर नैतिक ह्रास या नैतिक अवनति नहीं होगी| आज जरुरत है इसी तरह कि सामाजिक परिवेश बनाने की| ताकि आदमी अच्छे कर्मों या अच्छे कार्यों को करने में उत्साह दिखा पाएंगे और बुरे कर्म करने वालों को प्रोत्साहन नहीं मिल पायेगा| अध्यात्म से आतंरिक अनुशासन का विकास होता है| व्यवस्था मात्र बाहरी अनुशासन विकसित करता है| जबकि मनुष्य आतंरिक कारणों से ही अच्छे कार्य कर पाएंगे| बाह्य कारणों से व्यवस्था अंशत: ही सुदृढ़ हो पायेगी| मनुष्य अपने इन्द्रियों की संतुष्टि चाहता है पर वह संतुष्टि क्षणिक होती है| आतंरिक जगत में इन्द्रियाँ मदद नहीं करती हैं| वहां भाव जगत से मतलब है| इन्द्रियाँ सदा बाह्य दुनिया से जोड़ती हैं| उससे मन में जो विचार पैदा होते हैं वह सीमित और कुंठित होते हैं|

मानसिक पवित्रता निर्भर करती है शुद्ध आहार, शुद्ध विचार और शुद्ध परिवेश पर| यह नहीं होगा तो मानसिक पवित्रता नष्ट होती है| तब मन पे नियंत्रण नहीं रहता है| मनुष्य होश खोकर पशुवत गुणों का सहारा ले लेता है| पशुवत गुण है– आहार, निंद्रा, भय और मैथुन| जहाँ मनुष्य के जीवन में इच्छा शक्ति का महत्व है जैसे मन में विचार आया चोरी करेंगे यानि  लोभ आया यानि लोभ के कारण चोरी करेंगे, दूसरा विचार आया कि पुलिस पकड़ेगी, तीसरा विचार आया कि समाज के लोग क्या कहेंगे, लज्जा पैदा हुई, यहाँ मन में तीन भाव काम कर रही हैं| ऐसे समय में इच्छा शक्ति जिस भाव के साथ काम करेंगी, शरीर वैसा ही काम करेगा| इच्छा शक्ति का हमेशा बाह्य प्रदर्शन होता है| इसी जगह देखा जाता है मन के भीतर हरेक तरह के कार्य करने के लायक इच्छा होती है| चोरी, बेईमानी, बलात्कार...| यहीं मन पर नियंत्रण की जररूरत होती है| जब-जब मनुष्य दूसरों के हित की भावना नहीं रखता है वह स्वार्थी बन जाता है| और स्वार्थ के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाता है| इसलिए देखा गया है अच्छे लोग भी जिनमें कल्याण करने कि भावना नहीं रहती है, वो गलत कार्य कर बैठते हैं| किसी भी तरह के अच्छा करने की भावना इच्छा शक्ति से आती है| ऐसा देखा गया है कि इच्छा शक्ति में सकारात्मक भावना आती है तब मनुष्य गलत कार्य नहीं करता| मनुष्य जीवन में ख़ुशी नहीं चाहता है| वह शांति चाहता है| इन्ही कारणों से लोग भौतिक संसाधनों के पीछे दौरते हैं| जो मनुष्य भौतिक चीजों से शांति पाना चाहते हैं उसे ख़ुशी नहीं मिलती है| इसलिए किसी भी तरह के कार्य के लिए अपने पर नियंत्रण होना बहुत जरुरी है|

हमारा शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना है, इसलिए हमरा मन खान-पान, वातावरण, विचारों से प्रभावित रहता है| जैसे शराबी किसी भी शहर में जाकर शराब की दुकान खोजता है, सिनेमा का शौकीन सिनेमाघर खोजता है, खेल का शौकीन स्टेडियम खोजता है, इसलिए देखा गया है, मनुष्य का जैसा स्वभाव है, वैसा ही परिवेश चाहता है| इसलिए मनुष्य के खान-पान का चुनाव ढंग से होना बहुत जरुरी है| क्योंकि खाने से हमारे शरीर का सेल बनता है| यह सेल हमारे शरीर और मन को जोड़ता है, तब वैसा ही हमारा मन बनता है, फिर वैसा ही शरीर बनता है और इसी मानसिकता के कारण अपराध की प्रवृति बनती है| इसलिए किसी भी तरह के कानून से किसी भी तरह के अपराध को ख़त्म नहीं किया जा सकता| इसके लिए जररूरी है नैतिक एवं अध्यात्मिक शिक्षा के साथ उचित परिवेश का होना| देखा गया है दुनिया के कई देशों में बलात्कार जैसे अपराधों के लिए फांसी की व्यवस्था है| परन्तु देखा गया है उस देश में बलात्कार कि घटना बढती ही गई| मुझे दुःख नहीं होता, मुझे हंसी आती है, इंग्लिश मेम विलायती बोल वाले तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग, उच्च संस्कार वाले,  जिन्हें न तो किसी भी तरह के शोषण का ज्ञान है, न जानकारी, न हीं बलात्कार की परिभाषा की समझ है|

वैसे छोटे-बड़े किसी भी तरह बलात्कार को जायज नहीं ठहराया जा सकता| ऐसे प्रवृति का विरोध सामाजिक रूप से जमकर होना चाहिए| लेकिन विरोध का स्वरूप सिर्फ इंडिया गेट पर कैंडल जला लेने और किसी भी सरकार विशेष को गाली दे देने भर से नहीं होना चाहिए| उर्जा के साथ युक्ति का होना आवश्यक है| युक्ति यदि नहीं हो तो आन्दोलन दिशाहीन हो जाता है, उग्र हो जाता है| और ऐसे समय में देखा गया है कि सही मुद्दे गौण हो जाते हैं| जरुरी है यह जानना और समझना कि सेक्स जैसी प्रवृति किन-किन कारणों से पैदा होती है और बलात्कार विकृति जैसी विकृतियाँ कितने अंदर तक हैं| आज समाज में यौन इच्छा को बढाने और उकसाने का काम ज्यादा किया जा रहा है| गौर से देखने पर पाएंगे कि पूरे माहौल में मानो सेक्समय हुआ पड़ा हो| टीवी-फ़िल्म, विज्ञापन, साहित्य, इंटरनेट हर जगह स्त्री को सेक्स के रूप में परोसा जा रहा है| फ़िल्मी गानों, विज्ञापनों, रैंप ने समाज में सेक्समय माहौल की सबसे बड़ी भूमिका निभाई है| आदमी और औरत दोनों इस काम में लगे हैं| आईटम नम्बर पर नाचने वाली नायिका आखिर क्या कर रही है| अधिकांश हिस्सा स्त्रियों को सिर्फ भोगना चाह रहा है| उपभोक्तावाद, बाजारवाद असीमित लाभ की प्रवृति ने मिलकर जो माहौल बनाया है वह स्त्री-पुरुष को बराबर की हमजोली बनने से ज्यादा पुरुष को स्त्री को भोगने के लिए उकसा रहा है| सेक्स की मांग बेतहासा तरीके से बढ़ा दी गई है| यौन इच्छा की पूर्ति के लिए विवाह और वैश्यावृति के इन्तजाम कम पड़ते हैं| बेकाबू-हुई-यौन-इच्छा परिवार में मौजूद बच्चे, लड़के और लड़की दोनों को शिकार बनाते हैं| पुरुष बाल यौन शोषण का तरीका या अन्य तरीके अपना कर अपनी बेकाबू हुई यौन इच्छा को शांत करने में लगे हैं| परन्तु वह अतृप्त इच्छा पूरी नहीं हुई है| बल्कि वह ज्यादा बेकाबू हो रही है| सभी तरह के सर्वे ने यह स्पष्ट कर दिया है कि बलात्कार जैसे घटना में ९२% अपराधी परिवार, पड़ोसी और नजदीकी रिश्तेदार ही होते हैं| पिता, चाचा-चाची, साला-साली, भाई-बहन, चचेरी-मौसेरी-फुफेरी बहन के बीच बलात्कार जैसे घटनाओं को अत्यधिक रूप से बढ़ते हुए देखा गया है| स्थिति यह है कि कुछ दिनों के बाद पारिवारिक बदनामी के कारण अधिकतर केसों में समझौता होता देखा गया है|

दोस्तों! बलात्कार अभी थमी नहीं है बल्कि कभी नहीं थमेगी, क्योकि जब तक स्त्री को यौन-वस्तु के रूप में बदलने के तरीके बढ़ते रहेंगे| स्त्री को यौन वस्तु के रूप में दिखाने वाले हर चीजो का विरोध करना पड़ेगा| दोनों हाथो में लड्डू, ‘चित भी मेरी पट भी मेरी’ नहीं चल सकती| अतिरिक्त यौन इच्छा को सहलाने के लिए हर किस्म के मादकता और पोर्न भी आँखों के सामने रहे और घर कि स्त्रियाँ भी सुरक्षित रहे यह संभव नहीं है| किसी एक को चुनना होगा| पूनम पाण्डेय और जिस्म-२ की हेरोईन सन्नी लियोन के वास्तविकता को अकेले में मजे लो और दुर्घटना होने पर सरकार और कानून पर चिल्लाओ| यह कौन सा अनुशासन है| सोचिये किस तरह हम इन्टरनेट, समाज, फिल्मों, मीडिया विज्ञापनों में फैली अश्लीलता को कम कर सकते है| सोचिये बड़ी-बड़ी कंपनियो के स्त्रियों को यौन वस्तु में बदलने के चाल को कैसे नाकाम किया जाय| सोचिये जिस वक्त किशोर इन्टरनेट, फिल्म, विज्ञापन, पोर्न में स्त्री को भोगते हुए देखता है, उसके देह से खेलते हुए देखता है तो उसके मन में स्त्रियों की पहली छवि जो बनती है वो यौन वस्तु की ही है, माँ, बहन, बेटी के रूप में नहीं| इसके बाद किशोर साथी या दोस्त बनाना नहीं चाहते| सिर्फ उसे भोगना चाहते हैं| इसके लिए वे हर तरह के रिश्तों का जाल बुनना चाहते है| समाज में एक विचित्र मानसिक स्थिति पैदा होती जा रही है कि बलात्कार का मतलब ऊंचे या पढ़ी लिखी लडकियों के साथ जो बलात्कार हो वही बलात्कार है| न जाने इस देश में कितने मजदूर मालिक-जमींदार के हबस का शिकार होते आ रहे हैं| गाँव के पगडंडियों पर छोटा दुकान हो या लघु उद्योग या बड़े उद्योग, गरीब अबलाओं का शोषण हर जगह चला आ रहा है| कहीं नौकरी का लोभ, तो कहीं उधार का लाभ, तो कहीं कोई मज़बूरी| लोभ प्रत्येक घटना का सबसे बड़ा कारण है|

बढ़ते भौतिकवाद, बाजारवाद का यह आलम है कि समाज का हर व्यक्ति आसमान को छूना चाहता है| गरीबी तो एक अभिशाप ही है जो हर घटना-दुर्घटना का दरवाज़ा खोलती है| समाज में इन कारणों से आपसी सहमती से जो शोषण होता है, उसे क्या आप बलात्कार नहीं कहेंगे| यदि किसी के घर में उसका जीवन-साथी शारीरिक रूप से, मानसिक रूप से सुंदर है, इसके वाबजूद कोई व्यक्ति वैश्यावृति के लिए जाता है या अन्य औरतों के साथ सम्बन्ध बनता है तो क्या वह बलात्कार नहीं है? क्या चलती गाड़ी में ही ऊँचे घरानों के लड़कियों के बलात्कार को ही बलात्कार कहा जायेगा? यह सही है कि सेक्स व्यक्ति की मूलभूत जरूरतों में से एक है| बहुत कम ही सन्यासी इस जरुरत पर नियंत्रण रख सके हैं| सेक्स की स्थिति यह है कि आंकड़ों के अनुसार महिलाएं अपने लोगों के बीच ही असुरक्षित हैं| सवाल यह उठता है कि आखिर महिलाएं सुरक्षा को लेकर कहाँ आश्वस्त हो सकती हैं? दुष्कर्म के मामले सड़कों पर अकेली लड़की से ज्यादा खतरा उनके बीच होते हैं जहाँ वो सुरक्षित महसूस करती हैं| दरअसल वे कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं| चाहे वो घर हो या सड़क| क्या इस तरह के घटनाओं के लिए समाज, सरकारी तंत्र, व्यवस्था, सरकारी लोग, ऊँचे लोग दोषी नहीं हैं? मैं आंकड़ों के खेल में नहीं जाना चाहता| समाचारपत्र, टीवी, पत्र-पत्रिकाएं में सर्वे के द्वारा जो आंकड़ें दिखाए जाते हैं वो असल संख्या के मुकाबले बिलकुल ही नगण्य हैं| इस तरह के घटनाओं में हम यदि जाते हैं तो पाते हैं कि छोटे कस्बे, शहर, गाँव में इनकी संख्या अत्यधिक है जो ना तो समाचारपत्रों में आता है ना ही किसी तरह का केस दर्ज होता है| समाज के सामने जो घटनाएँ आ जाती हैं वो शायद दर्ज हो जाये लेकिन जो समाज, मीडिया, समाचारपत्रों में नहीं आ पाती, वो कभी दर्ज नहीं होता|



लेकिन जिन बलात्कार के घटनाओं में समाज को दिशा देने वाले और कानून बनाने वाले नामित हैं, उसे अगर समाज की सहमती मिल जाती है तो फिर हमारा दिशाहीन छात्र, नौजवान किस पथ के पथिक होंगे? कौन सी ऐसी पार्टी, कौन सा ऐसा लोकसभा या विधानसभा नहीं है जिसमे कुछ ना कुछ ऐसे जनप्रतिनिधि नहीं हैं जिसपर कई तरह के शोषण और बलात्कार का केस ना हों? एसोसियेशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफोर्म्स के रिपोर्ट को आप देख सकते हैं कि कानून व्यवस्था के क्या हालात हैं? फिर समाज ऐसे लोगों को क्यों चुनती है? जात-धर्म के नाम पर सारे बुराइयों को दबा दिया जाता है| ये कौन सा समाज है जहाँ की जनता गुजरात में उस व्यक्ति को चुनता है जो शीर्ष पद पर बैठ कर आदेश देता है कि पेट के बच्चे को निकाल कर जला दो? और वहां की जनता ही भेड़ीयों की तरह एक कमजोर समाज पर टूट पड़ता है| ना जाने कितने ही माँ, बहन, अबलाओं के इज्जत का तार-तार कर दिया जाता है| और उसके बाद उसी देश की जनता उसे देश का प्रधानमंत्री बनाने पर अमादा हो जाए| तब इंडिया गेट पर हाय-तौबा क्यों नहीं मचता? कैंडल क्यों नहीं जलाया जाता? न जाने कितने दशकों से मुंबई की धरती पर मराठी उत्तर भारतीयों के नाम पर कितने की इज्जत लुटी गयी, कितनो की जाने गयी| हमेशा से भीड़-तंत्र लोकतंत्र का गला घोटती रही है| उसके बाबजूद दस लाख से ऊपर जनता सड़क पर उतर कर एक आदमखोर व्यक्ति के सम्मान के लिए आगे बढ़ कर उसे पुरस्कृत करता है और उसके हर तरह के कुकर्मो पर पर्दा डाल देता है और उसे इस सदी का सबसे बड़ा महानायक बना देता है| तो हमारे नौजवान किशोर किस राह के पथिक हों?

 हर तरह के स्केंडल घटनाओं के बाद भी मुख्यमंत्री, मंत्री, राजनेता बनते है तो किशोर छात्र, नौजवान किस राह पर जायेंगे| स्टिंग ऑपरेशन में राजनेताओं को, ब्यूरोक्रेट्स को, सुधारवादी को, बलात्कार करते दिखाया जाता है उसे ही जनता राज करने भेज देती है| ऐसे ही रोल मॉडल बन जाते है| विजय माल्या, अम्बानी जैसे लोग ही आज रोल मॉडल है| फिर चिंता कहाँ रह जाती है इन छोटी बातो के लिए| जब देश का प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, मंत्री और राजनेतालोग सत्यसाई बाबा, डेरा सच्चा सौदा, आशाराम बापू, नित्यानंद स्वामी, सुधांशु रंजन, बाबा चंद्रास्वामी, स्वामी चिन्मयानन्द जैसे अनगिनत बाबाओं  का पैर जब छुएंगे, जब देश के बड़े उद्योगपति इन लोगो के पैर पड़ेंगे तो दिशाहीन नौजवान किस राह के पथिक होंगे? भंवरी देवी सेक्स स्केंडल, आइसक्रीम पार्लर स्केंडल को जब लोग भूल जाये तो स्केंडल को कौन रोकेगा| रंगा बिल्ला, बोबी मर्डर केस को जब समाज भूल जाता है तो दिल्ली की घटना को भूलने में कितना वक्त लगेगा| लोग समझते है कि एक ही गोपाल कांडा गोयल पैदा हुए| लेकिन जहाँ हर डाल पर उल्लू बैठा हो अंजाम गुलिस्ता क्या होगा? घर का रखवाला ही जब बईमान हो जाये फिर उस घर को कौन बचा सकता है | सत्य साईं बाबा पर दर्जनों बार बाल यौन शोषण के आरोप लगे है| क्या उसके लिए हाय तौबा मची? नित्यानंद स्वामी, बाबा आशाराम बापू के आश्रम का कौन सा घिनौना हरकत समाज के सामने नहीं आया? लेकिन क्या इन लोगो के चौखट पर लोगो की भीड़ कम हुई? फिर यह समाज हाय-तौबा क्यों मचाती है जो खुद सब चीजो को बढ़ावा देती है| हरियाणा के खाप पंचायत जिसे दुनिया जानती है कि वह कोई कानून नहीं मानता बल्कि मुगलिया फरमान देता है सिर्फ परंपरा के नाम पर| आज तक क्यों दिल्ली के नौअवानों ने खापों के खिलाफ कैंडल नहीं जलाया? जो लोग सड़कों पर हाय-तौबा मचा रहे हैं वे कौन से दूध से धुले हुए हैं? इन जैसे लोग जो समाज में सबसे पहले भ्रूण हत्या कर बेटियों को मार देते हैं वैसे नौजवान ही औरत के सम्मान का ठेकेदार बनेंगे?

जिन नौजवानों को अपने कर्म और पुरुषार्थ पर भरोसा नहीं हो, जो भाग्य पर जीते हैं, जो भगवन की भी पूजा ग्रह-नक्षत्र के अनुसार करते हों, कहीं दिन के उजाले में लाखों लीटर सरसों तेल (शनि देव को) तो कहीं भगवान को लाखों लीटर शराब चढ़ाये जाते हैं, यदि ऐसा समाज सिर्फ कैंडल जला कर विरोध करता है तो यह महज दिखावा है| भगवन बुद्ध ने कहा था कि मदिरा एक ऐसा नशा है जो हर तरह की बुराइयों का जड़ है और दूसरी तरफ नासमझ भीड़ जो शराब को अपना जीविका के साथ-साथ अपना फैशन बना रहे हैं| जो भगवन को भी शराब से खुश करना चाहते हैं| उस भीड़ से हम किस तरह के समाज बनाने की उम्मीद कर सकते हैं? मैं उन लोगों से जानना चाहता हूँ जो इंडिया गेट पर कैंडल जलाना चाहते हैं, क्या उन्हें मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ के आदिवासी की चीखें नहीं सुनाई देती? उस गरीब अनपढ़ लड़की पर हुए अत्याचार पर क्रोध क्यों नहीं आया? देश में अमानवीय कुकर्म करने वाले डॉक्टर, वकील, पदाधिकारी पर खून क्यों नहीं उबलता? पटना के डॉक्टर के द्वारा बच्ची का रेप किया गया| इस पर हाय तौबा क्यों नहीं मचती? बलात्कारी साधु-संत, चर्च मंदिरों में हुए बलात्कार के खिलाफ आक्रोश क्यों नहीं होते? कानून बनाने वाले नेताओ को भट्टी में क्यों नहीं झोका जाता? गुवाहाटी के बीच बाज़ार में जब मासूम लड़की को घंटो छेड़ा जाता है और वहां सरकार और मीडिया मजाक बना कर परोसती है तो उस घटना पर गुस्सा क्यों नहीं फूटता| कोई कहता है लिंग काट लो| किस किस का लिंग काटोगे? कही से आवाज उठती है फांसी दे दो| सर्वविदित है कि हमाम में सब नंगे है; लिंग काटना और फांसी देना समाधान नहीं है| कानून सशक्त हो और वह ईमानदार और सशक्त रूप से लागू हो, सवाल यह है|

लेकिन इससे भी बड़ा सवाल है मनुष्य का बदलाव, चिंतन में बदलाव, मनुष्य के आहार में बदलाव, यह बड़ा सवाल है| बिना मनुष्य के बदले समाज नहीं बदलेगा| न ही बलात्कार के घटनाओं को रोका जा सकता है| यह बढ़ेंगे ही| दिल्ली में जिस तरह स्त्रियों के सम्मान के लिए हाय तौबा मचाया गया है| मैं इससे सहमत नहीं हूँ| दिल्ली में इससे बड़ा मामला रंगा बिल्ला में बवाल आया था| क्या बलात्कार रुक गया? उससे भी ज्यादा गांवो और कस्बो में बलात्कार बढ़ गया? उसे कौन सा कानून रोकेगा ? केंडल मार्च रोकेगा?  बुद्धिजीवी जो समाज को सुन्दर बनाना चाहते हैं वे शिक्षा नीति के आमूल-चूल परिवर्तन के लिए दबाव डालें| दूसरा शराब, दहेज़, भ्रूण हत्या, पाश्चात्य आहार-विहार, विचार के खिलाफ सख्त से सख्त कानून बने, तभी हम समाज का निर्माण कर पाएंगे | और इस तरह के घटनाओं को रोक पाएंगे|  

Monday 24 December 2012

“युगद्रष्टा”


“युगद्रष्टा”


किस गहन चिंतन में-डूब गया है तू,
क्या ठान ली है स्वर्ग धरा पर लाने की ?
फलक के किन तारों को तू देख रहा,
या इच्छा है चाँद को ही उतार लाने की ?
प्रकाश खोजने अंधकार में मारा-फिरेगा,
मातम मानती माँ का क्या तू गोद भरेगा ?
कितने बहनों का भाई बन पीड़ा सहेगा,
असुरों से अकेले क्या तू लड़ता रहेगा ?
चंडाल चौकड़ी से आवृत यह शहर है,
दमन का दौड़ अंधा कातिलों का कहर है |

फिर क्यों आयो हो यहाँ पुरुषार्थ जगाने,
जख्में-दिल पर मोहब्बत का दरिया बहाने ?
क्या चाहते हो बिगुल क्रांति का बजे,
सद्भाव से मानवता पुन: सजे-धजे |
तो आततायी का सिर कलम करना पड़ेगा |
बीज नैतिकता का धरा पर बोना पड़ेगा |
सुख-शांति-समृद्धि का सर्वत्र राज हो,
जो हैं सहज-सरल, उनके सिर ताज हो |
असंभव नहीं जगत में तारों को तोड़ लेना,
चाह में दम हो तो नभ भी नमन करेगा –
चाह में दम हो नभ भी नमन करेगा |


हमारी सारी शक्ति दूसरों के अवगुणों की खोज में क्षय हो जाती है | काश ! इन अवगुणों को स्वयं में खोज कर उन्हें परिष्कृत कर पाते तो समाज कितना सुंदर हो जाता |

Saturday 22 December 2012

“पथिक”


“पथिक”


राग–द्वेष से विरक्त वियोगी,
जेहन में जगअवसाद लिए |
शक्ति-श्रोत नवयुवातुर्क  का,
रंग ओढ़ दधिचि गरल पीए |
जज्वा है जलधि मापने का,
नभ भी नब्ज पहचान रहा |
पग जिधर चला झूंड चली,
प्यासा-पथ विकल बेजान रहा |
पूर्वांचल का पथिक धरोहर,
याचक समरसता का सरोवर |
दनुज से जूझने मचल पड़ा,
वह स्वर्ग लूटने निकल पड़ा |


भौतिकता की भूख हमारे सारे कुकर्मों का उद्गम है | नैतिकता के

मर्यादाओं का पालन कर इसे नियंत्रित किया जा सकता है |