Wednesday 22 June 2011

नेता की झूठ


एक बार राज्य के सभी नेता बस में सफर कर रहे थे| बस दुर्घटनाग्रस्त हो गयी| कुछ नेता वहीं दम तोड़ दिए और कुछ घायल हो गए| किसी का हाथ टूटा तो किसी का पैर लेकिन गाँव वालों ने सभी (जो घायल थे, पर जिंदा थे; उन्हें भी) को दफना दिया| पुलिस आई, पूछताछ करने लगी – सभी तो मरे नहीं होंगे, कुछ घायल भी होंगे| सभी को क्यों दफनाया? गाँव वालों ने जवाब दिया, “नेता लोग का भाषण वर्षों से सुनते आ रहे हैं| सभी नेता झूठ ही बोलते आये हैं| जो नेता बोलते थे कि मैं जिन्द्दा हूँ मुझे बचाओ, हमें लगा कि यह बात भी ये नेता लोग हमेशा की तरह झूठ ही बोल रहे होंगे, इसलिए हमने सबको दफना दिया|
जबकि वे बोल रहे थे कि वे जिंदा हैं, उन्हें नहीं दफनाया जाये|

सफलता के रहस्य



महान चिंतक सुकरात से एक व्यक्ति ने सफलता का रहस्य पूछा| सुकरात उस व्यक्ति को नदी के किनारे बुलाया| उस व्यक्ति को अपने साथ लेकर नदी के धारा में आगे बढ़ने लगे| पानी जब गले तक आ गया तो सुकरात ने उसे गर्दन से पकड़कर पानी के अंदर डुबो दिया; जब उसका शरीर नीला पड़ने लगा तब सुकरात ने उसे छोड़ा; और बाद में उससे पूछा, “जब तुम्हारा सर पानी के अंदर था तब तुम्हे सबसे ज्यादा किस चीज़ की इच्छा थी?”
उस व्यक्ति ने जवाब दिया, “हवा की|
तब सुकरात ने कहा, “सफलता की इच्छा यदि इतनी ही गहरी हो जैसी डूबने वाले व्यक्ति के लिए हवा की होती है, तो उसे सफलता जरूर मिलेगी | इसका यही एकमात्र रहस्य है, दूसरा और कुछ नहीं|

मशहूर फ्रांसीसी चिन्तक ब्लेज पास्कल के पास एक व्यक्ति आया और बोला कि अगर मेरे पास भी आप जैसा दिमाग हो तो मै भी आप और सुकरात जैसा बन सकता हूँ| पास्कल ने जवाब दिया, “सुकरात जैसा सुंदर और बेहतर इंसान बनो, तुम्हारा दिमाग खुद-ब-खुद मेरे और सुकरात जैसा हो जायेगा|

सफलता कंठस्त करने या खूब पढ़ने में नहीं मिलती, सफलता समझने और अमल करने से प्राप्त होती है| इसीलिए आप अगर किसी व्यक्ति या समाज के लिए काम करते हैं तो परमात्मा के खातिर, अपने सद्विचारों पर ईमानदारी से अमल कीजिये|

Monday 20 June 2011

धन हमेशा अहंकार और अनर्थ को जन्म देती है



अर्थम्, अनर्थम्, या यदि वा अचलम् : धन यदि चलायमान हो तो वह जगत का कल्याण करती है, और यदि किसी व्यक्ति विशेष की मूर्ति बन जाये, रुक जाये तो अनर्थ को पैदा करती है| जैसे, पानी को यदि चारों तरफ से रोक दिया जाये तो यह प्रकृति के खिलाफ होगा और वहाँ कजली (काई) जम जायेगी, फिर क्या जैसे ही कोई स्नान करने जायेगा तो फिसल कर डूब जायेगा, जीवन का अंत हो जायेगा; वैसा ही परिणाम धन को रोकने से भी होता है|

धन यदि चमत्कारी बाबाओं, संतों, धनपशुओं और नेताओं की शोभा बढाती है तो सिर्फ अहंकार, तृष्णा और घृणा को ही जन्म देगी| अहंकार, तृष्णा और घृणा जैसे जहर, मानव सभ्यता को समाप्त करने के लिए पर्याप्त है| मेरा मानना है कि इससे कई गुणा कम धन जो सत्यसाईं के घर से मिला, यदि यही धन अगर किसी आम आदमी या नेता के घर से मिला होता तो मीडिया ने पुरे देश में हाय-तौबा मचा दिया होता| सरकार मीडिया के डर से आम आदमी को दबोच कर वाहवाही लूटने में जुट जाती| वाह! क्या तत्परता दिखाती है सरकार! बेचारी पब्लिक सरकार की जय-जयकार करते नहीं थकती और साथ ही सोने, चांदी, हीरे, जवाहरात और रुपये की पूजा करने वाले बाबाओं की भी जय-जयकार करते रहते हैं| तर्क यह दिया जाता है कि लोगों से इकठ्ठा किया गया धन, आम लोगों के कल्याण के लिए ही लगाया जा रहा है| यदि ये बाबा लोग इतने ही मेहरबान होते तो आज देश में ना कोई भूखा, ना कोई गरीब, ना कोई शोषित और ना ही कोई अशिक्षित या बेरोजगार होता| देश की ये समस्यायें जड़ से ही समाप्त हो गईं होती| देश के आम आदमी राम राज्य की तरह खुशहाल होते| चारों तरफ अमन ही अमन होता|

मेरा मानना है कि यह जो विदेशों से काला धन वापस लाने के लिए प्राण-प्रतिष्ठा दिया जा रहा है, यह जरूरी है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता, परन्तु पहले अपने ही देश में अपने ही गुरु, बाबाओं के पास कालेधन महाभंडार के रूप में जो अकूट संपत्ति जमा है (लगभग डेढ़-पौने दो लाख करोड़ रुपया) उसे कौन निकलेगा? उसके लिए कौन समाजसेवी अपनी जान देंगे? देश के भीतर का काला धन मनुष्य के कल्याण में लगा दिया जाये तो देश की कई आर्थिक समस्यायें खत्म हो जाये| परन्तु इन बहुरूपिये भगवान के खिलाफ कौन बोलेगा – ना जनता! ना कानून! और ना सरकार! भगवान के लिए किताबों में लिखा है, कोई तर्क-वितर्क नहीं होना चाहिए... भगवान का मतलब से विवेक और ज्ञान का कोई औचित्य नहीं, सिर्फ आँख बंद कर समर्पित हो जाना| भगवान को समझने के लिए, आस्था और विश्वास किसी व्यक्ति को इस बात की इजाजत नहीं देती है कि वह विवेक या ज्ञान का इस्तेमाल करे| इसी तर्क के कारण बाबाओं के मौज ही मौज हैं|

भक्ति और शक्ति में सब कुछ जायज है| इन बाबाओं के पास कहाँ से आता है इतना बड़ा खजाना? क्यों नहीं इसे सार्वजनिक किया जाता है? यह जो सत्य साईं बाबा के घररूपी मंदिर से इतना बड़ा खजाना निकला! मेरा मानना है कि यह तो ट्रेलर मात्र था, असली रूप तो अभी बाकी है| लगता नहीं की कभी पूरा पिक्चर देखने को मिलेगा| क्या बाबा रात भर खजाने की पूजा करते थे? इन बाबाओं के लिए धन ही भगवान है? धनोपार्जन में ही बाबाओं का सब कुछ निहीत है? सरकार को चाहिए की तुरंत साईं के सभी ट्रस्ट को अपने कब्ज़े में करे या सरकार के निगरानी में इनका संचालन हो| ट्रस्ट की संपत्ति को सिर्फ अस्पताल और स्कूल में ही लगाया जाना चाहिए ताकि गरीब लगों की जिंदगी बच सके और गरीब परिवार के बच्चे निशुल्क और अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सकें|

ये बाबा लोग जो भगवान का चोला पहनकर लूट रहे हैं और समाज में अंधविश्वास को बढ़ावा दे रहे हैं, इसपर सरकार और कानून के मुताबिक रोक लगना चाहिए| मनुष्य और समाज के लिए अंधविश्वास, कर्मकाण्ड आदि अत्यंत ही घातक हैं, ये मनुष्य को भाग्यवादी और किस्मतवादी बना देते हैं| ये लोग मनुष्य को भगवान, धर्म और अंधविश्वास के भरोसे जीने के लिए विवश करते हैं| लोग इन बाबाओं पर अपने जीवन को छोड़ देते हैं|

खास तौर पर, जिस तरह सत्य साईं, लोगों से ठगे हुये सोने और चांदी के अम्बार को अपनी जागीर समझकर अपने पूजाघर और सोने के कमरे में छिपाए हुये थे, इससे साफ़ जाहिर होता है कि किसी तरह से सही मायने में ये संत या सन्यासी नहीं हो सकते| ऐसे लोगों को समाज के सामने नंगा करना चाहिए| जब तक बेचारी जनता के सामने इनलोगों के चाल-चरित्र, कुकर्म और कारनामों का भंडाफोड़  नहीं होगा, तब तक ये बाबा आम जनता के भगवान ही बने रहेंगे, आस्था और विश्वास के नाम पर लूटते ही रहेंगे और धोखा देकर आवाम के बदौलत समाज में स्थापित रहेंगे|

जरुरी है इनलोगों के भीतर भय पैदा हो| यह भय सिर्फ आवाम ही इनके भीतर पैदा कर सकती है| इसलिए आवाम ही इन तथाकथित भगवान को समझे| राष्ट्र, समाज और मानव जाति के सभ्यता को बचाना है तो इन बाबाओं के काले कारनामों को रोकना होगा|
न्याय, कानून और सरकार को भी (बाबाओ के) भय से निकलकर कठोर निर्णय लेना होगा| बाबाओं को समाज में स्थापित होने से रोकना होगा| तभी राष्ट्र का कल्याण संभव है|

भारत को भगवान कि नहीं पुलिस की पूजा करनी होगी


कपिल शर्मा की घटना ने एक बार फिर पुलिस बर्बरता का ज्वलंत और भयावह सवाल देश और आवाम के बीच ला खड़ा किया है| वैसे अंग्रेजों के समय और आज़ादी के बाद हिंदुस्तान में आज तक बहुत बड़ा फर्क देखने को नहीं मिला| पहले हम विदेशी हुकूमत के ज़ुल्म से त्रस्त थे और वर्तमान में 
अपने ही देश के अपने लोगों के ज़ुल्म से त्रस्त हैं| हमारे सभ्य समाज के लोगों ने इस तरह की अवधारणा समाज में पैदा किया है कि पाकिस्तानी ज़ुल्म गलत है; तो क्या हिंदुस्तान में अपने लोगों के द्वारा होने वाला ज़ुल्म जायज है| अंग्रेज गलत थे हिन्दुस्तानी ज़ुल्म करने वाले सही! दो तरह की बातें मानव जाति या मानव उत्थान के लिए कैसे उचित ठहराया जा सकता है? ज़ुल्म तो आखिर ज़ुल्म ही है| ज़ुल्म दुनिया में कहीं हो या किसी कोने में हो उसे अलग नजरिया से या फर्क करके नहीं देख सकते| दुनिया में या राज्य में जबसे पुलिसिया संस्था बनी और राज्य के द्वारा विशेषाधिकार मिला उसी समय से उस विशेषाधिकार का दुरुपयोग होना शुरू हो गया| सत्ता/सरकार ऐसा मानती है कि कानून व्यवस्था के बगैर सही समाज की कल्पना नहीं की जा सकती लेकिन पुलिस संस्था अपने व्यवस्था या व्यावहारिक पक्ष को सामाजिक (आज तक) नहीं बना पाई| आपको यह समझना होगा कि इस संस्था को चलाने वाले जो व्यक्ति हैं हमारे ही शिक्षा व्यवस्था और सामाजिक व्यवस्था के उपज हैं| जब तक व्यक्ति के भीतर ईमानदारी, चारित्रिक, आपसी समझ की धारणा, वफादारी, सही योग्यता, ज्ञान और निस्वार्थ सेवा के भाव नहीं होगी तब तक कोई भी संस्था सुंदर नहीं हो सकती| संस्था या व्यवस्था को सुंदर होने के लिए संचालन करने वाले व्यक्ति को सम्पूर्ण जीवन में अच्छा होना होगा| तब ही विचार अच्छा हो पायेगा| देखा गया है विचार के कारण ही चरित्र का निर्माण होता है| आप ही बतायें कि बगैर नैतिक शिक्षा के चरित्र का निर्माण कैसे  संभव है| पुलिसिया व्यवस्था किताबी ज्ञान से संचालित होती है| ऐसा तो है नहीं की इस संस्था में सरकार ने महर्षि नारद, महात्मा बुद्ध जैसे संतों की भर्ती कर दी है; सरकार की कोई ऐसी पाठशाला भी नहीं है ना आगे कोई योजना है कि समाज बनाने या संस्था को चलाने के लिए सुंदर व्यक्ति का निर्माण हो| सरकार के सिलेबस में सिर्फ मानव-मशीन या ‘जानवर’ बनाने की व्यवस्था है| इसके बहार सरकार चिंतन करना अभी उचित नहीं समझती| सत्ता, पैसा, अभाव और सरकार की व्यवस्था के कारण ज्यादातर लोग अपराध को जीने का जरिया बना लेते हैं| नारद जी और बुद्ध ने तो रत्नाकर को क्रमशः बाल्मीकि और ऊँगलीमाल जैसे को संत बना दिया; फिर हमारी व्यवस्था ज़ुल्म करके अपराध के रास्ते पर जाने के लिए क्यों विवश करती है? एक बात को समझना जरुरी है कि ज़ुल्म का सबसे बड़ा कारण है मनचाहा धनोपार्जन और गलत तरीके से सम्मान, वैभव और सुख की आकांक्षा का होना|

देखा जा रहा है, धन और अहंकार सम्पूर्ण जीवन मूल्य के साथ मानवी मूल्य को भी नष्ट कर दिया है| फिर आप किस तरह की उम्मीद पुलिसिया व्यवस्था से रखना चाहते हैं| बिल्लीसे कहो कि तुम्हे चूहे की रखवाली बहुत अच्छे तरीके से करनी है; आपके विवेक पर छोड़ देता हूँ क्या इस जन्म में यह संभव है?
हमलोग २१ वीं सदी में प्रवेश कर चुके हैं| तकनिकी रूप से हमारा देश और दुनियां के लोग दक्ष हो चुके हैं| पूरी दुनिया में नकली मानवाधिकार की बात बढ़ा-चढ़ा कर की जा रही है| दुनिया के सभी लोकतान्त्रिक और कल्याणकारी देश मानवाधिकार जैसी गंभीर समस्या को पहले क़तार में रखती है| इसके बावजूद भी मानवाधिकार के खिलाफ, पुलिस चुनौती बनकर, पुरे दुनिया के लिए मुसीबत बनकर खड़ी है| दुनिया के लगभग सभी देशों-राज्यों के संवेदनशील नेता के लिए चिंता का विषय है कि कैसे इस पुलिसिया विभाग के अमानवीय पक्ष को खत्म किया जाये| यह एक त्रासद पूर्ण विकराल सत्य के रूप में समाज के सामने खड़ा है| पुलिस के इन बर्बर रूप को यदि खत्म नहीं किया जा सकता तो कम से कम, कम तो किया जा सकता है|

वैसे आज दिल्ली पुलिस ने जो इस जघन्य अपराध को अंजाम दिया है, यह कोई नयी घटना नहीं है| फर्क इतना है कि कपिल के साथ जो घटना घटी उसको कुछ अखबार वालों ने गंभीरता से लिया| थोड़े लोगों के बीच प्रतिक्रिया भी आई है| अन्य कई घटनों के तरह इसे भी प्रमुख टी.वी.-अखबारवाले ने ना तो गंभीरता दिखाई ना ही संवेदना| कॉर्पोरेट और अखबार हमेशा अपने नज़रिए से चलती है| आम आदमी के जीवन की कीमत इनलोगों के नज़र में बहुत तुच्छ रहा है| अगर आम आदमी के चलते प्रेस-कॉर्पोरेट कभी गंभीर भी दिखी है तो वह भी अपने फायदे के लिए| कपिल एक व्यक्ति हो सकता है परन्तु ‘घटना’ राष्ट्र, समाज और व्यवस्था के लिए काफी गंभीर चुनौती है|

दिल्ली के तिहार जेलों में १०-२०% बंदी को छोड़ दिया जाये तो ७०–८०% बंदी सामाजिक, राजनैतिक, पारिवारिक और सामान्य पारिस्थिवस जेल में बंद हैं अर्थात ये सब पेशेवर अपराधी नही हैं; लेकिन बहुत कम ही ऐसे बंदी होंगे जिसे मानसिक, शरीरिक, आर्थिक प्रताड़ना दिल्ली पुलिस के द्वारा नहीं दी गयी होती है| यदी सरकार जेल में प्रवेश के समय नए बंदी का पूरा विडियोग्राफी की व्यवस्था करती है तो इसकी सच्चाई दुनिया के सामने लायी जा सकती है| दुनियाँ तब समझ पायेगी कि पुलिसिया व्यवस्था न्याय के लिए बनी है या अन्याय के लिए| जो ज़ुल्म कपिल पर हुआ वह घोर अपराध है परन्तु इससे बड़े-बड़े जघन्य अपराध पुलिस के द्वारा छोटे-छोटे गाँव, कस्बे और शहरों में रोजमर्रा की बात है| पुलिस को लगता है कि राष्ट्रपति पुरस्कार या अन्य कोई पुरस्कार और पढ़े-लिखे समाज की वाहवाही, हासिल करने का यही एक मात्र रास्ता है | उन्हें तो बस झूठ और ज़ुल्म के नीव पर अख़बारों में जय-जयकार और खोखली सम्मान मिलनी चाहिए|

बाबा साहेब के संविधान से पुलिस का संविधान बिल्कुल अलग है| संविधान कहता है हजारों दोषी छूट जाएँ कोई बात नहीं परन्तु एक भी निर्दोष नहीं फँसना चाहिए, परन्तु पुलिस की मुखेर कानून कहती है कि एक भी ताकतवर, पैसे और पैरवीवाला, राजनीतिज्ञ, अपनी जाति वाला नहीं फँसना चाहिए चाहे जितना निर्दोष मारा जाये| पुलिसिया ज़ुल्म के सामने तोजो और हिटलर जैसा क्रूर शासक का भी इतिहास बहुत छोटा है| हमारे मीडिया भाई का विचार, मन, कर्म, चरित्र, ज्ञान, स्वाभिमान, वचन को खरीद लिया जाता है कॉर्पोरेट व्यवस्था के द्वारा| भला यह कैसे संभव है अच्छे व्यक्ति जानवर के तरह बिकेंगे भी और पशु के तरह उनका स्वभाव या क्रिया या प्रतिक्रिया ना हो| उन्हें तो वही दिखाना और लिखना है जिससे इनकी टी.आर.पी. और पाठक बढती है|  कॉर्पोरेट जाल के सामने  मीडिया भाई की क्या औकात है कि वह अपने मन की मर्ज़ी चला लें| आप जनता ही कहते हैं कि आर.एस.एस. के बगैर बी.जे.पी. कुछ नहीं, दस जनपथ के बगैर सरकार कुछ नहीं, बाल ठाकरे के बगैर मुंबई कुछ नहीं, जयललिता, करूणानिधि, लालूजी, नितीश जी के बगैर जब कोई पार्टी या सरकार कुछ नहीं तो फिर मालिक के बगैर नौकर की क्या बिसात! बेरोजगारी के युग में तुम नहीं तो कोई और सही| इसके बावजूद आपको लगता है कि किसी कस्बे-गाँव में हो रहे ज़ुल्म को सरकार, और ऐसी कानून व्यवस्था के खिलाफ कोई साहस दिखायेगा? आप ने गुजरात के दंगे में पुलिस का विभत्स चेहरा देखा ही| मुंबई में फर्जी मुठभेर का वीभत्स रूप देखा ही| दिल्ली में फर्जी मुठभेर को देखा ही| उत्तर प्रदेश के भट्ठा परसोल में नंगा नाच करते पुलिस को देखा ही, नहीं देखे होंगे तो सी.डी. पर जरुर देख लेंगे, समझ में आ जायेगा इनके भक्षक होने का चेहरा| मै तो चंद नाम मात्र आपके सामने रख रहा हूँ|

लाखों, हजारों नरसंहारी, फर्जी मुठभेर, फर्जी जातीय और मजहबी दंगा; इतना ही नहीं हमारे  देश का पुलिसिया इतिहास फर्जी मुकदमा और मुठभेर का लंबा फेहरिस्त पेश करता है (जो आप कही भी इन्टरनेट पर देख सकते हैं); ऐसे ही गुण परिपूर्ण है हिंदुस्तान की पुलिस| इस पुलिस की जितनी भी गुणगान की जाये, कम होगी| भारत के लोगों को एक दिन भगवान की पूजा छोड़ पुलिस की पूजा करनी होगी, जयदरोगा-जयदरोगा करना भारत के लोगों की विवशता हो जायेगी| वैसे भी इस देश में देखा गया है; भय की पूजा हमेशा से होती रही है| हमलोग सांप की पूजा करते ही हैं, रावण की भी पूजा करते ही हैं, ऐसे अनगिनत परंपरा है जो सिर्फ हमारे मासूम समाज में ही संभव है| इसी पुलिस के कारण पंजाब की समस्या विकराल हो गयी; अपराध और नक्सल दिनों-दिन बढाता जा रहा है तो फिर हमारी पढ़े-लिखे समाज के लोगों को सबसे ज्यादा भरोसा इसी पर क्यों है; इसीलिए, क्योंकि उनके मासूम बच्चों की हत्या नहीं हुई, उनके परिवार के सदस्य बलात्कार का शिकार नही हुये, मुठभेर में मरने वाले उनके लोग नहीं होते| फर्जी मुठभेर में मरने वाले लोग (तथाकथित) सभ्य समाज के नहीं होते या किसी राजनीतिज्ञों के घर के नहीं होते| किसी भी तरह का पुलिसिया ज़ुल्म रानीतिज्ञों, स्वयम्भू भगवान, संत, साधू या सरकार पर नहीं होती| भारत का पुलिसिया ज़ुल्म भी जात, धर्म, मजहब पूछकर ही दी जाती है| वाह रे सरकार! इतने सारे आपके पुलिस के पास गुणों के सर्टिफिकेट हैं तब न आज़ादी से आज तक इतने मेहरबान हैं आप उनपर! मेहरबानी होगी क्यों नहीं; सरकार के मंत्री या नौकरशाह या सरकार को चलाने वाली व्यवस्था वाले लोगों पर तो कभी ज़ुल्म हुआ नहीं| यह ईमानदार पुलिस तो बहुत ही ईमानदारी से सरकार, नेता और कॉर्पोरेट लोगों की जान जो बचाते आये हैं| सभी नेता के अवगुणों को ढकते जो हैं| अपने-अपने राज्य या देश की सरकार की चमचागिरी, दलाली करने में कोई कसर नहीं छोड़ती| नेता तो नेता, नेताइन, बाल-बच्चे सबके दरबारी!...फिर क्या दिक्कत, इस अहंकारी, बर्बर, जुल्मी, निर्मोही पुलिस को| याद रखिये, इस पुलिस का एक और गुण है; उन्हें गिरगिट की तरह रंग बदलते देर नहीं लगता है|

याद नहीं है तो फिर से याद ताज़ा कर लीजिए| १२ घंटे भी नहीं हुये थे इस पुलिस को जयललिता का नमक चखते ही करूणानिधि से ५ साल के खाए नमक को भूल गया और फिर क्या था शुरू हो गया नंगा तांडव करूणानिधि के साथ, यही कारनामा फिर करूणानिधि के बनते हुआ| मायावती के पुलिस के बारे में कुछ भी कहेंगे तो कम ही होगा| नरेंद्र मोदी जी ने तो गुजरात के पुलिस को आर.एस.एस. का शपथ पत्र पढ़ा दिया| वैसे यह भी कहा गया सबसे लंबी सत्ता चलाने वाली वामपंथी सरकार ने तो एक-एक सिपाही, कर्मचारी को मार्क्सवादी पार्टी का मेम्बर ही बना दिया| कितनी गाथा-कथा सुनेंगे इस कलयुगी रावन की? मुझे तो बहुत बात कहनी थी पर मन में भय लगता है कि यह सरकारी व्यवस्था और बड़ा बाहुबली ना घोषित कर दे|

वैसे आवाम के लिए ज़रूरत है भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद या सुभाष चंद्र बोस के राह को चुनने की| बगैर इस राह के कुछ भी संभव नहीं दिखता| वैसे आपके सामने हजारों कपिल की कहानी मैंने सुनाई, परन्तु उस ज़ुल्म को कौन रोकेगा? भ्रष्टाचार या इस तरह के ज़ुल्म में क्या फर्क है? चाहे भ्रष्टाचर का ज़ुल्म हो या शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, सामाजिक ज़ुल्म दोनों को अलग चश्मे से हमारी समाज या सिविल सोसाइटी के लोग कैसे देख सकते हैं? भ्रष्टाचारी के लिए तो लोकपाल बिल बनेगा पर इस जुल्म के लिए कब कानून बनेगा? कौन बनाएगा? कौन सी सरकार इतनी संवेदनशील होगी जिससे किसी व्यक्ति के गुप्तांग में पेट्रोल ना डाला जाये? किसी को हीटर पर नंगा ना बैठाया जाये? किसी को उल्टा लटकना ना पड़े? बेटे के नाम पर पिता के साथ अत्याचार, पति के नाम पर पत्नी के साथ अत्याचार? कब तक चलेगा?

बिहार के ज़ुल्म के बारे में भी सभ्य समाज को जानना चाहिए| लाखों कपिल पर प्रत्येक रोज ज़ुल्म होते हैं| नेपाल से भी बड़ा राज और कानून का डंका है यहाँ पर – ‘सैयां भइल कोतवाल तो अब डर काहे का’ की कहावत यदि कहीं चरितार्थ है तो वह है बिहार में| क्या मजाल है कोई मंत्री, जनप्रतिनिधि या नेता थानेदार के सामने कुछ कह ले या बैठ जाये|

ज़ुल्म का सबसे बड़ा इन्तहा गुजरात में देखने को मिला और दूसरा अपने सहोदर भाई के ही राह पर चलने वाले हैं- बिहार में| बिहार के थाने में गुप्तांग और हीटर पर नंगा बैठाने की बात तो दिनचर्या है| मानो जैसे हम पानी पीते हैं वैसे ही उन्हें पेट्रोल पिलाया जाता है| यह बहुसंख्यक पीड़ित समाज, चीख-चीख कर न्याय की भीख मांग रही है- बचाईये इस ज़ुल्म से, बचाईये इस काले कानून से| कोई तो फरियादी सुनने आये|

मैंने जो कुछ देखे हैं बेचारे गरीब की दशा, अपने आप पर रोना आता है| लगता है ऐसे कमज़ोर कायर समाज का हिस्सा बनकर जीने से ज्यादा अच्छा है कायर के तरह मर जाना! सबके जुबान से एक ही आवाज़ आती है – घोर ज़ुल्म हुआ, दंड मिलना चाहिए, कानून बनाना चाहिए, किसी को भगत सिंह बनना चाहिए| कौन बनाएगा कानून जब सरकार जानती है कि मीडिया और धनपशु ऐसे ज़ुल्म के साथ हों, कौन बचायेगा आपको जब जनप्रतिनिधि को खुद को ही बचने की चिंता हो| सारे नेता जब काले धन के जुगाड़ में हों, शीशे के घर में बैठकर कौन चलाएगा दूसरे के घर पर पत्थर? आप कहते हैं की भगत सिंह बने पर मेरे घर में नहीं पड़ोस के घर में; पडोसी कहता है मेरे घर में नहीं बगल के घर में| तो क्या कभी भूल से भी भगत पैदा लेगा? एक बात जरूर अपने भीतर बैठा लीजियेगा, अभी आग पड़ोस के घर में लगी है, वहीँ पर इसे बुझाने की कोशिश करें अन्यथा इस आग की लपटें आपके घर को भी जला ले जाएगी|

Saturday 18 June 2011

नैतिक मूल्य के बगैर मानव जीवन का कोई औचित्य नहीं



(क) छत्रपति शिवाजी का राज्याभिषेक हो रहा था, दरबार में उपस्थित सभी राजा-महाराजा, हीरे-जवाहरात, स्वर्ण मुद्राओं से सजी थालियाँ इत्यादि छत्रपति के सम्मान में भेंट स्वरूप समर्पित कर रहे थे| तभी किसी राजा ने उर्वशी से भी अत्यधिक मोहक, एक दिव्य सुन्दरी को राजा के समक्ष प्रस्तुत किया| शिवाजी ने कहा, “उठाओ तो पर्दा, देखें तो परदे के भीतर क्या है?” पर्दा उठा तो शिवाजी आश्चर्य और विश्मय से भर गए| “इतनी खूबसूरत, मानो स्वर्ग से उतर कर आई हो! काश, यह मेरी माँ होती तो, मैं, कितना सुंदर होता!”
    सभी दरबारी स्तब्ध रह गए| भारत इसी सांस्कृतिक एवं अध्यात्मिक धरोहर का जीता-जगता मिसाल रहा है| परन्तु वर्तमान के नेता लोग तो लपक पड़ते उस सुंदरी पर! मंत्रियों के बीच मारा-मारी हो जाती| दूसरे दिन अख़बारों के मुख्य पृष्ठ पर इस घटना की खबर छपती और पाठकों के लिए स्वादिष्ट व्यंजन बन जाता| इसके पीछे मात्र उपभोक्तावादी मानसिकता है| मारा-मारी करने वाले इन मसीहों से किसी की बहु-बेटी की इज्जत बचाने की जुगाड करना, उसी मकसद से सर पर जीत का सेहरा  बांधना और मंत्री तथा मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा देना, हमारी मूर्खता और नादानी नहीं तो और क्या है? बिल्ली से चूहे की रखवाली कहाँ तक न्यायोचित है?

(ख) इतिहास साक्षी है, कर्ण दुनिया का सबसे बड़ा नैतिकवान व्यक्ति था, परन्तु धर्म के विजयपथ पर चलने के कारण पांडवों की नैतिकता चलयमान थी| अतः कर्ण को पराजित होना पड़ा| कृष्ण और पैगम्बर को अपने ही सगे-सम्बन्धियों से लड़ना पड़ा था| ईसा मसीह और ध्रुव के साथ भी वैसा ही हुआ| जिस तरह समाज में भगत और आजाद की संख्या अधिक नहीं है, उसी तरह घटना छोटा या बड़ा नहीं होता है|

(ग)  एक शिक्षक ने एक बच्चा से सवाल किया, “८० रूपये किलो की चाय, १० किलो और १०० रुपये किलो की चाय, १० किलो; और दोनों को मिलाकर १२० रूपया प्रति किलो के दर से चाय बेची गयी तो बताओ कितना मुनाफा हुआ?” भारत का छात्र १० मिनट से जवाब तलाश रहा था| परन्तु जापान के छात्र ने २ सेकंड में कहा, “इसमें मिलवाट है, चाय विक्रेता को तुरंत जेल भेजा जाना चाहिए|” प्रसंग छोटा है, परन्तु नैतिकता का सीख देती है|

(घ)  जापान जैसा भौतिक समृद्धि से परिपूर्ण देश भी शिक्षा में नैतिकता का संपोषक है| किसी कारणवस जापान में ट्रेन ४ मिनट लेट हो गयी तो सरकार ने वहाँ के यात्रियों के पैसे लौटा दिए| ट्रेन के ड्राईवर ने नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे दिया और आत्महत्या पर उतारू उस ड्राईवर को जनता ने बचाया| जब तक ऐसी शिक्षा का समावेश हमारे देश और बिहार में नहीं होगा, नैतिकता की भावना नहीं पनपेगी तो देश का विकास संभव नहीं है| बिहार और अन्य कई राज्यों में ट्रेन प्रवेश करते ही देर हो जाती है| नेता या बड़े लोगों के द्वारा वैक्यूम काट दी जाती है| ट्रेन से घास, दूध, साईकिल या सब्जी लादना-उतरना हो, तो ट्रेन रोक दी जाती है| परवाह नहीं किया जाता है कि ट्रेन में कोई बीमार भी जा रहा है या किसी छात्र को प्रतियोगिता परीक्षा में भी भाग लेना है, इस अनैतिकता को आप क्या कहेंगे?

अहंकार



एक दफा बादशाह का दरबार लगा| सारे नवरत्न दरबार में मौजूद थे|
बादशाह ने पूछा, “दुनियां में सबसे बड़ा कौन है?”
सभी ने एक साथ जवाब दिया, “जहांपनाह, आपसे बड़ा दुनिया में कौन होगा? कोई नहीं|
फिर बादशाह ने पूछा, ‘‘मुझसे बड़ा कौन है?”
एक आदमी ने डरते हुये जवाब दिया, “गुस्ताखी माफ़ हो जहांपनाह, आपसे बड़ा खुदा है|
फिर बदशाह ने पूछा, “खुदा से बड़ा कौन है?”
सभी लोग स्तब्द्ध और चुप हो गए| तब बीरबल से पूछा गया, तो बीरबल ने कहा, “ बादशाह सलामत से दरख्वास्त है कि मुझे २ घंटे का वक्त दिया जाये|

दरबार खत्म हो गया| सारे नवरत्न बीरबल से बोले, “गलती मत करना, खुदा से बड़ा कोई नहीं होता है| गलती करोगे तो बादशाह तुम्हारा सर धर से अलग कर देगा|

२ घंटे बाद दरबार पुन: लगा| बादशाह ने बीरबल से पूछा, “बताओ बीरबल! खुदा से बड़ा कौन है?”
बीरबल बोला, “इंसान का अहंकार खुदा से भी बड़ा है| अहंकार होने मात्र से ही इंसान खुदा को भी भूल जाता है| अहंकार मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है|