Saturday 4 June 2011

भ्रष्ट धार्मिक ट्रस्ट, अन्धविश्वास एवं स्वयंभू भगवन के खिलाफ जंग का आगाज़

मेरे मन में वर्षों से जन्म–मृत्यु, भाग्य, कर्म, भगवान और अध्यात्म को लेकर संशय बने रहे हैं| यह दुबिधा वास्तविक तौर पर तब और प्रबल हो जाती है जब एक तरफ विज्ञान के द्वारा जीवन की सम्पूर्णता को प्रबल ताकत मिलती है और दूसरे तरफ अध्यात्मिक और नैतिकता से परिपूर्ण सकरात्मक बौद्धिक मनुष्य समाज को विकसित और सम्पूर्ण रूप से परिपूर्ण बनाने कि वकालत करता है| अन्त में भगवान और अध्यात्म के सहारे सम्पूर्ण मानव जीवन को छोर देते हैं| समाज के विद्वान, पंडित, ज्योतिष, पढ़े-लिखे ज्ञानी के द्वारा जब मनुष्य और समाज को ऐसे उपदेश देते हुए पाते हैं कि मनुष्य अपने पिछले जन्म और वर्त्तमान जन्म के मुताबिक मोक्ष, स्वर्ग और नरक को पाता है|
 ऐसे ही विद्वान मानव-समाज के द्वारा आज मानव और समाज विरोधी व्यवस्था को सतत ताकत मिल रही है| एक तरफ यह अन्धविश्वास लगातार समाज और मनुष्य के बीच स्थापित होता जा रहा है तथा, दूसरी तरफ धर्म और भगवान के नाम पर स्वयम्भू भगवान-एक जादूगर, व्यापारी, ढोंगी, पापी जो लगातार अपने भोग, विलासिता, सुख और ऐश्वर्य में अपना जीवन व्यतीत करता हो, तथा अपने साम्राज्य से एक एजेंट के रूप में लगातार सरकार, सत्ता, विधायिका, न्यायपालिका, सभी तंत्र को प्रभावित करता है| धर्म के आड में चमत्कार करके इस देश की सीधी-साधी, भोली-भाली जनता को प्रभावित कर रही है और उस आम लोगों की भीड़ ने ऐसी व्यवस्था को धीरे-धीरे और मजबूत कर दिया है| यह सारी व्यवस्था आज विश्व, देश, मनुष्य और समाज के लिए गंभीर चुनौती बन गयी है|

समाज के बीच से आदर्श, कर्म, पराक्रम, सेवा, प्रेम, प्राकृतिक सौंदर्य, चिंतनयुक्त दर्शन और अध्यात्म की महत्ता कम होती जा रही है| लोग क्षणिक सुख तथा मोक्ष प्राप्ति के लोभ के कारण अध्यात्म के दर्शन को छोड, अन्धविश्वास की ओर भागे जा रहे हैं – इसे रोकना होगा|

आध्यात्म आम लोगों के भीतर स्थापित हो, इसके लिए प्रगतिशील और नैतिक विचारधारा के तमाम विवेकशील ज्ञानी लोगों को आगे आना होगा| हमने कई समाजसेवी, साहित्यकार, पत्रकार, कर्मयोगी, विवेकशील, चिंतनशील, संवेदनशील, नैतिकवान व्यक्ति, प्रोफेसर, वैज्ञानिक लोगों का अखबारों-मग्जीनो में लेख पढ़ा है और टीवी पर उनका वक्तव्य सुना है| उन समाजसुधारक लोगों के लेख से साफ दीखता है कि इन लोगों के भीतर कितनी कसक है, कितना गुस्सा है| ये लोग समाज और मनुष्य को बचाना चाहते हैं-इन धर्म के ठेकेदार स्वयम्भू भगवान के मायाजाल से, चमत्कार से| इस स्वयम्भू भगवान को समाज में स्थापित कौन कर रहे हैं? ये हैं- देश के बड़े पूंजीपति लोग, देश के ऊंची-ऊचीं कुर्सी पर बैठे तीनों (विधि, न्याय और कार्य) पालिका के शीर्षस्थ व्यक्ति| हमारे समाज के आदर्श व्यक्ति – खिलाडी, नेता, अभिनेता, न्यायाधीश, नौकरशाह और उद्योगपति जब इन स्वयम्भू भगवान के पास जाते हैं तो मानो इन पापी बाबाओं/गूरूओं की सारी गलतियाँ ढक जाती हैं| प्रत्येक तरह के पाप और अपराध करने का एकतरह से परमिट मिल जाता है| ऐसे महान लोगों के कारण ही, देश के आम लोग, खास तौर पर नौजवान, अंधविश्वास जैसी जड़ता को अपने जीवन में अपनाने लगे हैं|

सही मायने में विवेकशील, चिंतनशील लोगों की कसक, सिर्फ लेखनी तक ही रुक जाती है| आज जरुरत है ऐसे महान लोगों को स्कूल, कॉलेज और समाज के बीच जाने की और उन पापियों के खिलाफ सघर्ष करने की| किसी न किसी को तो सुकरात बनना होगा; तब ही सत्य स्थापित हो पायेगा| आज झूठ पूर्ण रूप से स्थापित हो चुका है| समाज के आवाम को बताना होगा कि सही में भगवान किसे कहते हैं| अध्यात्म का जीवन के प्रति क्या योगदान रहा है? यह बताना होगा| अध्यात्म के बगैर जीवन दर्शन का कोई मतलब नहीं है| यह भी चिल्ला-चिल्ला कर बताना होगा| अंधविश्वास सम्पूर्ण जीवन और इसकी संस्कृति को ही समाप्त कर रहा है| भारत के लोगों के लिए यह भी जानना जरुरी है कि देश में मकड़जाल के तरह फैले धार्मिक ट्रस्ट और इसके प्रणेता स्वयम्भू भगवान लोग राष्ट्र का शोषण कर रहे हैं समाज से अकूत रूपया बटोरकर विदेशों में भेजकर मुठ्ठी भर पूंजीपतियों, नेताओं, एजेंटों को फायदा पहुँचा रहे हैं अपने आराम के जीवन के लिए ये लोग सम्पूर्ण मानव जीवन को ही दीमक की तरह चाटते जा रहे हैं| मै सिर्फ इसलिए अपनी भावना को आप लोगों तक नहीं पहुँचाना चाहता हूँ कि आप उसे पढ़े और जानने और बाद में उसी राह पर चल पड़ें| मेरी समझ है कि विवेकशील सभ्य समाज के लोगों के साथ कुछ ज्ञानी, संघर्षशील नौजवानों को आगे आना होगा तब ही मनुष्य, समाज और राष्ट्र बच पायेगा

सबसे पहले मैं चार बातों की व्याख्या कर करना चाहता हूँ अध्यात्म और विज्ञान के अध्ययन से जिन बातों को मै समझा हूँ या जाना हूँ तथा जो कुछ महापुरुषों के जीवन से सीखने को, जानने को मिला, उसे एक ईमानदार प्रयास के साथ आप तक रख रहा हूँ|
सबसे पहले भगवान किसे कहते हैं, इस पर विचार करते हैं|

भगवान शब्द का अर्थ:
‘भ’ यानि (भूतिभाष्यते सर्वान लोकान)! शास्त्र के मुताबिक पहले आपको यह बताना उचित
समझता हूँ कि जो भी अक्षर बने हैं उन शब्दों का मतलब है! और उसका कोई न कोई अर्थ है! जैसे धन से धनवान, दया से दयावान, बाग से बागवान; यह जो व्यक्ति कि प्रवृति है दया करना, धन रखना या धन बांटना, यह जो मनुष्य का गुण है दया करना तो हम उसे दयावान कहते हैं, इसी तरह भग जो है, भग शब्द का जो गुण है, उस गुण के कारण भगवान कहा जाता है! यह समझना आपके लिए उचित होगा तभी हम भग शब्द से बने भगवान के सही अर्थ को समझ पाएँगे! इसी जगह यह भी जान लेना जरुरी है कि भ का शाब्दिक अर्थ है प्रकाशित करना! यह उसका गुण है!

इस तरह ग का भी शाब्दिक अर्थ है गतिशीलता, गतिशील रहना उसका गुण है| यह दोनों गुण के भीतर जो गुण है, उसी से बना या उसी गुण के कारण हम कहते हैं भगवान!

यह जो सबको प्रकाशित करता है| जीवित रहने का मोह पैदा करता है! जीवित रहने में आनंद प्राप्त करवाता है! उनके प्रकाश के कारण ही हर वस्तु प्रकाशित होकर नाच रही है और उनमे विलीन भी हो रही है|
      वस्तु के प्रति आकर्षण का जो कारण है उसी से ही समाधान मिलता है|
भगवान का अर्थ है – शाश्वत, शक्ति, प्रेम तथा ज्योति!|
हमलोग भगवान का अर्थ ज्योतिर्मय, मंगलमय तथा सर्वशक्तिमान सत्ता समझते हैं|
‘भ’ के अर्थ कों हम जीवन जीने का आनंद भी कह सकते हैं और यह  इसलिए मिलता है कि हृदय और मन उनके प्रकाश से प्रकाशित हो रहा है|

‘ग’ यानि गच्छति (यस्मीन अगच्छ्ती यस्मात) जो आता है वह जाता भी है हर वस्तु उनसे आती है और उनमे ही विलीन हो जाती है

‘भ’ और ‘ग’ मिलकर ‘भग’ शब्द बना! भग छ: गुणों से युक्त रहता है और यह गुण जिस महामानव में होगा उसे ही भगवान कहा जा सकता है
(१)    ‘ऐश्वर्य’ यानि गुढ़ ज्ञान सिद्धियाँ| 
एक बात यह समझना जरुरी है कि ऐश्वर्य में अनिमा, लाधिमा, गरिमा, अन्तार्यमित्व आता है|
‘अनिमा’ – लोगों के मन में घुसाना, उसके सुख-दुःख को समझना, मन में जो सोंच रहा है उसे जानना|
‘लाधिमा’ – सूछ्म तत्व कहा क्या हो रहा है, यह जानना|
‘अन्तार्यमित्व’ – सर्वज्ञाता

(२)    ‘प्रताप’ यानि नियंत्रण रखने की ताकत, शाषन करने कि ताकत, पांच तत्वों पर उनका नियंत्रण रहता है|

(क)  आकाश
(ख)  वायु
(ग)   अग्नि
(घ)   जल
(ङ)   क्षिति (पृथ्वी)

मृत्यु पर भी उनका नियंत्रण रहता है| हर तरह के भय पर भी विजय पता है|

(३)    ‘यश’ – लोग उन्हें मान्यता भी देते हैं और विरोध भी करते हैं| जैसे कृष्ण वृन्दावन में भक्तों के लिए भगवान थे और मथुरा में कंस जैसे लोग विरोध भी करते थे|
(४)    ‘श्री’ – (श री ई)

‘श’ रजोगुण बीजमंत्र (शब्द मूल) मनुष्य को कार्य क्षमता देता है, मनुष्य को बुद्धिमत्ता, शिक्षा पाने में मदद करता है शिक्षा के साथ उन्हें व्यवहार में उतारने की हिम्मत भी चाहिए| शिक्षा को व्यवहार में नहीं उतारने से आलस पैदा होगा| और शिक्षा को गलत दिशा मिलेगी| श का मतलब भी जान लेना जरुरी है! श का मतलब शक्तिमान, जिसे हम उर्जा भी कहते हैं!

‘र’ शक्ति का बीजमंत्र है| र का मतलब है वास्तविक ध्वनि!
कुछ करने के लिए इच्छा, क्षमता, योग्यता और कार्यकुशलता भी चाहिए| यह नहीं है तो ‘र’ की कमी है

‘श’ ‘री’ ‘ई’ से श्री शब्द बना है ‘श’ और ‘र’ से ‘श्र’ बना है| और इसका स्त्रीलिंग हुआ ‘श्री’, इसलिए श और र के जो अर्थ है और उसके जो गुण हैं, इसी से बने श्री! ‘श्री’ को हमलोग आकर्षण शक्ति भी कहते हैं| जिसके पास लोग खुद दौड कर जाते हैं| जाने-अनजाने से भी जो दौडकर जाते हैं, उनके दिल में आकर्षण रहता है|

‘ज्ञान’ – विषय, अत्मास्थिकरण माने प्रकृत्य ज्ञान जो जानना जरूरी है| जगत के कल्याण के लिए जानना आवश्यक है, वही ज्ञान है| जो सबकुछ जानते हैं वह हैं सर्वज्ञ| पढ़ने पर उसे याद रखना ही होगा और जीवन में उतारना ही होगा एम. ए. किया हैं प्रथम श्रेणी से, पर आज अगर वही प्रश्नपत्र दिया जाय तो भूल गए, पास नहीं हुए यह सच्चा ज्ञान नहीं है आत्म ज्ञान ही सच्चा ज्ञान है बाकी ज्ञान, ज्ञान कि छाया मात्र ही है वह हमें आत्मिक अनुभूति कि तरफ नहीं ले जाता स्वअध्ययन करना, स्वाध्याय करना
(५)    ‘बैराग्य’ – बैराग्य यानि राग रहित| बैराग्य यानि मन पर राग रंगों का असर नहीं होने देना! मन रंगों पर केंद्रित हो जाता है, आकर्षण हो जाता है! ज्ञानेन्द्रियाँ बाहरी रंगों से अकर्षित होती है! जिस व्यक्ति के मन पर किसी रंग का आकर्षण नहीं होता है, प्रभाव नहीं होता है, उसे ही बैराग्य कहते हैं|
   

ईश्वर का अर्थ है नियंत्रण करने वाला सबकुछ के नियंत्रक हैं| छोटी-बड़ी सभी वस्तु को नियंत्रण की आवश्यकता होती है नियंत्रता आवश्यक होता है| जगत में छोटे, बड़े, मध्यम अजस्र नियंत्रता है! अजस्र क्षेत्रों में उन सब नियंत्रताओं के ऊपर में चरम नियंत्रता है, वे ही हैं महेश्वर| ईश्वर के ईश्वर – महेश्वर|

‘धर्म’ – भगवान के बाद में धर्म कि व्वाख्या करना चाहता हूँ| विश्व में एक मात्र धर्म ही मनुष्य का यथार्थ मित्र है! इसलिए धर्म साधना है, व्यावहारिक कर्म! धर्म कुटिलता पर आधारित नहीं है, सत्य पर आधारित है! सत्य क्या है (परहितार्थम वाड. मनसोयाथार्थ त्वं सत्यम) दूसरों ही भलाई के लिए मनुष्य, मन, वाक्य द्वारा जैसा करेंगे उसको सत्य कहेंगे परमपुरुष के लिए जिसके मन में प्रेम है वही सत्य में प्रतिष्ठित हो सकता है
धृ  धातु के बाद ‘मन’ प्रत्यय से धर्म शब्द बना है धर्म का अर्थ है धारण करना मनुष्य अपनी विकसित चेतना के कारण अच्छे या बुरे का निर्णय करने तथा इससे मुक्ति पाने में सक्षम है मनुष्य दुःख भरा जीवन नहीं जीना चाहता मनुष्य का स्वाभाव है आनंद को ढूँढना मनुष्य सर्वप्रथम जान्त्रिक सुख से आकृष्ट होता है! वो धन-संचय, शक्ति और ताकत का प्रभाव अर्जन करने में लगा रहता है! किन्तु ये सारी वस्तुएँ आनंद नहीं दे पाती जिसके पास १०० रु है वो हजारों पाना चाहता है, जिसके पास १००० रु है वो लखपति बनना चाहता है व करोड़पति बनाना चाहता है इच्छाओं के इस प्रकार से क्रमश: बढती हुयी गति का अंत नहीं होता है मुखिया, विधायक बनना चाहता है, विधायक, मुख्या मंत्री बनना चाहता है और मुख्य मंत्री, प्रधान मंत्री बनना चाहता है मनुष्य की इच्छायें बढती ही रहती हैं मनुष्य प्यासा ही रह जाता है पृथ्वी स्वयं में ही सीमित है उस पर की सारी वस्तुयें साधन भी सीमित हैं मनुष्य की भूख असीमित है और उस असीमित ब्राह्मी सत्ता को पाना ही मनुष्य का धर्म है! यहां धर्म शब्द का अर्थ है विशेषता अथवा गुण अग्नि का धर्म या स्वाभाव है जलना सूर्य का धर्म है प्रकाश देना मनुष्य का स्वाभाव है अनंत सुख पाना, आनंद पाना ब्रह्मत्व की प्राप्ति करना ही मनुष्य की सनातन विशेषता, गुण या धर्म है इच्छा की पूर्ति ही आनंद है! इच्छित वस्तु नहीं मिलने पर मनुष्य का मन दु:ख से भर जाता है इसलिए ब्रह्मौपलब्धि की चेष्टा में संलग्न होने से ही मनुष्य यथार्थ को  पाता है उस रस्ते पर चलकर ही मनुष्य परम शांति पा सकता है

मनुष्य के धर्म का शिष्ट है विस्तार, रस और सेवा! वह अपने आप को सब दिशाओं में फैला देना चाहता है यह जो विस्तार कि इच्छा है, यही मनुष्य का साधारण गुण है स्वाभाविक चीज़ है हम दूसरे को दबा कर नहीं रखेंगे, दूसरे के विकास को नहीं रोकेंगे उसे आगे बढ़ने में मदद करें उसे आगे बढ़ने कि प्रेरणा दें यही विस्तार का अर्थ है

रस – रस का अर्थ है स्वाद, जिससे स्वाद मिलता है! जैसे कटहल, आम, लीची या अन्य कोई वस्तु जो हम खाते हैं, तो उसका अलग-अलग स्वाद है! यह स्वाद जो है वह मन पर असर करता है! यह विश्व, ब्रह्माण्ड एक अखंड ईश्वरीय रस प्रभाव में बहता चला आ रहा है हर काम में गतिशीलता है कोई बैठा नहीं है परमपुरुष एक विराट प्रवाह हैं इसलिए कहा गया है कि मनुष्य का अस्तित्व एक आदर्शमुखी प्रवाह हैयह जो परात्मा से मनुष्य कों स्वाद प्राप्त होता है उसे भी हम रस कहते हैं!

सेवा – मनुष्य में सेवा परायणता है व्यापार में है – कुछ दो और कुछ लो रूपया दो और सामान लो यह देना-लना चलता है लेकिन सेवा एकतरफा होता है मैंने परमपुरुष को सबकुछ दे दिया, बदले में उनसे कुछ नहीं चाहा केवल परमपुरुष को ही चाहा मै मूल्यवान वस्तु परमपुरुष को चाहता हूँ इसलिए मुझे मूल्यवान वस्तु देनी होगी वह मूल्यवान वस्तु है अपना  मैंपन अपना अहं  उसे १६ आने देना होगा क्योंकि नारायण भाव से ही सेवा होगी भगवत धर्म ही मनुष्य का परा धर्म है
आहार, निंद्रा, भय, मैथुन – यह गुण जानवर के हैं मनुष्य में इसके अलावा और अधिक गुण हैं वह गुण है – विस्तार, रस, सेवा यत्थास्तिथि यह हुए भगवान धर्म के गुण यही मानव धर्म है!

‘धर्म’ और ‘धार्मिक मत’ एक नहीं हैं ‘धर्म’ परमपुरुष को पाने का रास्ता है! उससे एकरूप होने का मार्ग है, जिसे मन के द्वारा पाया जाता है धर्म हर वक्त कहता है – एकता और भाईचारा (वासुधैव कुटुम्बकं, आत्ममोक्षार्थ जगत हिताय च) अपना मोक्ष और जगत का कल्याण करना सबका मौलिक धर्म एक है, पर मतवाद अनेक हैं मतवाद समाज को बांटता है, धर्म समाज को जोड़ता है! भगवान पर विश्वास करना ही मनुष्य कि आंतरिक गुण है

मतवाद का आधार है – अन्धविश्वास मतवाद के प्रवर्तक ज्यादातर कहते हैं - यह जो बातें मै कह रहा हूँ, यह शब्द परमात्मा के हैं परमात्मा के नाम पर अपनी बातें कहतें हैं इन बातें में लॉजिक या रीजन अथवा तर्क या आधार नहीं है; यानि विवेक और युक्तिसंगत बातें नहीं रहती है तुम्हे सिर्फ पालन करना है उसपर आप विचार और चिंतन नहीं कर सकते मजहब में अक्ल की दखल नहीं होती है मनुष्य की तर्कशक्ति खत्म हो जाती है उससे एक समूह या जमात तैयार हो जाता है और फिर दुसरी जमात उसका विरोध करता है कृष्ण भक्त, राम भक्त को नहीं चाहते राम भक्त, शिव भक्त को नहीं चाहते यह भावना बढती है हम खुदा के बंदे हैं, बाकी सब काफ़िर हैं

मतवाद के तीन आधार हैं:
(१)    मानसिक भावावेग
(२)    अंधविश्वास से कार्य करना उसमें विचार और विवेक का स्थान नहीं है
(३)    रिवाज़ या प्रथा दादा ने पिता को दिया, पिता ने पुत्र को बताया इस तरह परिवार में चलता आ रहा है माँ ने बेटी को दिया, बेटियों ने अपनी बेटियों से कहा इस तरह, पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता रहता है उसमें सोच और विचार नहीं रहता है अनंतकाल से प्रथा चल रही है, इसे तोड़ने से मनुष्य डरता है, उसे नर्क जाने का डर है

मजहब में यह वृत्ति ज्यादा काम करती है छठ की पूजा नहीं होगी तो संकट आएगा! बोलबम नहीं जाओगे तो पाप हो जायेगा! ऐसा भय से पैदा होता है पहाड़ की पूजा करो, नदी की पूजा करो प्रकृति की पूजा भयवृत्ति से होती है या भौतिक आकर्षण से! उसी को मानसिक भाव कहेंगे

धर्म कि व्याख्या के बाद मैं अन्धविश्वास और अध्यात्म के कुछ पहलू आप तक रखना चाहता हूँ

अंधविश्वास – अंध का अर्थ है, जो वस्तु जिस प्रकार या स्थिति में है उसे उसी रूप में नहीं देखना विश्वास का अर्थ है विशिष्ट श्वास! जब शारीरिक, मानसिक और अध्यात्मिक सभी कर्मों कि चेष्टायें एक ही ओर चलती हैं – वह है विश्वास! किसी विषय पर विश्वास था, उसको मान कर उस ओर हम चलें तो वो हमारा विश्वास होगा विचार, बुद्धि और विवेक भी लुप्त नहीं है साधना की सिद्धि भी उसी दृष्टिकोण से संभाव है यदि साधक विवेकहीन है तो पढ़े-लिखे लोगों कि युक्ति से वह सही रास्ते से भटक सकता है मन विचारहीन हो जाता है, तब वह अन्धविश्वास का शिकार हो जाता है जब जागृत क्षेत्र में मनुष्य पराजित हो जाता है, तब अन्धविश्वास का शिकार हो जाता है लाडला परीक्षा में फेल हो गया, व्यापर में घाटा हो गया, उस समय वह स्तभ्ध हो जाता है इन परिस्थितियों में मनुष्य आसानी से अंधविश्वास कि ओर भटक जाता है

लोग कहते हैं, परमपुरुष के शरण में आ जाने से पापी लोगों का उद्धार हो जाता है बुद्धिजीवी लोग प्रश्न उठाएंगे, किस तरह का उद्धार होता है सब जानते हैं कि मानव समाज और मानव की प्रगति और विकास में सबसे बड़ा बाधा भवजड़ता (डोग्मा) है

डोग्मा क्या है?
यह युक्ति नहीं है सोच-विचार, तर्क-वितर्क, आलोचना नहीं है केवल जोर और जोर-जबरदस्ती है मै कहता हूँ और आपको मानना पड़ेगा आप अपनी बुद्धि का प्रयोग मेरे विचार और तर्क के सामने नहीं कर सकते मेरा कहना आपको गलत लगे तब भी मानना ही पड़ेगा यही हुआ भवजड़ता (डॉग्मा) बाईबल में लिखा है कि सूर्य पृथ्वी के चारों ओर घूमता है विज्ञान और गणित कहता है पृथ्वी, सूर्य के चारों ओर घूमती है, इसलिए दिन और रात होती है यहाँ आपको बाईबल का कहना मनना पड़ेगा क्योंकि बाईबल धर्मग्रन्थ है उसके सामने आपकी बुद्धि का महत्व नहीं है यहाँ आपके अक्ल का दखल नहीं हो सकता यही हुआ अंधविश्वास (भवजड़ता), अर्थात धार्मिक आस्था में युक्ति या तर्क का काम नहीं है जबकि सही अर्थ में धर्म का विषय सम्पूर्ण युक्ति पर निर्भर है और बुद्धि का उसको समर्थन है धर्मक्षेत्र में मनुष्य को युक्ति देकर समझाना पड़ता है मनुष्य अपने विचार द्वारा व्याख्या करते हैं और चर्चा करते हैं, तभी विषय को समझते हैं और जीवन पथ पर चलते हैं जबतक  मनुष्य समझता नहीं, तबतक उसे मानता नहीं पूछेंगे कि पाप से मुक्ति मिलती है या नहीं? कहतें हैं, कर्म फल का भोग पूरा नहीं होता है, तब तक मुक्ति नही मिलती अवश्यमेव भोक्ताव्यम कृतकर्म सुभाह्सुभम (कर्म शुभ या अशुभ हो, उसका फलभोग करना ही होगा) तब पापी का उद्धार कैसे होगा?

भगवन श्रीकृष्ण विश्वास देकर कहते हैं, मनुष्य पापी हो अथवा दुराचारी हो, यदि वो मेरी शरण में आ जाता है तो मैं उसका उद्धार करूँगा उसके मुक्ति और मोक्ष का उपाय करूँगा|

तब यह दो बातें स्वविरोधी नहीं हैं क्या? एक तरफ कर्म का फल भोगना है और दूसरी तरफ परमपुरुष के शरण में जाएँ, तभी मुक्ति मिलेगी! क्या यह अंधविश्वास है? यह प्रश्न उठता है कि कर्म कौन करता है, मनुष्य का मन मनुष्य का मन ही उसके बंधन या मुक्ति का कारण है| मन ही शुभ-अशुभ कार्य में लिप्त रहता है| उस मन को परमपुरुष की भावना में लिप्त किया जाये, तब मन तन्मय हो जाता है| तब मनुष्य के लिये पाप-पुण्य कुछ नहीं रह जाता है|

मनुष्य का इतिहास देखने से पता लगता है कि मनुष्य ने बाधा-विपत्तियों के साथ संघर्ष करके विकास किया| बड़े-बड़े जानवरों से लड़ने के लिए तीर-धनुष बनायेभाग-दौड करने के लिए, गाड़ी या रथ बनाये| इस तरह मानसिक बाधाओं पर विजय पाया  शोध में देखा गया कि इसीके चलते मनुष्य में शारीरिक परिवर्तन भी हुआ, नर्वस सिस्टम और ब्रेन का विकास हुआ| चिंतन करना, विचार करना और सोचने की शक्ति मनुष्य में बढ़ गयी| बुद्धि का विकास हुआ| नए-नए आविष्कार हुए|

इन सभी कार्यों के पीछे, मनुष्य की एक ही  भावना काम कर रही थी| वह भावना थी – सुख और शांति पाना|
हर वस्तु की  अपनी-अपनी विशेषता है| आग को जलाने की शक्ति, सूर्य को प्रकाश देने कि शक्ति, दूध की सफेदी, इसी को वस्तु का धर्म कहा गया है|

हर मनुष्य की विशेषता है, चाहे वह भारत का हो, चीन का हो, पाकिस्तान का हो या अमेरिका का हो, कि वह सुख और शांति चाहता है| यह मनुष्य का धर्म है|

मनुष्य ने सुख को पाने  के लिए दो उपाय किये:
(१)    जागतिक सुख – मन को दुनियादारी में लगाकर सुख पाना|
(२)    आत्मिक सुख – मन को अंतर्ध्यान करके, एक बिंदु पर लाकर, मन की चंचलता खत्म करके, शांति पाना|

मनुष्य के बौद्धिक और मानसिक प्रगति के कारण मनुष्य चिंतन करने लगा और बुद्धि और विवेक का प्रयोग करने लगा|
      उसने देखा कि यह जगत सीमित है और मानवीय  भूख असीमित है| इसलिए, दुनियादारी से अनंतसुख  नहीं मिलता है|
     मुझे मेरे माँ-बाप बहुत प्यार करते हैं| मुझे खुशी है, पर माँ-बाप कब तक मेरे साथ रहेंगे? जब वो चले जायेंगे तब मै दुखी हो जाऊंगा| वो मेरे बहुत करीब हैं, फिर भी मुझे अनंतसुख नहीं दे पाएंगे|
       बुद्धि की भी हद/सीमा है| बुद्धि से अनंतसुख नहीं मिलेगा|

लोगों ने ऋषियों के मन का अध्ययन करके देखा कि मन को जितना फैलायेंगे और दुनिया में लगाएंगे मन उतना ही चंचल होता जायेगा| और फिर चिंता में रहेगा तनाव में रहेगा| यदि मन को एक बिंदु पर स्थिर किया जाये तो मन शांत हो जाता है और मन में शक्ति आ जाती है| और यही मन को एक बिंदु पर लाकर अनंत के साथ मिलाया जाये तो आनंद की अनुभूति होती है| इस क्रिया को मनुष्य ने भावत्तियोग कहा
इस भवत्ति कर्म के लिए शरीर कि जरुरत है और शरीर रक्षा के लिए भोजन, वस्त्र, आवास, चिकित्सा की जरुरत है| इसलिए कर्म करना पड़ेगा| पर कर्म करने का लक्ष्य भवत्तियोग ही रहेगा| ऐसे कर्म को कर्मयोग कहा गया है| इस भवत्ति को मजबूत बनाने के लिए ज्ञान की भी जरुरत है, इस ज्ञान को ज्ञानयोग कहा है|

कर्मयोग ज्ञानयोग और भवत्तियोग को मजबूत बनाता है| यहाँ कर्म-ज्ञान और भवत्ति को जो साथ लेकर चलता है और परमपुरुष को लक्ष्य मानता है, उसे अध्यात्मिक व्यक्ति कहते हैं|
मनुष्य जीवन के अस्तित्व में जो परमशिव विराजमान हैं, उसके साथ एकरूप होना – जीवभाव को शिवभाव से मिलाना ही सही अर्थ में आध्यात्म है|
       उस शिवत्व के भाव को जब मनुष्य भूलता है, तब बंधनों के अन्धविश्वास और रूढिवाद में भ्रमित होकर भटकता राहता है|

इस तीर्थ से उस तीर्थ, हरिद्वार, से कासी और कासी से रामेश्वरम...भटकता रहता है और जो असली आत्मतीर्थ है, उसे भूल जाता है|

मंदिरों में जाकर बेटी कि शादी करवाओ, नौकरी दिलवाओ, परीक्षा पास करवा दो, व्यापार मे तरक्की करवादो, तब मै मंदिर में मिठाई चढाऊंगा यह कहकर भगवन से प्रार्थना करता है| यह अध्यात्म नहीं है, जहाँ स्वार्थ है, वह परमार्थ नहीं है|

यदि संप्रदाय और मतवाद का सही अध्ययन करेंगे, तब पता लगेगा कि मनुष्य के अंदर शारीरिक, मानसिक और अध्यात्मिक शक्ति है| पर उन शक्तियों का सही और उचित उपयोग नहीं होने से सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन में बाधाएं आती हैं| इसके कारण मनुष्य गलत ढंग से जीने का तरीका अपनाता है| अन्धविश्वास, रूढिवाद, गलत आर्थिक नीति अपनाकर अध्यात्म से दूर रहता है| इसलिए हम हमारे पूर्वज सही मानव समाज का निर्माण नहीं कर पाये|

व्यक्तिगत और सामाजिक क्षेत्र में संतुलन नहीं रहने से मानव सभ्यता और संस्कृति का सही विकास नहीं हुआ|
अपने को उस अनंतसत्ता से जोडकर रखना ही साधना है| जिस अनंतसत्ता से हम आयें हैं, परमात्मा से जुड़े रहने कि यात्रा है| वह ‘इम्प्रेस्सन इम्पर्फेकशन’ से ‘परफेकशन’ की यात्रा है| यह जो जुड़ना है या उनका होना है, यही है अध्यात्म|
 
संत का मतलब जानना इसलिए जरूरी है, क्योंकि आज हमरे समाज में संतों की लंबी कतार लगी है| संत का मतलब क्या है? जो व्यक्ति स्वयं से जितना प्यार करते हैं, यदि वह व्यक्ति स्वयं से ज्यादा दूसरे से प्यार करता है, वही संत है| महाराष्ट्र में एक संत हुआ करते थे – एकनाथ, उसने कहा था कि जो पीड़ित है, गरीब है, शोषित है, ऐसे लोगों को जो अपना परिवार समझता है, जो इनकी नारायण भाव से सेवा करता है, वही साधू  है, उसी में भगवान है| जो प्यार की भवना से दुनिया को देखता है, उससे प्रेम करता है, अंदर से जो साधू और ऊपर से सज्जन होगा वही संत है| अन्याय और शोषण के खिलाफ जो अंदर से आवाज़ उठाते हैं, वही सत्याश्रेयी (सत्य को आश्रय देने वाला और संत) होते हैं|

ये जो स्वयम्भू भगवान हैं, इनके पास कौन सा दर्शन है? ये लोग जो शिव कथा, गीता, रामायण आदि को पढ़े हैं, वही समाज में बोलते है| इनका अपना न तो कोई विचार है न कोई दर्शन| रटे-रटाये किताबों की वाणी पर भाषण दते रहने मात्र से उन्हें भगवान नहीं कहा जा सकता| मैंने पूर्व में भी भगवान के गुणों को दर्शाया है|
क्या, इन  ‘स्वयम्भू भगवानों’, भगवन के एक भी गुण, आचारण, दर्शन या विचार हैं, जिससे समाज उन्हें भगवान के रूप में स्वीकार कर सके?

भगवान के सम्पूर्ण गुण थे सदाशिव, कृष्ण, राम, बुद्ध, गुरुनानक, गुरु गोविन्द, मोहम्मद, यीशु, आनंदमूर्ति आदि में| इन्हें भगवान कहा जा सकता है | समाज को अंधविश्वास की ओर चमत्कार दिखाकर ले जाना,  भगवान और धर्म के आड़ में व्यापर करना और उसी व्यापर केन्द्र के माध्यम से अमीर लोगों का मनोरंजन करना, उनका एक मात्र लक्ष्य है| सात्विक भोजन करने का दिखावा करके ये लोग सोचते है कि अच्छा काम कर रहे है| उन्हें यह पता होना चाहिए कि कर्म से पता चलता है कि आप क्या कर रहे है| इन भगवानों के पास न तो आचारण है, ना व्यवहार, न सरलता, न नैतिकता, न कर्म और ना विनम्रत है, तो आखिर कौन सा गुण है उनके पास? अनंत और अथाह पैसा, जो आम लोगों से ढोंग और पाखंड करके लिया जाता है और वह पैसा भी स्वयम्भू भगवान अपने उपभोग व विलासिता के लिए होता है न कि कल्याण के लिए|

इन भगवानों को यदि चमत्कार दिखाना ही है तो अस्पताल ना बनाकर बीमारी खत्म करें! देश के नेता लोगों को ईमानदार बनायें, समाज से बुराइयाँ, कुरीतियाँ खत्म करें, अपने चमत्कार के द्वारा भूख से मरने वालों को बचाएं! ये जो सुनामी और भूकंप का प्रकोप आता है, जिससे हजारों, लाखों लोगों कियो जानें जाती हैं, अपने चमत्कार से उन्हें बचाएं! उनका चमत्कार ढोंग करके लोगों को लूटना होता है| अध्यात्म, सत्य और कर्म कि राह पर चलने वाले लोगों को अंधविश्वास की ओर धकेलने के लिए होता है ताकि अपना साम्राज्य कायम कर सकें! उस भीड़ से लाखों, करोड़ों, अरबों रूपया कमाकर विदेश भेजकर विदेशों से सभी तरह के पापों से पैसा कमाया जाता है| इन स्वयम्भू भगवानों की अनेक गाथा हैं, जो संक्षेप में आपको बताने जा रहा हूँ| उनके चाल-चरित्र को पहचानना, समाज और आने वालों पीढ़ियों के लिए आवश्यक है! वर्तमान नौजवान, समाजसेवी, नैतिकवान, विवेकशील लोगों की जिम्मेवारी बनाती है कि इन पापियों के चमत्कार और भय को आम जीवन से खत्म करें|

आइये हम जानें, इन स्वंयभू भगवानों के मुखोटों के पीछे का असली चेहरा| उनका उद्देश्य| साथ ही यह कि इन्हें किन-किन बड़े लोगों का उन्हें समर्थन प्राप्त है|

विधानपालिका, न्यायपालिका, कार्यपालिका और देश के पूंजीपतियों को ये अपना जागीर समझते हैं| “सैयां भईल कोतवाल तो अब डर कहे का”!

देश के शीर्षस्थ पद पर आसीन प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री, मंत्री से लेकर संत्री, खिलाड़ी से लेकर फिल्मिस्तान के बड़े-बड़े कलाकार, तथाकथित विद्वान लोग, जिसे हम रावन कि तरह पंडित कह सकते हैं; ज्ञान-विज्ञान, नैतिकता, अध्यात्म और कर्म से ऐसे विद्वान लोगों का कोई सम्बन्ध नहीं है| ये सभी लोग उन स्वयम्भू भगवान का महिमामंडन करते नहीं थकते| कौन ऐसी राजनैतिक पार्टी, खिलाडी, फ़िल्मी कलाकार, ऊँचे पदों पर बौठे पदाधिकारी हैं जो उनका चरण नहीं छूता| देश के आदर्श नागरिक ही जब ऐसे लोगों के कुकर्म को बढ़ावा देंगे और उनके सारे अपकर्म को को ढकेंगे तो अन्धविश्वास तो बढ़ेगा ही|

आइये शुरू करते हैं, स्वयम्भू भगवान सत्य साईं बाबा से:

उन्होंने स्वयं को शिरडी के साईं बाबा का अवतार घोषित कर दिया| साधारण परिवार और गाँव में जन्म लेने वाले इस व्यक्ति की दिलचस्पी बचपन से ही जादू-टोना में था|
   मै जानना चाहता हूँ कि शिव, कृष्ण, राम, बुद्ध, आनंदमूर्ति, गुरुनानक, शिरडी के साईं बाबा जैसे महापुरुष कभी भी अपने मुख और वाणी से स्वयं को भगवान नहीं कहा| लोगों ने उनके गुण, उनके आदर्श के कारण उन्हें भगवान माना| कभी इन महापुरुषों के द्वारा चमत्कार की बात अपने नहीं सुनी होगी| जो परमसत्ता हैं और जिसने संपूर्ण जीव-जगत, प्रकृति को संचालित किया है, वह कभी चमत्कार की कल्पना नहीं कर सकता| अब चमत्कार को यह समाज सही मानती है तो उनसे ही जानना चाहता हूँ कि चमत्कार फूल, भभूत और सोने की अंगूठी के लिए है? चमत्कार का मतलब है निरोग समाज, भय-भूख मुक्त समाज, खुशहाल समाज, दहेज-मुक्त समाज का होना| चमत्कार इन मुद्दों के लिए है| लेकिन सत्य साईं का चमत्कार सिर्फ लोगों को आकर्षित करने के लिए था|

ऐसे चमत्कार दुनिया में वर्षों से जादूगर हाथ की सफाई से करते आ रहे हैं| सत्य साईं बाबा को इसलिए भगवान मान लिया जाये कि उन्होंने फूल और भभूत से चमत्कार दिखाया? उन्होंने अपना कोई दर्शन दिया हो तो बताएँ! उन्होंने वही बात कही है जो गीता, कुरान और बाईबल में लिखा है! उन्होंने भगवान कि बात लोगों को बताई, तो क्या हम उन्हें भगवान कहेंगे?

एक साधारण परिवार में जन्म लेकर एक लाख करोडो रुपये का स्वामी बन गए, यह कहाँ से आया? आस्था, विश्वास, भाग्य, चमत्कार आदि के नाम पर लोगों का दिया हुआ पैसा ही तो है| और उन पैसों से कुछ लोगों के लिए कुछ काम होना! थोड़ी देर के लिए हम उन्हें इंसान के रूप में अच्छा मान भी लें, तो क्या हम उन कामों के आधार पर उन्हें भगवान मान लेंगे? तो फिर टाटा, बिडला, डालमिया, बिल गेट्स आदि को भगवान क्यों नहीं मानते? यदि काम के आधार पर ही लोगों को भगवन मन जाएगा, साधू-संत कि उपाधि दिया जौएगा तो अब्दुल कलाम को क्यों नहीं? अन्ना हजारे को क्यों नहीं? विनायक सेन को क्यों नहीं? मेघा पाटकर, अरुंधतीराय, बाबा आमटे, तस्लीमा नसरीन को क्यों नहीं? और अगर ईमानदारी और सच्चरित्रता के आधार पर ही साधू मान लिया जाये तो मनमोहन सिंह को क्यों नहीं? कुछ लोग यह कहते हैं कि बचपन में वो वेद-पुराण धाराप्रवाह बोलते थे, तो कहाँ है वो टेप या रिकॉर्डिंग और किसने सुना? कुछ ऐसे लोगों ने ही सुना होगा जिनकी दुकान उनके चमत्कार से फल-फूल रहा होगा| मै पूरे दुनिया को चुनौती देता हूँ कि उनका स्वयं का कोई ऐसा गुण जिसमे भगवान के लक्ष्ण दिखे (चमत्कार के अलावा) तो कोई बतायें| जब इन्हें खुद ही पता चला कि ये दूसरा साईँ बाबा हैं और आखिरी साईं बाबा के रूप में जन्म लेंगे तब तो इन्हें सुनामी आदि का भी पता होगा? बिजली चपेट में आकर दक्षिण के सैंकड़ों छात्र-छात्राएँ मर गए, उनकी भी इन्हें जानकारी होगी| कर्णाटक में मंदिर और चर्च के नाम पर मौत का तांडव हुआ, इस बात कि भी जानकारी होगा, तो फिर इन विघ्न-बाधाओं को क्यों नहीं रोका, जिससे मानव जीवन को बचाया जा सकता था? राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या देश के बड़े नायकों के उनके पास पहुँचने से उनको भगवान नहीं कहा जा सकता| लोगों के पैसों से अपने ही जगह पर दो तरह के अस्पताल और दो तरह का स्कूल, जहां कहने मात्र का गरीबों का इलाज होता है या गरीबों कि पढाई होती है, इन बातों के आधार पर किसी को भगवान कि संज्ञा नहीं दी जा सकती| दो सौ करोड़ रुपये किसी काम के लिए दे देने मात्र से कोई भगवान नहीं कहला सकता| वह दो सौ करोड़ रूपया है किसका? जनता से लूटा हुआ पैसा| कर्णाटक के मुख्यमंत्री ने तो सारी मर्यादा और आदर्श को समाप्त करने की कोशिश की| देश के स्वतंत्रता सेनानी के लिए कर्णाटक सरकार ने कभी दो दिनों के लिए शोक की घोषणा नहीं की| उन्हें लगता है की सिर्फ सत्य साईं बाबा के चमत्कार से ही उनकी कुर्सी बच गयी| अपने फायदे के लिए उन्होंने जनता के पैसे का इस्तेमाल किया| आस्था की बात अलग है और कानून की बात अलग| आस्था के नाम पर कानून को तोड़ा-मरोड़ा नहीं जा सकता| आस्था के नाम पर न्यायालय ने दखल देने की कोशिश नहीं की| यह एक बार की घटना नहीं है| कई बार ऐसा देखा गया है कि न्यायालय ने अन्धविश्वास, दहेज जैसी प्रथा को रोकने के लिया कोई कारगर कदम नहीं उठाया| समाज सुन्दर बनाने के लिए, अन्धविश्वास जैसी कुरीतियों से बचाने के लिए इन चमत्कारी पाखंडी स्वयम्भू भगवान पर कार्यवाही क्यों नहीं करती?

दरअसल अध्यात्म और विज्ञान, जीवन का सच है| चमत्कार अध्यात्म और विज्ञान दोनों का लिए सही नहीं है| ब्रिटिश लेखक टाल ब्रोक ने सत्य साईं बाबा को सेक्स का भूखा भेड़िया करार दिया| दर्ज़नों बलात्कार के आरोप, हत्या के आरोप, यौन शोषण के आरोप इन पर लगे| कई वैज्ञानिकों ने इन चमत्कारों को चैलेंज किया| आस्था के भीड़ ने उन्हें अनसुना कर दिया| अनेको टीवी चैलेनों ने कई बार इन जादूगरी ट्रिक्स को दिखने का काम किया, लेकिन भोली-भली जनता ने इनको भी अनदेखा कर दिया|

भारतीय संस्कार और संस्कृति के कारण जन-मानस की मूल आस्था ऋषियों और पूर्वजों में है| चमत्कार को पूजने के कारण भारत धार्मिक देश है| यहाँ साधू बाबा हर गाँव में मिलेगा| सर्वत्र साईं बाबा और धर्म गुरु मिलेंगे| जिन्हें भगवान के समतुल्य रखने की परंपरा है| २०वीं शादी के शायद पहले व्यक्ति सत्य साईं बाबा होंगे जिन्होंने स्वयं को भगवान का अवतार बताया, फिर क्या था स्वयं को ईश्वर बताने वालों की फेहरिस्त लंबी होती गयी| टीवी चैनलों पर राम-राम, कृष्ण-कृष्ण, शिव-शिव के भजन करवाने मात्र और रामायण की कथा और गीता की वाणी बोलते-बोलते ईन्होने खुद को ही भगवान मन लिया| आस्था का मजाक देखने को तब मिलता है जब देश कि औरतें, भोली-भली जनता इन लोगों के चरण छूने से...जिस ऐशो-आराम वाली आलीशान गाड़ी से वे आते हैं, उस गाड़ी की धूल छू लेने मात्र से ही अपने को धन्य समझ लेते हैं| अत: इन स्वयम्भू भगवानों ने दुनिया से मनवा ही लिया के ये भगवान ही हैं|

ये भगवान लोग शिरडी के साईंबाबा के साथ-साथ स्वयं को शिव और शक्ति का रूप भी कहने से नहीं सकुचाते| इन तमाम विवादों के बावजूद भी ये स्वयम्भू-भगवान-लोग जनता और नागरिक से यह मनवाने में कामयाब रहे कि ये भगवान हैं|

इस देश के लोग सदियों से गरीबी, भूखमरी में जीते आये हैं| भयानक आर्थिक असमानताओं को सहते आये हैं| इसलिए उन्हें हमेशा उम्मीद रहती है कि जीवन में अचानक कोई चमत्कार होना ही है, और जन-मानस के इसी कमज़ोर नस को स्वयंभू भगवान ने शुरू से ही पकड़ रखा है| कभी कोई अवतारी पुरुष प्रकट होगा और सबकुछ क्षण में ही बदल जायेगा| हमारी आबादी के सबसे बड़े हिस्से के पास इससे बढ़कर कोई उम्मीद नहीं है| यह उम्मीद ही भाग्य पर जीने वालों को जिन्दा रखती है और कष्ट-पीड़ा सहने कि ताकत देती है| भाग्यवादी मानव  मान चुके हैं कि उनका उद्धार करने कोई चमत्कारी पुरुष या ईश्वरीय शक्ति आएगा| देश के समृद्ध और ताकतवर नायक और राजनीतिज्ञों को भी अवतारी पुरुष चाहिए ताकि गलत तरीके से कमाए अकूत संपत्ति को छुपाने का मजबूत आधार मिल सके| धर्म के नाम पर दान और उसके प्रति दिखावे वाली आस्था से ज्यादा मजबूत आधार कोई नहीं हो सकता|  

इसीलिए ऐसे वातावरण में साईं बाबा ही नहीं, हजारों-हज़ार बाबा और ईश्वर पैदा हो चुके हैं, इसमें आश्चर्य की  कोई बात नहीं है| सत्य साईं बाबा को पता था कि सुविधायुक्त कॉलेज, सुपरस्पेश्लिस्ट अस्पताल जैसी चीजों को बना कर गरीब साधारण व्यक्ति को जोड़ पाएँगे और जब तक ये लोग जुड़े रहेंगे तब तक राजनीतिज्ञ, धनवान, क्रिकेटर आदि उनके शरण में आते रहेंगे; जिससे गलत कामों को करने के लिए रास्ता और ताकत मिलेगी| उनके तमाम काम आसान होते जायेंगे, रस्ते के रोड़े हटते जायेंगे और विरोधी कमजोर पड़ते जायेंगे| बहरहाल स्वयम्भू भगवान या सत्य साईं बाबा को थोड़े से शब्दों में नही समझाया जा सकता, परन्तु मैंने एक व्यावहारिक और विनम्र कोशिश आपके सामने की है|

कई स्वयम्भू भगवानों में से एक आसारामबापू भगवन भी हैं| जो अपने कर्मों से कम और कुकृत्यों से ज्यादा चर्चित रहे हैं| दर्ज़नों से ज्यादा हत्या, बलात्कार, सेक्स, मर-पीट, जमींन हड़पना, काली कमाई, टैक्स की चोरी, आश्रम में पिता-पुत्र का आतंक, लगातार पाँच-पाँच हज़ार करोड़ रूपये के दर्ज़नों फ्रॉड केस में संलिप्तता...आदि उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि है!| ये स्वयम्भू भगवान स्वयं कहते हैं कि इनके लाखों करोड़ भक्त हैं|

अभिन्न वर्मा जो गगोई आश्रम, हिम्मतनगर में रहते थे, उन्होंने प्रेस को कहा था कि आश्रम एक वैश्यालय की  तरह चलता है| आसाराम के पुत्र नारायण, आश्रम के औरतों को अपनी बीवी समझते हैं| औरतों को पीटा जाता है, टॉर्चर किया जाता है, उनका ब्रेन-वाश किया जाता है ताकि नारायण और उसके अपराधी दोस्तों की सेवा होती रहे| नौजवान लड़के और लड़कियाँ उनके हवस का शिकार होते रहे| आश्रम के दो किशोर बालक – अभिषेक और दीपक, को बहुत बुरी मौत मारा गया| सीआईडी ने नार्को टेस्ट के लिए माननीय न्यायलय से आदेश माँगा, न्यायलय ने मांग ठुकरा दिया, यह दुर्भाग्य नहीं तो क्या है? ५ जुलाई २००८ को, साबरमती नदी से लाश बरामद हुआ| कई बार आसाराम ट्रस्ट से सरकार ने सैंकारों एकड़ जमीं छीन ली| स्वयम्भू भगवानों ने तो कई बार न्यायलय के आदेश को चुनौती दे डाली| गुजरात हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद न तो आसारामबापू पकडे गए न उसकी संपत्ति जब्त हुयी| साईकल से चलने वाले आसाराम के ट्रस्ट की संपत्ति पच्चीस हज़ार करोड़ रुपये, किस चमत्कार से हो गयी? क्या सिर्फ भोली-भली जनता को ठगने से? बीबीसी के एक रपट के अनुसार कुछ दिन पूर्व, आसाराम चमत्कार के ट्रिक्स सिखने सत्य साईं के पास गए थे| दोनों में समझौता हुआ कि जो चमत्कार मै करूँगा वो तुम नहीं करना और जो तुम नहीं करोगे वो मी नही करूँगा| यहीं पर ‘चोर-चोर मौसेरे भाई’ वाली कहावत चरितार्थ होती है|

ये स्वयम्भू भगवान एक-दूसरे के पाप में भागीदार बनकर, एक-दूसरे को बचाते हैं| ऐसे लोगों के खिलाफ संग्राम की जरुरत है| आज़ादी और सन७४ से भी बड़े जंग की जरुरत है| तभी हम वर्तमान समाज और आने वाली पीढ़ी को अन्धविश्वास से बचा पाएँगे| दुर्भाग्य है कि इस देश के कई राजनीतिक पार्टी, कई स्वयंसेवी संस्था, कई टीवी चैनल, बुद्धिजीवी का उन लोगों की गलतियों का खुला समर्थन करते हैं; और समर्थन देने वाले लोग और स्वयम्भू भगवान के बीच कई तरह के गुप्त समझौते हैं| काले धन का आदान-प्रदान, सत्ता में बनाये रखने के लिए आर्थिक और वोट, दोनों तरह से मदद, कौर्पोरेट जगत को चलाने के लिए काले धन, फिल्म कलाकारों की फिल्म चलाने के लिए काले धन, बड़े-बड़े चैनलों, अखबारों, मीडिया को प्रचार, सभी चीज़ों पर इन लोगों का साम्राज्य है|इन लोगों का अपना धार्मिक टीवी चैनल हैं|| क्या सिर्फ लेखनी के बदौलत इनको रोका जा सकता है? क्या होगा कोई इस संग्राम का नायक? कहीं न कहीं से मिलेंगे विवेकानंद और सुभाष! यह अत्यधिक गंभीर चिंता का विषय है

स्वयम्भू भगवान के रूप में एक सुधांशु रंजन भी हैं| इनका कहना है कि इन्होंने विश्व जागृति मंच का निर्माण किया तथा १०० लाख इनके श्रधालु और २५ लाख इनके चेले हैं| शिक्षा-दिक्षा के बारे में इनसे पूछिए तो इनकी शिक्षा गुरुकुल में हुयी| किस गुरुकुल में हुयी यह कोई नहीं जनता है| इनके शिष्यों का कहना है कि गुरूजी साहित्य को समझने के लिए हिमालय चले गये| साहित्य को समझने के लिए लोग स्कूल और कॉलेज जाते हैं, लेकिन इनके गुरु हिमालय के जंगल में चले गए| ठगना और बेवक़ूफ़ बनाना कोई इनसे सीखे| २३ साल की  ऊम्र में ही इनकी शादी हो गयी थी| कहा जाता है कि अपने से कम उम्र की कई लड़कियों से इन्होंने शादी की और ये भी सन्यासी भी हैं|

आस्था और विश्वास के नाम पर क्यों इन संत और बाबाओं को पूजा जाता है? इसे समझने का एक छोटा सा प्रयास करते हैं:

जोधपुर के मंदिर में दलित महिला का बलात्कार, भील समुदाय की यह महिला हड्डी मील बस्ती के पास की रहने वाली है| हैदरबाद के ३४ साल की श्रीदेवी औरत का स्वयम्भू भगवान श्री निवासन ने बलात्कार किया| बाद में इनके परिवार के लोगों-बहन, भाई, पत्नी को शिष्यों ने मिलकर मार दिए| होशियारपुर सिद्ध जांदी आश्रम के महंत अलखानन् के खिलाफ पुलिस ने बलात्कार और ब्लाक्मेलिंग का केस दर्ज किया और महंत को गिरफ्तार किया| एक महिला जो वहाँ १५ सालों से भक्त बनके सेवा कर रही थी| एक दिन महंत ने जबरदस्ती उसका बलात्कार किया और ८ साल तक यौन शोषण करता रहा| यह पीड़ित औरत गली जेलदारण, दीवाना खाना के निकट मसिल्ल्पुर होशियारपुर कि रहने वाली थी|

स्वयम्भू भगवान प्रेमानंद, जिन को ७० लाख रुपये और आजीवन कारावास का दंड दिया गया था, इन पर प्रमुख जुर्म थे- हत्या, बलात्कार, शोषण...आदि का| स्वामी नारायणन भगवान मंदिर के पुजारी १५ मार्च २००७ को अपने चार साथियों के साथ सेक्स स्कैंडल में गिरफ्तार हुए|  यह घटना जूनागढ़, गुजरात की है|

कांचीपीठ के शंकराचार्य पर हत्या का आरोप लगा| सच्चिदानंद योगाश्रम स्वयम्भू भगवान कई सेक्स स्कैंडल के कारण चर्चा में रहे| देश-विदेश में आलिशान बंगलों में रहना, हेलीकॉप्टरों में घूमना, असहाय महिला लोभ और भय दिखाकर बलात्कार करना आदि इनका पेशा और शौक रहा है| कई लड़के-लड़कियाँ आश्रम में मोक्ष प्राप्ति के लिए गए और कभी वापस नहीं लौटे| ये स्वयम्भू भगवान लोग इन्हें ड्रग्स की लत लगा देते हैं और फँसा कर रख लेते हैं| कई बार ये स्वयम्भू भगवान आपस में एक दूसरे के खिलाफ रहते हैं| आसाराम और सुधांशु के दो अनुयायियों ने यह स्वीकार किया कि सभी तरह के विश्वास को जीतकर दूसरे के आर्थिक अकाउंट में छेड़-छाड करते हैं| राजनीतिज्ञों की तरह इन पर घोटाले का आरोप नहीं लगता है, ना ही सरकार या न्यायालय इन पर जांच करवा सकती है क्योंकि ये स्वयम्भू भगवान हैं| कभी फँसते भी हैं तो ये लोग किसी शिष्य को फंसाकर खुद को निर्दोष साबित कर देते हैं| अंधी भक्ति में डूबे शिष्य लोग, गुरु के बात को सही मानकर, उसे स्वीकार करते हुये अपने स्वयम्भू भगवान को बचा लेते हैं|

भगवान रवि शंकर जी, ४ करोड़ रुपये को बहुत जल्द ही ४ सौ करोड़ रूपया मल्टी बिजिनेस से बना देते हैं! ५० करोड़ के मालिक, यह भी स्वयं को भगवान ही कहते हैं|

नए स्वामी बाबा रामदेव जी १५ साल पहले पगडण्डी पर चला करते थे| गरीब परिवार में जन्म लेने वाला इस व्यक्ति ने ऐसा चमत्कार कर किया कि चंद सालों में इन्होंने एक स्कॉटिश द्वीप २० लाख पौंड में खरीदकर योगआश्रम बना लिया| रामदेव ने ही २००९ में इसका उद्घाटन किया| विवादों के ये जनक रहे हैं| उनके शिष्य उनके बारे में कहते हैं कि ये हिमालय में जाकर संत बन गए| कब हिमालय में गए और कब आये, यह कोई नहीं जानता| योग के माध्यम से मनुष्य के पटल पर छा गए| योग के जनक भगवान सदाशिव रहे हैं| तब से लेकर आज तक ऋषि-मुनियों के द्वार योग का आम जीवन में क्या उपयोग है वह मानव जीवन के सामने लाया गया| तब विज्ञान का चमत्कार नहीं था| विज्ञान और संचार ने तो जीवन को सरल बनाने कि कोशिश की| आज इन्ही की देन है कि इन चैनलों ने एक साधारण रामदेव को भगवान बना दिया| दिखाने के लिए इनका सालाना इनकम १५ सौ करोड़ रुपये से लेकर २ हज़ार करोड़ रूपया मन गया| बाबा रामदेव को लगता है इनके १०० करोड़ अनुयायी हैं| ये बाबा रामदेव के नहीं बल्कि योग के अनुयायी हैं| और योग भगवन शिव का मानव को उपहार है|
ये सभी स्वयभू भगवान कहते हैं कि इनके पास कोई पैसा नहीं है, ये भूखे हैं और इनके पास खाने के लिए पैसा नहीं है, ये योगी हैं, संत हैं| २५ हज़ार, ५० हज़ार, लाखों, करोड़ों का ट्रस्ट इन लोगों का नहीं है! अगर ये इनका नहीं है तो दे दीजिए सरकार को या किसी आम आदमी को| ट्रस्ट भी एक नहीं, तीन-तीन, चार-चार ट्रस्ट एक भगवान ने बनाया! पतंजलि, योगपीठ, दिव्ययोग मंदिर| बातों में बहकाना इनका जन्म-सिद्ध अधिकार है| विदेशी कंपनियों से समझौता नहीं करेंगे और विदेश में पहुंचते ही समझौता उन्ही से करते हैं| इन पापियों को सभी राजनीतिक व्यक्ति बेईमान ही लगते हैं, अपराधी ही लगते हैं| मै साबित कर सकत हूँ कि दुनिया में इन स्वयम्भू भगवानों से बड़ा कोई देशद्रोही, बलात्कारी नहीं है जो पैसे के लिये ड्रग्स का धंधा करता है, अपने देश को बेचता है, इनसे बड़ा कोई अपराधी नहीं हो सकता है| किसी व्यक्ति ने किसी कारणवस हत्या किया तो वह बहुत बड़ा अपराधी हो गया और ये लोग जो अपने ऐश्वर्य, साम्राज्य के लिए सभी तरह के कुकर्म करते है तो इन्हें क्या कहा जाये?

जिस देश में एक मंदिर की एक दिन की कमाई २०० करोड़ रूपया हो, आस्था के नाम पर जिस देश के मंदिर में अपने बच्चे की बलि चढ़ा दी जाये, कौन बचा सकता है उस भारत को? उस सभ्य समाज को?

रामदेव को प्रज्ञा ठाकुर भारत को सबसे स्वाभिमानी और साफ-सुथरी महिला लगी| दर्ज़नों हत्या की आरोपी प्रज्ञा ठाकुर, रामदेव के लिए किसी संत या भगवान से कम नहीं है| रामदेव भी स्वयं को भगवान कहते हैं| इनती महँगी-महँगी दवाइयाँ बेचकर समाज को क्या देना चाहते हैं? ये तो एक अच्छे व्यापारी हैं| योग के नाम को इस्तेमाल किया| भोली-भाली जनता, शुद्ध और सरल जनता इन जैसे लोगों के चमत्कार के भरोसे बैठी है कि  एक दिन ये भगवान इनका तकदीर बदलेंगे| ऐसे ही लोगों के कारण इन भगवानों की दुकान खूब चल रही है| गंगा स्नान करने से पाप धुल जायेगा और ग्रहण लगने से पहले खा लेने से पुण्य होगा, ऐसी बातें समाज को इन भगवानों ने ही दिया है| बातों के भ्रमजाल में लोग फंस चुके हैं| जितना बेवक़ूफ़ बनाना है बना लीजिए| जिस दिन बिस्मिल, कबीर, विवेकानंद ने जन्म ले लिया उस दिन आपकी दूकान बंद होनी ही है|   
जरुरत है इन ट्रस्ट पर अंकुश लगाने की, इन पर इन्क्वायरी बैठाने की| एक ऐसी एजेंसी हो जो धन के आवा-गमन पर नज़र रखे| काला धन जितना इन भ्रष्टाचार के जनकों (धार्मिक ट्रस्ट, मंदिर, न्यास बोर्ड और एनजीओ) के पास है उतना शायद किसी के पास नहीं| इस रहस्य को उजागर करने कि आवश्यकता है|

सभी संघर्षशील समाजसेवी बुद्धिजीवियों से मेरा आग्रह है कि लोकपाल विधेयक के जांच दायरे में ही धार्मिक ट्रस्ट और एनजीओ को लाने का आग्रह करें या एक ऐसी एजेंसी बने जो सभी तरह के ट्रस्ट, मंदिर, न्यास की सभी तरह के लेन-देन की निगरानी कर सके| ट्रस्ट के पास जो अकूट संपत्ति है वह समाज कल्याण में लगे| सरल कानून के कारण ही स्वयम्भू भगवान अपने ट्रस्ट के द्वारा मनमाने ढंग से लूट रहे हैं और अपनी संपत्ति अर्जित कर रहे हैं| सही मायने में ये सभी नास्तिक हैं| आस्तिक होते तो भगवान के नाम पर सौदा नहीं करते, उनसे से डरते और उसे ठगते नही| आइये मिलकर इसे रोकने का प्रयत्न करें और एक साथ आवाज़ दें| मै जनता हूँ कि मेरी बातों पर कई तरह के सवाल उठाये जायेंगे| पप्पू यादव बाहुबली है, एक मुकदमा में फंसा हुआ है| कभी रोबिन हूड तो कभी अपराधी कि संज्ञा से सुशोभित किया गया हूँ| मेरा जीवन एक खुला किताब है| मैं किस परिवार से आता हूँ और क्या-क्या किया, यह जानना भी जरुरी है| एक पक्ष अपने जाना कि मैंने हत्या करवाया| दुनिया के बड़े से बड़े आदमी पर सरकार जब चाहे हत्या या अन्य कोई केस लगा सकती है|

सवाल आज मेरा नहीं है, हम अपनी बात भी आप तक रखेंगे| सवाल है की सच्चाई को समझना; न कि यह कहकर पुन: झुठला देना कि लिखने वाला एक बाहुबली है, एक राजनीतिज्ञ है| एक सवाल यह भी है कि यह बाहुबली शब्द मिटेगा कैसे – मेरे परिवार और मेरे अतीत को जानने के बाद|

3 comments:

  1. Baba Ramdeo ke bare mein apke wichar se sahmat hoon lekin unka mudda sahi hai.Sarkar dwara gundo ki tarah ek baje raat mein ki gai karrwai par apka koi comment nahin hai?

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  2. app kahte ki baba ramdev ne jo kiya aacha nahi kiya lakin main aap se sehmat nahi hu, ku kay saata main bathi huy cong. ke 90% pass ek santha hain usmain sugar karkhna, school, college, etc sub govt ke undaan pe chalevale lagbhg sabi santhye unke pass hain or vaha pe kya chal raha hain wo sabko malum hain lakin aam aadmi eske pass dhyan deta nahi hain ager koi inlogoke khilaf aawaj uthata hai to ye uski aawaj dabate hain inko panishment milnahi chaiye

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  3. धर्म का अर्थ - सत्य, न्याय एवं नीति (सदाचरण) को धारण करके कर्म करना एवं इनकी स्थापना करना ।
    व्यक्तिगत धर्म- सत्य, न्याय एवं नीति को धारण करके, उत्तम कर्म करना व्यक्तिगत धर्म है ।
    असत्य, अन्याय एवं अनीति को धारण करके, कर्म करना अधर्म होता है ।
    सामाजिक धर्म- मानव समाज में सत्य, न्याय एवं नैतिकता की स्थापना के लिए कर्म करना, सामाजिक धर्म है । ईश्वर या स्थिरबुद्धि मनुष्य सामाजिक धर्म को पूर्ण रूप से निभाते है । वर्तमान में न्यायपालिका भी यही कार्य करती है ।
    धर्म को अपनाया नहीं जाता, धर्म का पालन किया जाता है । धर्म पालन में धैर्य, संयम, विवेक जैसे गुण आवश्यक है ।
    धर्म संकट- सत्य और न्याय में विरोधाभास की स्थिति को धर्मसंकट कहा जाता है । उस स्थिति में मानव कल्याण व मानवीय मूल्यों की दृष्टि से सत्य और न्याय में से जो उत्तम हो, उसे चुना जाता है ।
    व्यक्ति विशेष के कत्र्तव्य पालन की दृष्टि से धर्म -
    राजधर्म, राष्ट्रधर्म, मनुष्यधर्म, पितृधर्म, पुत्रधर्म, मातृधर्म, पुत्रीधर्म, भ्राताधर्म इत्यादि ।
    जीवन सनातन है परमात्मा शिव से लेकर इस क्षण तक व अनन्त काल तक रहेगा ।
    धर्म एवं मोक्ष (ईश्वर की उपासना, दान, पुण्य, यज्ञ) एक दूसरे पर आश्रित, परन्तु अलग-अलग विषय है ।
    धार्मिक ज्ञान अनन्त है एवं श्रीमद् भगवद् गीता ज्ञान का सार है ।
    राजतंत्र में धर्म का पालन राजतांत्रिक मूल्यों से, लोकतंत्र में धर्म का पालन लोकतांत्रिक मूल्यों से होता है । by- kpopsbjri

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