Monday 26 March 2012

सियासत


सियासत

मि. ओबामा का कॉल आया, फुद्नी झटपट फोन उठाया |
हेल्लो मिस्टर! कहो क्या हाल है – शताब्दी वर्ष में कैसा बिहार है ?
सुनते हैं काफी विकास हुए हैं – भ्रष्टाचारी पूर्णत: नाश हुए है ?

भाई जान! सब प्रचार का खेला है – कागज़ी घोड़े का मस्त मेला है |
हाँ, बिहार बेहिसाब बदला है – माय से महादलित तक चला है |
आज भी शौहर पंजाब जा रहे हैं - मनरेगा का पैसा बिचौलिए खा रहे हैं |

नो मिस्टर, यहाँ प्रामाणिक सत्यापन है

भईया, सब बकवास, केवल विज्ञापन है |
मजदूर के वेतन में नियोजित हैं शिक्षक,
पहले बहाली उसके बाद प्रशिक्षण |
परीक्षा के पूर्व उपलब्ध है प्रश्न,
पैसेवालों की मौज-मस्ती-जश्न |

अंत्योदय पर कुछ विशेष सुनाओ,
बिहारी प्रयोग का रहस्य बताओ !

रहस्य नहीं सब-कुछ साफ़ है
बेटा हरियाणा, घर में बाप है |
खून – पसीने से पेट पर विजय है –
सिर्फ आंकड़ों में ही अंत्योदय है |

बाढ़ की कैसी दिशा – दशा है
पुनर्वास हुए – कुछ अता-पता है |

बाढ़ सरकारी योजना का हिस्सा है –
नेता-ठीकेदार गठजोड़ का किस्सा है |
भला निदान से पत्नियां रूठ जावेगी –
किलो भर गहना कहाँ से लावेगी ?
समस्या को समस्या बनाये रखना
सफेदपोशों का वार्षिक धर्म है –
जिल्लत की जिंदगी जीती जनता,
व्यवस्था – बेहया-बेशर्म है |
तुम भी लूटो, हम भी लूटें, मिल जुलकर खेलें खेल –
अधिकारी हों मालामाल – एक-आध को जाने दो जेल |

साक्षरता दर तो बहुत बढ़ा है,
बिहार इसमें इतिहास गढा है ?

भईया! इतिहास हमारी विरासत है,
बिहार चंद्रगुप्त की रियासत है |
किसान त्रस्त हैं – गाँव-गाँव में
गर्व से कहो – “यही सियासत है |”

Sunday 18 March 2012

क्रोध का विसर्जन


आज का युग प्रबंधन पर बहुत जोर देता है, प्रसंग चाहे आपसी रिश्ते का हो, अर्थव्यवस्था, प्रशासन, आपदा या व्यवसाय का, हमारे यहाँ जीवन के हर पहलू को सुचारू रूप से साधने के लिए एक नायब प्रबंधन ग्रन्थ है| कोई भी समस्या हो, उसकी शरण में जाकर मार्ग खुलता नज़र आता है| मेरा मतलब गीता से है| जिसमें काम, क्रोध और लोभ को नर्क का द्वार कहा गया है| यही असुरी प्रवृतियाँ भी हैं| जिनसे मुक्ति का एकमात्र उपाय है – संयम| आज का विचारक इसे दमन कहकर ख़ारिज कर देता है| परन्तु संयम का निरंतर अभ्यास करने से स्वभाव में सहज ही मनचाही दशा प्राप्त हो सकती है| यूँ तो प्रत्येक व्यक्ति के मन की स्थिति, परिवेश और कारण विशिष्ट होते हैं| समाधान के अलग रास्ते तलाशने पड़ते हैं| परन्तु समस्या की मूलभूत समानता के कारण सामान्य रूप से भी विचार किया जा सकता है| सबसे पहला कदम है, अपनी कमजोरियों को पहचान कर स्वीकार करना| उससे मुक्त होने की इच्छा दूसरी सीढ़ी है| क्रोधी को अपनी प्रतिक्रिया सदा संगत लगती है| दूसरे उसकी उपेक्षा करते हैं| उसकी बात को महत्व नहीं देते हैं| इससे उसकी प्रतिष्ठा को धक्का लगता है| क्रोध का विसर्जन करने के लिए स्वयं को मथना पड़ेगा| आवेश के कारणों को रेखांकित करके मुख्य बिंदुओं पर ऊँगली रखनी होगी|


मुझे किस बात पर किस स्थिति में गुस्सा आता है? पूरे इमानदारी से बिना अपने को छूट दिए निर्मम भाव से आत्मविश्लेषण करना होगा| क्या हम दूसरे के दृष्टिकोण को समझने की कोशिश करते हैं? हर इंसान की सोंच को सम्मान देना जरुरी है| यह समझ सभी रिश्तों और परिस्थितियों पर लागू होती है|

विरोधी पक्ष के प्रति द्वेष, घृणा भाव के स्थान पर मन में संवेदना लाने की कोशिश से दूसरों की पीड़ा के अनुभव की ताकत आती है| अपने बच्चों से, साथी से, मित्रों या अफसर से उम्मीदें रखना और फिर उनकी पूर्ति न होने पर नाराजगी, क्रोध का कारण बनता है| ऐसी स्थिति में अपेक्षा के हित होना या प्रत्युपकार की भावना से मुक्त रहने का अभ्यास करना आवश्यक है| अपनी आलोचना सुनकर शांत रहना बहुत कठिन है| परन्तु सहनशीलता की प्रवृति का विकास आलोचना में भी अपने लिए सुधार के बिंदु खोज लेता है|

क्षमा की शक्ति का मतलब है घृणा, विरोध, बदले की भावना से मुक्त होने की ताकत| मानसिक शांति के लिए क्षमा कर पाना महत्वपूर्ण साधन है| गलती करने वाला और उदंड हो जाएगा इसलिए क्रोध को पोसे रखना अपनी ही हानि कारण है| क्षमा दोनों पक्षों के घाव को भरता है| क्रोध के पहली चिंगारी को फूटते ही अपने को सावधान करो – ‘बस’ और नहीं, शांत हो जाओ! शांति! शांति! शीशे में देखकर अपनी मुस्कुराते छवि को निहारें और दिन भर वही छवि बनायें रखें! चेहरे पर झुंझलाहट तनाव के हार्मोन्स पैदा करते हैं और मुस्कराहट उनमे कटौती करती हैं|