Saturday 22 December 2012

“पथिक”


“पथिक”


राग–द्वेष से विरक्त वियोगी,
जेहन में जगअवसाद लिए |
शक्ति-श्रोत नवयुवातुर्क  का,
रंग ओढ़ दधिचि गरल पीए |
जज्वा है जलधि मापने का,
नभ भी नब्ज पहचान रहा |
पग जिधर चला झूंड चली,
प्यासा-पथ विकल बेजान रहा |
पूर्वांचल का पथिक धरोहर,
याचक समरसता का सरोवर |
दनुज से जूझने मचल पड़ा,
वह स्वर्ग लूटने निकल पड़ा |


भौतिकता की भूख हमारे सारे कुकर्मों का उद्गम है | नैतिकता के

मर्यादाओं का पालन कर इसे नियंत्रित किया जा सकता है |

1 comment:

  1. मेरे घर के बगल में रास्ता बन्द है हमलोग घर से निकल नही पाते हैं

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