Friday 1 July 2011

गरीब के जान की कोई कीमत नहीं




एक मच्छर के प्रकोप से साठ  (60) मासूम व्यक्तियों की जान चली गयी; यह कोई नियति नहीं थी या प्रकृति के प्रकोप के कारण नही हुआ| यह तो निकम्मी स्थानीय प्रशासन के लापरवाही तथा सरकार की उदासीनता के कारण घटित हुई| मुजफ्फरपुर की यह विकराल त्रासदी देखते-देखते ६० जाने ले ली| रोम जल रहा था और नीरो बंसी बजा रहा था| यहाँ बच्चे मर रहे थे और वहाँ हमारे सूबे के मुखिया चीन के विकास को देखकर इतरा रहे थे| भले ही सरकार के नज़र में गरीब इंसान की कोई कीमत नहीं परन्तु जो अपने मासूम बच्चों को बेसहारा बनाकर चले गए, जिनके सपने और उम्मीदें ही खत्म हो गयी...सपना या भविष्य का एक मात्र सहारा या जीवन का वह मासूम बच्चा जिसे काल ने निगल लिया...कहाँ ढूंढें उसे, कौन बनेगा गरीब का सहारा, कौन होगा बुढ़ापे का सहारा! क्या बीमारियाँ सिर्फ गरीबों के ही सपनों को तार-तार करने के लिए आती है| भगवान की नज़र में सिर्फ गरीब ही पापी होते हैं, अमीर लोग सिर्फ पुण्य ही करते हैं! और पिछले जन्म का भी पुण्य इन्ही लोगों के पास जमा होता है!?
सरकार चाहती तो शुरू में ही बीमारी को समझकर, पहचान कर उसे रोका जा सकता था| परन्तु सवाल उठता है कि मर कौन रहा है? उससे सरकार के सेहत पर क्या असर पड़ेगा? मीडिया तो हाय-तौबा मचायेगी नहीं क्योंकि मरने वाले बच्चे उनके पाठक वर्ग नही थे...उनके दर्शक वर्ग भी नही थे, इसीलिए इससे उनके सेहत पर क्या असर पड़ेगा!?

सरकार और विपक्ष ६०-६० निर्दोष मासूम जिंदगी खत्म होने के बावजूद भी संवेदनशील नहीं हुई, ना तो मुख्यमंत्री जी को फुर्सत मिली ना ही उप-मुख्यमंत्री जी को, और विपक्ष की तो कहावत है उसे मानवीय मूल्य से कुछ लेना-देना नहीं है, बस उसे पार्टी या अपना भला दिखना चाहिए| सत्ता और विपक्ष एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं| ये दोनों मौसेरे भाई लाभ-हानि को देखकर काम करते हैं| दो मौत अगर गोली से हो जाये तो देखिये नेता की नेतागिरी, परन्तु ६०-६० जानें चली गयीं लेकिन किसी के कान पर कोई जूँ तक नहीं रेंगा| सभ्य/नागरिक समाज ने पी.आई.एल. करने की जरूरत नहीं समझी, ना ही माननीय न्यायलय ने स्वयं ही कोई संज्ञान लिया! फिर कौन करेगा न्याय? कौन देगा मुआवजा? कौन देगा नौकरी? कौन बनेगा बेसहारों का सहारा? लापरवाही के कारण गंदगी और गन्दगी के कारण मौत ही मौत! क्या अब भी आपको लगता है कि सरकार संवेदनहीन नहीं है? सिर्फ नाम मात्र भर कहने और दिखाने के लिए यह शोषित, पीड़ित, गरीब, निरीह लोगों की सरकार है यह सरकार संवेदनशील कहलायेगी!? मै तो कई बार कह चुका हूँ कि यह सरकार सिर्फ पूंजीपतियों के लिए बनी है|
आइये जगायें सरकार को, जगायें विपक्ष को, ताकि उम्मीद की एक किरण फूटे| क्या इन मासूमों के मौत के लिए जिम्मेदार लोगों पर कभी करवाई होगी? कोई जांच कमिटी गठित होगी? किसी दोषी को सजा मिलेगी? क्या सोई हुई सभ्य नागरिक समाज के लोग इंडिया गेट पर कंदील जलाएंगे इनके लिए? क्या इस नैतिक भ्रष्टाचार के खिलाफ, सिविल सोसाइटी का भूख हड़ताल होगा? क्या इन बच्चों में दुनिया का भविष्य नहीं था? क्या इनमे से कोई प्रधानमंत्री, वैज्ञानिक या अब्दुल कलाम नहीं बनता? आपको याद होगा (और समझना भी पड़ेगा) कि अब्दुल कलाम भी गरीब परिवार से ही थे| एक कलाम ने भारत का सपना साकार किया, क्या इन ६० बच्चों के, उनके परिवार के सपने, नहीं थे? स्वास्थ्यमंत्री को नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे देना चाहिए और सरकार को चाहिए कि  संबंधित सभी अधिकारीयों पर तत्कालीन त्वरित कारवाई करते हुए उन पर जांच चलाए|

नितीश जी, याद रखियेगा चन्द्र बाबु नायडू को भी बहुत घमंड था कि अमेरिका के (पूर्व) राष्ट्रपति, बिल गेट्स आदि भारत आने पर सबसे पहले उन्ही से मिलते थे; क्या हश्र हुआ उनका! सरकार को सामाजिक, मानवीय और व्यावहारिक पहलू को गंभीरता से ध्यान देना होगा| पक्ष-विपक्ष तथा  नागरिक समाज से विनम्र अनुरोध है कि सब एकजुट होकर (वोट की राजनीति से ऊपर उठ कर) न्याय दिलाने हेतु कार्य करें|
धन्यवाद

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