Friday 1 July 2011

दकियानुसी समाज की संवेदनहीनता के चपेट में अंशु माला



लोग कहते हैं कि शास्त्र में जो लिखा है वही सही है, मैं समझता हूँ कि शास्त्र लिखने वाले भी इंसान ही थे, भगवान तो थे नहीं, उस वक्त के महान इंसान ही अपने पूर्वजों और गुरुओं से सुनकर/सीखकर ही आने वाली पीढ़ी को बताया होगा| हम सब जानते हैं-लेखनी के पहले वाले युग में सिर्फ श्रुति थी| जो सुना और देखा उसे ही हम सुनते/समझते आये| शास्त्र में लिखा है कि भगवान या प्रकृति नियति के अनुसार सृष्टि की रचना और संचालन करती है| परन्तु शास्त्र में यह कहीं नहीं लिखा है कि सारी नियति सिर्फ गरीब, कमज़ोर और मजबूरों के लिए ही बनी है या फिर यह तर्क कि यह नियति पूर्व जन्म के पाप-पुण्य के कारण है| शास्त्रों के सारे नियम सिर्फ गरीबों के लिए ही बनी है तथा पाप-पुण्य का (कर्म)फल गरीबों पर ही लागू होता है| ऐसा ही देखने को मिला एक राष्ट्रीय स्तर के शास्त्रीय संगीतकार अंशु माला झा के साथ|
कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत अंशु, मात्र २७ साल के उम्र में ही अपने संगीतकला से देश के शास्त्रीय संगीत प्रेमियों को प्रभावित करते हुये अपना दीवाना बना चुकी है, आज वह खुद नियति के दोराहे पर खडी मौत और जिंदगी से जूझ रही है| पूर्वजों ने सही कहा है-इस किस्मत के खेल को कोई नहीं जनता|
अंशु के जीवन के साथ मजाक/खिलवार अपनों के ही द्वारा हुआ; जिन्हें नियति ने जीवनसाथी के रूप में चुन कर दिया और उसी नियति (जीवन साथी) ने अंशु के हँसते-खेलते घर को बर्वाद कर दिया| भारतीय परंपरा और रीति में पति को परमेश्वर का दर्ज़ा दिया गया है| भारतीय नारी अपनी सारी मोह-ममता-सुख को त्याग कर पति के आत्मीय भाव, आतंरिक प्रेम के कारण अपना सब कुछ समर्पित कर सिर्फ और सिर्फ उसकी पूजा करने में लग जाती है| अंशु भी ऐसी ही थी;इसके बावजूद इसके पति और ससुरालवालों ने जो अमानवीय आचरण/व्यवहार दिखाकर एक जघन्य अपराध किया उसे भुलाया नहीं जा सकता| मानो अंशु के पति ने अंशु या एक मासूम त्याग की प्रतिमूर्ति किसी नारी से नहीं बल्कि राष्ट्रीय ख्यातिनाम तथा इसके साथ आने वाले (संभावित)धन से शादी किया हो| क्या सिला दिया भगवान और समाज ने : एक तरफ माँ बनने की खुशी और दूसरी तरफ मौत का दावत! देखते-देखते ससुरालवालों की लापरवाही (माँ को पौष्टिक आहार नहीं देना और सही से देख भाल नहीं करना) से अंशु के दोनों किडनी नाकाम हो गया| और उसी वक्त नकारा, निकम्मा, अमानव पति बिन-कमाऊ पत्नी को बोझ समझकर मायके पहुँचा दिया| पति का अमानवीय कृत्य यहीं खत्म नहीं हो गया- मायके पहुँचने के तुरंत बाद, माँ की ममता जिन्हें अभी १५ दिन भी बच्चा को जन्म दिए नहीं हुये थे, उन्हें यह कहकर कि दादी-दादा काफी अच्छे से देखभाल करेंगे, बिलखती माँ के गोद से १५ दिन का नवजात बच्चा छीन कर चला गया| एक तरफ बीमारी और पीड़ा से व्यथित अंशु अपने बच्चा के दूर होने का दर्द सह नहीं पाई और धीरे-धीरे अंशु का मन, चित्, आत्मा, विवेक, धैर्य, विश्वास सब कुछ जवाब दे दिया|

एक सिपाही की बेटी अंशु को परिवारवालों ने अपने हैसियत के मुताबिक बहुत प्रयास किया कि उनकी बेटी पुनः चहके, हंसे, गाये, उसका जीवन लौटाया जा सके पर सब कुछ बेकार| माता-पिता की स्थिति नहीं थी कि उसे बड़े अस्पताल में इलाज करबाया जा सके| सबने सामाजिक दकियानुसी बातों पर छोड़ दिया–जो भाग्य में लिखा है वही होगा| अंशु धीरे-धीरे मौत के नजदीक पहुंचती जा रही थी| संयोग से एक संवेदनशील इंसान सिकंदर को कहीं से इसकी खबर मिली जो कि हिंदुस्तान अखबार के रिपोर्टर हैं| उनकी नेक नियत से उनका कलम (रपट बनाने के लिए)चल पड़ा- एक मासूम को बचाने के राह पर...|

अगले दिन सुबह मेरी नज़र पड़ी उस अखबार पर, पढते ही आत्मा झकझोड़ दिया| चाहरदीवारी में बंद मेरे पास कोई रास्ता नहीं था कि तुरंत कुछ कर पाऊं, इन्तजार था कि कोई हमसे मुलाकात करने आए (या किसी परिचित का मुलाकाती आये) ताकि पत्र के माध्यम से मै अपने कार्यालय को तुरंत मदद करने के लिए कहूँ| समय आ गया जिससे पत्र बहार जा सके| दूसरे दिन अखबार में पढ़ा कि पूर्व सांसद रंजीत रंजन ने अखबार पढ़ कर युवाशक्ति के साथी को आग्रह किया कि उन्हें मदद भेजी जाय| जो मेरे मन में था वही हुआ| युवाशक्ति के साथियों ने प्रयास शुरू कर दिया अंशु जी के जीवन को बचाने के लिए| उसी बीच मौर्या चैनल, न्यूज़ २४, सहारा, महुआ आदि के स्वतंत्र पत्रकारों ने अपनी संवेदना दिखाई, परन्तु इस नैतिकताविहीन संवेदनहीन समाज के भीतर कोई हलचल नहीं हुई|

मेरे लिखने तक शायद किसी का हाथ मदद के लिए नहीं बढ़ा| किसी भी धनपशु की संवेदना नहीं जागी| इतना ही नहीं, तीन दिन बाद सरकार ने कहा कि इलाज चल रहा है, परन्तु कहीं कोई मानवीय संवेदना नहीं दिखी|

मेरा आप सभी सभ्य नागरिक समाज के लोगों से आग्रह है कि अंशु को बचाने हेतु सहयोग करें| खास तौर पर पुलिस मेंस एसोसिएशन से आग्रह है कि आपके पास एक बड़ी संख्या में (लगभग ६५ हज़ार) आरक्षी भाई हैं| क्यों नहीं एक महीना के तनख्वाह मेंसे मात्र ३० रुपया सहयोग/दान स्वरूप अंशु को मदद करें ताकि राष्ट्र के गौरव को बचाया जा सके|

3 comments:

  1. पप्पू जी, आपने और आपकी पत्नी ने अंशु की जिस तरह सहायता की, इसके लिए आपकी जितनी सराहना की जाय, कम है. फेसबुक पर save singer, save anshumala नामक सामुदायिक पेज है, जिसके जरिये तमाम लोग अंशु की सहायता के लिए आगे आए. सभी लोगों का शुक्रिया.

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  2. पप्पू जी अंशुमालाक सहायताक लेल अहाँ आ अहाँक परिवारकेँ धनयवाद....

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  3. ‎"अंशुमाला " जैसी बेशकीमती धरोहर को बचाने के मुहिम में आगे आनेवाले सभी सज्जनों का शब्दों से आभार प्रकट करना संभव नहीं है ...शायद 'आभार ' शब्द भी अपने आप में छोटा पड़ जाये ...

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