Monday 9 January 2012

देश की आत्मा


यह घटना उस समय की है, जब फ़्रांस दुनिया का सबसे ताकतवर देश था| वहां के सम्राट नेपोलियन एक बार यात्रा पर निकले| चूँकि यह उनका निजी सफ़र था, इसलिए वे अपने एक महिला दोस्त के यहाँ ठहरे| महिला दोस्त ने नपोलियन को कई रमणीक जगह दिखाए|

एक दिन नपोलियन ने कहा, “मैडम! आप अपने देश की खूबसूरती तो दिखा रहीं हैं, लेकिन यहाँ की असल जिंदगी भी तो दिखाओ! हमें वहां ले चलो, जहाँ कमजोर वर्ग के लोग रहते हैं!”

महिला दोस्त नपोलियन को पुराना पेरिस शहर घुमाने ले गई| वहां भी भारत की तरह संकरी गलियों में लोग रहते थे| एक उबर-खाबड़ संकरी गली से दोनों जा रहे थे कि सामने से एक मजदूर सर पर बोझ लिए आ निकला| गली इतनी पतली थी कि सामने से निकलना मुश्किल था| महिला दोस्त को यह बुरा लगा| उच्च कुल, धन और पद का गर्व तो उसे था ही, सबसे बड़ी बात यह थी कि वह इस समय सबसे ताकतवर देश के सम्राट के साथ चल रही थी| उसे क्रोध आ गया|

वह गुस्से में बोली, “दिखाई नहीं देता! तू अंधा है क्या? फ़ौरन वापस लौटो!”

उस गली में इतनी भी जगह नहीं थी कि वह मजदूर बोझ सहित आसानी से वापस लौटता| बड़ी मुश्किल से वह किसी तरह घूमने का प्रयास कर ही रहा था कि तभी नपोलियन तेजी से उस मजदूर के पास गए और बोले, “भाई! रुक जाओ!” और अपने दोस्त महिला का हाथ पकड़कर उसे किनारे ले गए और मजदूर से बोले, “अब तुम आराम से निकला जाओ!”



मजदूर आगे निकल गया| अपनी झेंप मिटाने के लिए महिला दोस्त बोली, “सम्राट! एक अदने से मजदूर के लिए, हमलोगों का इस तरह रास्ता छोड़ना ठीक नहीं है| यहाँ के लोग क्या समझेंगे?”

नपोलियन बोले, “मैडम! मजदूर देश की आत्मा होते हैं| उनकी मेहनत से ही देश तरक्की करता है, उनका सम्मान करना तो हमारा कर्तव्य बनता है, उनका तिरस्कार देश की अपेक्षा के बराबर है|”

महिला की समझ में यह बात आ गई कि फ़्रांस की तरक्की का क्या राज़ है|

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