कई बार जीवन में कुछ ऐसा घटित
हो जाता है कि मन बार-बार पूछने लगता है, मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ? जो धृष्टता
मैंने की ही नहीं, उसका आरोप मुझे क्यों झेलना पड़ रहा है? इत्यादि – इत्यादि| जिसक
जीवन निष्पाप है, जो पाप मुक्त है, जिसकी वृत्तियाँ शुभ हैं, सात्विक हैं, उन पर
झूठा कलंक लगने से मानसिक आघात लगना स्वभाविक है| पर ध्यान से देखें तो जो स्थिति
आज हमारी है, वही स्थिति दुनिया में बहुत से लोगों की रह चुकी है| उनकी भी, जो
महान थे|
समाज में कुछ लोग उन्हें
मानने वाले थे, पर बहुत से उन्हें न मानने वाले भी थे, अपमानित करने वाले भी थे| पर
वे धैर्य और मन के संतुलन के साथ, सब सहन करते रहे| वे प्रतिकूल परिस्थितियों में
भी संतुलित रहे| ‘गीता’ में कहा गया है, “जो कामनाओं का त्याग करता है, आत्मतुष्ट
रहता है, दुःख के समय उद्वेगरहित, सुख के समय स्पृहारहित है, राग, भय, क्रोध,
जिसके वश में पूरी तरह है, शुभ-अशुभ व्यवहार से न प्रसन्न होता है, न दुखी, वही
सुखी रह सकता है|” निराधार दुःख सहने वाले, हम या आप, अकेले नहीं हैं| सीता पर व्यर्थ
कलंक लगा, उन्हें गर्भावस्था में वनवास की यातना झेलनी पड़ी| कलंक लगाने वाला मुर्ख
धोबी था, पर सीता पवित्र थीं| उन्हें विश्वास था, एक दिन सच साबित होगा कि वे
निष्कलंक हैं, वे स्थिरप्रज्ञ रहीं, एक दिन यही हुआ, जीत हुई पुण्य की, पाप हार
गया|
ईशा मसीह का चरित्र,
उद्देश्य और कार्य, अत्यंत उच्च थे, वे लोगों में सदाचार वृत्ति को फ़ैलाने का
कार्य कर रहे थे, किन्तु कुछ कुसंकारी लोगों को अच्छे उद्देश्य व अच्छे संस्कार,
अच्छे नहीं लगे| उन्होंने विरोध करना शुरू किया| ईशा मसीह को मृत्युदंड मिला| सूली
पर लटका दिया गया उन्हें| फिर भी ईशा मसीह ने कहा, “हे प्रभु! इन्हें क्षमा करना!
ये अज्ञानी हैं| इन्हें क्षमा करना, इन्हें पता नहीं है कि ये क्या कर रहे हैं?”
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