एक गाँव में एक किसान रहता
था| एक बार उसे कुछ पैसों की जरुरत पड़ी| उसने अपने पड़ोसी से उधार माँगा, तो पड़ोसी
ने कहा कि तुम्हारे पास इतना सुंदर घोड़ा है, उसे बेच दो, किसी के आगे हाथ क्यों
पसार रहे हो? किसान ने उसकी सलाह मान ली| अगले दिन वह अपने बेटे के साथ घोड़ा बेचने
निकला| पिता घोड़े पर बैठा और बेटा साथ-साथ चल रहा था|
रास्ते में कुछ लोग आ रहे
थे| उनमे से एक ने कहा – “देखो कैसा बाप है! खुद घोड़े पर सवार होकर मजे से जा रहा
है और बेटा पैदल चल रहा है|”
यह सुनकर किसान घोड़े से उतर
गया और बेटे को घोड़े पर बैठाकर स्वयं पैदल चलने लगा|
कुछ दूर जाने पर सामने से
कुछ महिलाएँ आ रहीं थीं| उनमे से एक ने कहा – “कैसा कलयुग आ गया है? बेटा घोड़े पर
और बूढा बाप पैदल?”
उसकी बात सुनकर, पिता बोले,
“शायद हम गलती कर रहे हैं| हम दोनों पैदल ही चलेंगे|” वे घोड़े की लगाम पकड़े, पैदल
चलने लगे| इतने में एक राहगीर बोला, “इन मूर्खों को देखो घोड़ा होने पर भी, दोनों
पैदल चल रहे हैं|”
उसकी बात सुनकर, अब दोनों
घोड़े पर सवार हो गए| कुछ दूर जाने पर भारी वजन के कारण घोड़ा खड़ा हो गया| इतने में
एक मुसाफिर ने कहा, “कितने निर्दयी हैं कि एक ही घोड़े पर दोनों सवार हैं|”
दोनों को पीछे-पीछे एक
महात्मा जी भी आ रहे थे, जो शुरू से सारा तमाशा देख रहे थे| उन्होंने किसान के पास
जा कर कहा, “भाई इस दुनिया में कोई भी सबको संतुष्ट नहीं कर सकता, इसलिए तुम्हें
जो करना है, अपने मन से करो! इसलिए कहा गया है कि सुनो सबकी, पर करो अपने मन की!”
यह सुनकर किसान अपने बेटे
से बोला, “बेटा महात्मा जी ठीक कह रहे हैं| चलो वापस गाँव चलते हैं, अब घोड़ा नहीं
बिकेगा| हम दोनों मेहनत करके धन का जुगाड़ करेंगे|”
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