Saturday 11 February 2012

क्रोध से दूर


बहुत पुरानी बात है| एक गाँव से दूर जंगल में एक महात्मा कुटिया बना कर रहते थे| उन्हें कभी क्रोध नहीं आता था| दया और क्षमाशीलता के कारण उनकी प्रशंसा दूर-दूर तक फैली हुई थी| एक दिन उस क्षेत्र के कुछ दुष्ट प्रवृति के लोगों ने आपस में सलाह की – कुछ ऐसा किया जाये जिससे महात्मा जी को क्रोध आ जाये| एक दिन वे लोग महात्मा जी के कुटिया पर गए|

उनमे से एक बोला, “महात्मा जी! ज़रा गांजा का चिलम तो लाइए!”
महात्मा जी बोले, “गांजा तो मैं पीता ही नहीं|”
“अच्छा! तो भांग की पुड़िया ही दे दो!”
“मैंने तो आज तक भांग की पुड़िया देखी ही नहीं|”
महात्मा जी के ऐसा कहने पर, उनमे से एक बोला, “अरे भाई! क्यों झूठ बोल रहे हो? मैं तुम्हे अच्छी तरह जानता हूँ| हम दोनों साथ में जेल में बंद थे| किसी बात पर हम दोनों में झगड़ा हो गया था और तुमने मुझे डंडे से पीटा था|”

इस तरह सब मिलकर न जाने कितनी फब्तियां कसते रहे| लेकिन महात्मा जी पर इसका कोई असर नहीं हुआ| उनकी बातें सुनकर वे मुस्कुरा रहे थे| अंत में एक बोला, “महात्मा जी ढोंगी हैं| चलो यहाँ से!”



तब महात्मा जी चुप्पी तोड़ते हुए बोले, “अरे भाई! तुम इतनी देर से कुछ गा रहे थे| थक गए होगे| एक भक्त गुड़ की डली दे गया है| लो इसे खाकर, पानी पी लो! तुम लोगों की थकान दूर हो जायेगी|”

महात्मा की बात सुनकर एक ने कहा, “महात्मा जी! हमने आपको इतना बुरा-भला कहा, तब भी आपको क्रोध क्यों नहीं आया?”

महात्मा बोले, “बेटा! जिसके पास जो माल होता है उसी को वह दिखाता है| यह तो ग्राहक की इच्छा है कि वह उसे ले या नहीं| तुम्हारे पास जो था, तुमने उसी को दिखाया| लेकिन मुझे तुम्हारा माल पसंद नहीं था, इसलिए मैंने नहीं लिया| अगर कोई गलती करे तो इसका मतलब यह नहीं कि सामने वाला भी गलती करे; ऐसा हुआ तो दोनों में फर्क ही क्या रह जाएगा?”

2 comments:

  1. क्रोध पर अगर काबू कर लिए तो समझिए कि आपने जग ही जीत लिया|

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