{१}
पुराने ज़माने की बात है| एक
ही मोहल्ले में एक वैश्या और एक सन्यासी आमने-सामने रहते थे| संयोग से दोनों की
मृत्यु एक ही दिन हुई| यमराज ने अपने दूतों से कहा कि सन्यासी को नर्क में और
वैश्या को स्वर्ग में भेज दिया जाए| यमदूतों को लगा कि अवश्य ही कोई गलती हुई है| अपनी
शंका के समाधान के लिए वे चित्रगुप्त जी के पास पहुंचे|
चित्रगुप्त जी ने उन्हें
समझाया, “इसमें कोई भी गलती नहीं हुई है| बिल्कुल सही निर्णय लिया गया है| सच्चाई
यह है कि जब प्रात:काल सन्यासी के घर से प्रार्थना और मंत्रौच्चारण की आवाज़ आती
थी, तो सड़क के उस पार वैश्या रोने लगती थी| वह सोंचती थी कि काश वह भी प्रार्थना
में शामिल हो पाती| कई बार वह सफ़ेद वस्त्र पहन कर घर से बाहर आ जाती और सन्यासी के
दीवार से कान सटाकर खड़ी हो जाती| लेकिन अंदर जाने का वह साहस नहीं कर पाती थी| वह
सोंचती थी कि पापी शरीर को वह कैसे अंदर ले जाए| जब कि सन्यासी का मामला बिल्कुल
अलग था| जब भी वैश्या के घर से गाने-बजाने की आवाज़ आती थी, सन्यासी व्याकुल हो
जाता था और स्वयं को कोसने लगता था कि उसने क्यों भगवा वस्त्र पहने| वह क्यों
सन्यासी बना... इसलिए व्यक्ति के चरित्र का आकलन उसके आतंरिक विचारों से होता है
ना कि उसके बहरी गतिविधियों से|”
{२}
बीहड़ जंगल में एक व्यक्ति भटक
गया था| भूख-प्यास के मारे उसका बुरा हाल हो गया था| उसके पास हीरे-जवाहरात की
पोटली थी| कुछ देर भटकने के बाद उसे एक वनवासी मिला| उसने वनवासी से कहा, “भाई तुम
मेरे हीरे-जवाहरात की पोटली ले लो और मुझे कुछ खाने को दे दो!”
वनवासी ने कहा, “इस बोझ का
क्या उपयोग? इसे यहीं कहीं फेंक दो! मुझे नहीं चाहिए| आप इसी जंगल में अपना खाना
ढूंढ लो और पास में ही एक नदी है, उससे पानी पी लेना!”
वह व्यक्ति वनवासी से बोला,
“मैं तुम्हे इतनी दौलत दे रहा हूँ, इससे तुम्हारी सात पीढियां आराम से खा सकती
हैं|”
वनवासी हँसते हुए बोला, “जो
धन आपकी भूख नहीं मिटा सका, वो मेरा और मेरे परिवार का क्या भला करेगा?”
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