Tuesday 21 February 2012

प्रेम और एकता


प्रकृति का प्रत्येक कृत्य – प्रेम और एकता पर आधारित है| यह स्वयं में अगाध प्रेम की नीधि है| इसलिए इसका प्रकोप अस्वभाविक है| प्रकृति स्वयं ‘प्रेम’ का पाठ सिखाती है| इसका क्रोध नकारात्मक भाव का परिणाम है| जीवन का स्वास्थ्य विज्ञान – प्रेम रसायन के अनुपात पर आधारित है| प्रेम के अतिरिक्त कोई अन्य विषय समर्थ नहीं हो सकता| इसे भलीभाँति समझने की आवश्यकता है और समझाने की भी| जीवन का हर प्रकोष्ठ – प्रेम का अद्भुत स्वरुप मात्र है| घृणा तो प्रेम का ऋणात्मक प्रभाव प्रदर्शित करता है| प्रेम के बीजारोपण में त्रुटि हो सकती है, प्रेम में नहीं| प्रेम का अनुशीलन, भौतिकता की सबसे बड़ी उपलब्धी है, जिसे प्राय: रेखांकित किया जाता है कि ‘प्रेम किया नहीं जाता, हो जाता है’| निश्चय ही यह गहरा भाव है| इसका अर्थ सुस्पष्ट है| कभी-कभी प्रेम बुद्धि को निरस्त करता प्रतीत होता है, लेकिन प्रेम अंधा नहीं होता| यह सहज प्रहरी है, पारस्परिक एकता का| एकता का श्रोत प्रेम है, इसलिए सभी प्राणी प्रेम की चेतनता से हर क्षण बिंधे होते हैं| अपना-पराया भेद ठहरता नहीं| समाज की एकता इसी अपनत्व भाव का संबल है|



दया, परोपकार, भाईचारा, उदारता, सहयोग, सेवा इत्यादि सभी प्रेम के विभिन्न आयाम हैं| सरलता और सज्जनता, इसके चरण हैं| प्रेम को अनेक बार जानने-बुझने की अनिवार्यता होती है| कितने आश्चर्य की बात है कि इस युग में प्राय: पुत्र अपनी माता के प्रेम की अनुभूति करने में भूल करते हैं, लेकिन इसका सही परिणाम आगे मिलता है| प्रेम की भाषा जीवन के लिए अत्यंत सहज है, भले ही पग-पग पर भूल होती रहे| मनुष्य भुलावे में रहना चाहता है, सच्चाई का सामना करने से बचता है| इसलिए आधुनिक काल में यह प्रसंग भर रह गया है, प्रेम नितोहित हो चला है| सबसे अधिक कोई बात कही या सुनी जाती है, तो वह प्रेम है| मानव इसकी नई-नई अवधारणा खोजता रहता है| प्रेम की गहराई सागर से कहीं अधिक और ऊंचाई आकाश से कहीं ज्यादा है|



इस प्रकार से प्रेम का संदेश प्रत्येक मनुष्य के हृदय तक पहुंचना चाहिए| इस सद्कर्म को प्रेरित किया जाये, सद्भाव प्रवाहित हो! एकता की बाधाएं स्वत: दूर हो जाएँगी|

2 comments:

  1. अच्छी प्रस्तुति है... कई चीजों का समावेश है|

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  2. A very contradictory post...

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