स्वामी विवेकानंद जी ने स्पष्ट रूप से कहा था समाज बदलने के लिए पहले व्यक्ति को बदलने की आवश्यकता है| व्यक्ति सुंदर होंगे तो समाज भी सुंदर होगा| आइंस्टीन ने भी इसी बात का समर्थन किया था| आज जरुरत है ‘शक्ति’ को ‘विवेक’ से जोड़ने की| ‘शक्ति’, ‘विवेक’ और ‘भक्ति’ को जबतक जोड़ा नहीं जायेगा, तब तक व्यक्ति नैतिकवान नहीं बन सकता| समाज सेवी अन्ना जी से आग्रह है; कानून बनाने के लिए जो हाय तौबा मच रही है; भूख हड़ताल की जो बातें उठ रही हैं उससे बेहतर होगा कि आप ‘व्यक्ति’ को ही बनाने का प्रयास करें| और इसके लिए आवश्यकता है सिर्फ नैतिक और अध्यात्मिक शिक्षा को सिलेबस में मूर्त रूप में होना| अन्ना जी, आप जानते ही है जर्मनी में हिटलर ने अपने शाषण से नाज़ियों का भावनात्मक शोषण किया; उन्हें यह कहा गया कि जर्मनी दुनिया पर राज़ करेगी| जर्मनी का विश्व पर अधिपत्य होगा| ऐसी ही भावनात्मक बात कह कर उसने जर्मनी पर शासन किया| हिटलर के कुर्सी पर बैठने के बाद फ़्रांस के प्रधान उनसे मिलने गए तो उन्होंने पूछा कि आखिर क्या कारण है कि जर्मनी के लोग आपके लिए जान देने के लिए तैयार रहते हैं| हिटलर ने उदाहरण स्वरूप एक सैनिक को आग में कूदने को कहा| सैनिक कूद गया| इसपर प्रधानमंत्री आश्चर्यचकित हो गए कि आखिर इसका रहस्य क्या है तो उन्होंने रात्रि का कार्यक्रम स्थगित कर यह जानना उचित समझा; और एक सैनिक को बुला कर पूछा, तो सैनिक ने कहा मै हिटलर के लिए जान नहीं देता हूँ बल्कि हिटलर के साथ एक पल भी जीने से अच्छा है मरना इसलिए हम मरना चाहते हैं| हिटलर के साथ जीने के बनिस्पत मौत अच्छा है| इसलिए अन्ना जी आप स्वस्थ रहकर नीतिवान-मनुष्य के निर्माण के लिए कार्यशाला चलायें ताकि आने वाले पीढ़ी में कभी किसी अन्ना को भूख हड़ताल की आवश्यकता न पड़े|
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