Tuesday 7 June 2011

हाय तौबा मचाया जा रहा है, रामदेव की गिरफ़्तारी पर|


हाय तौबा मचाया जा रहा है, रामदेव की गिरफ़्तारी पर| यह सही है की जिस परिस्थिति के कारण हो, तरीका गिरफ़्तारी का ठीक नहीं कहा जा सकता| परन्तु ये वादाखिलाफी लोग जो सिर्फ अपने सस्ती लोकप्रियता के लिए योजना बनाते हैं और भोली-भाली जनता को गुमराह करते हैं, क्या यह ठीक है – वह भी योग के माध्यम को सामने लाकर? जो आपका व्यापार है, उसे वहीँ तक रहने दें| आप या तो सेवा करें, या बाबा बनें या फिर पूरा व्यापारी और राजनीतिज्ञ बनें| यह जो दो चेहरे वाले लोग हैं, जिनका ना तो नीयत ठीक है ना ही नीत| ऐसे लोगों के साथ क्या किया जाये? सरकार को ऐसे चेहरे वालों से पहले ही बात नहीं करनी चाहिए, सरकार को देश में बहुत काम है| ऐसे लोगों कि परवाह ही नहीं करनी चाहिए|

जो लोग धरना, प्रदर्शन, भूख हड़ताल कर रहे हैं वे यह क्या भूल जाते हैं कि कैसे पुलिस की गोली से फारबिसगंज में पाँच मासूमों को मार दिया गया| उसके लिए हाय तौबा क्यों नहीं? उत्तर प्रदेश के मट्ठा गाँव में पुलिस ने जो नंगा तांडव किया, उसके लिए लड़ाई क्यों नहीं? छत्तीसगढ़ में जिस तरह से आदिवासियों को पूरा टारगेट बनाकर सरकार काम कर रही है, उसके लिए हाय तौबा क्यों नहीं? कृपा कर नेताजी लोग फारबिसगंज जाकर गरीबों की फ़रियाद सुन लें, इससे आपको शुकून मिले या ना मिले, जनता कि न्याय मिले या न मिले परन्तु आपकी राजनीति तो चमक ही जायेगी|

2 comments:

  1. kya swiss bank mein jama paisa wapas lana sarkar ke kam ki prathmikta mein nahin honi chaie?

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  2. क्या किसी बाबा को सच बोलने का अधिकार नहीं या फिर अगर कोई सच्ची बात राष्ट्रहित में कहे तो उसे दबा देना चाहिए| क्या ४ जून की काली रात में जमा लोग सभी किसी राजनितिक पार्टी के थे जो उन्हें बल पूर्वक दबा दिया गया??

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