Saturday 4 June 2011

एक गैम्बलर का बड़ा ब्लैकमेलिंग; सिर्फ यही सच है!



लाल वस्त्र पहनने मात्र से ही ना कोई सन्यासी हो सकता है, ना संत, ना साधू और ना ही कोई बाबा| साधू का अपना गुण होता है| जो स्वयं से ज्यादा दूसरों से प्रेम करता है| दूसरों के पीड़ा-कष्ट को अपना दुःख समझता है और तकलीफ-बीमारी में उसकी सेवा करता है; उससे प्यार करता है| जो  साधना के द्वारा स्वयं को साध लिया, वह परमात्मा के साथ एकाकार हो जाता है| इन सारे गुणों से युक्त इंसान को ही साधू कह सकते हैं|
सन्यासी – जिस व्यक्ति को दुनिया के किसी वस्तु का आकर्षण ना हो, ना जागतिक, ना भौतिक और ना ही किसी रंग-रूप का आकर्षण हो वही सन्यासी होता है| जागतिक वस्तुएं परिवर्तनशील होती हैं| संस्यासी पर सिर्फ परमात्मा का ही आकर्षण प्रभावी हो सकता है| जिस पर जागतिक और भौतिक आकर्षण होगा वो कभी सन्यासी नहीं हो सकता| सन्यासी या साधू कभी व्यापर नहीं करते| वर्त्तमान भारत देश में अनेकों व्यक्ति साधू सन्यासी बने बैठे हैं, ये सब जागतिक और भौतिक आकर्षण से प्रभावित हैं और पूर्ण रूप से व्यवसाय को समर्पित हैं| हमलोगों के आदि गूरू सदाशिव ने मनुष्य को जीवंत-स्वस्थ रहने के लिए योग-आसन दिये, आयुर्वेद कि दवाइयाँ दी| क्या उन्होंने कभी कुछ बदले में लिया? बड़े-बड़े ऋषि-मुनि ने सदाशिव के द्वारा दिए हुए आसन-योग का समाज में विस्तार किया| क्या उन्होंने कभी धन लिया? रामदेव जी हों या अन्य कोई ऐसा व्यक्ति जो खुद को सन्यासी या संत कहते हैं, उन्होंने योग-आसन को जन्म दिया है क्या? ये तो बस भारतवर्ष के सनातन पारंपरिक धरोहर को अपने व्यापार का साधन बना लिए हैं|

८वीं पास रामदेव जी, स्वयं को योगगुरु कहते हैं| ध्यान की बात करते हैं, कहाँ से ये ध्यान का बीजमंत्र सीखे हैं? ऋषि-मुनियों का दिया हुआ योग के अलावे इनको आता ही क्या है? तो फिर ये गुरु कैसे हो सकते हैं और इनमे कौन सा गुण है जिससे इनको सन्यासी या साधू कहा जाये? इन्होंने अपने को व्यापार, नाम, यश, प्रतिष्ठा के लिए समर्पित कर रक्खा है| इनके योग केम्प भाग लेने का शुल्क पाँच हज़ार से लेकर तीस हज़ार रुपये प्रति व्यक्ति है| अगर ये नारायण भाव से सेवा करते तो किसी भी प्रकार का धंधा करने की आवश्यकता नही होती| इनका सम्पूर्ण जीवन दुनियावी, भौतिक और राजनैतिक आकर्षणों से प्रभावित है| फिर ये सन्यासी कैसे हो सकते| मैंने अपने जीवन में कभी नहीं सुना या पढ़ा कि साधू-मुनि को पैसों की लालसा या भूख अथवा शारीरिक भूख रही हो लेकिन आज के साधू-मुनि इन्ही भूखों की पूर्ति हेतु अपना ध्यान लगते हैं|

बाबा रामदेव बिना किसी युक्तिसंगतता के बयान देते रहते हैं| चूँकि अन्ना हजारे साहब ने भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष करके काफी लोकप्रियता पा ली है, तो रामदेव जी के अंदर की आकांक्षा भी जाग उठा- यह कैसे हो सकता है? सबसे ज्यादा अनुयायी मेरे और नायक बने अन्ना हजारे? अन्ना हजारे जी ने बिना किसी राजनैतिक, आर्थिक और भौतिक महत्वकांक्षा के सही मुद्दों के लिए लड़ाई लड़ी| लेकिन रामदेव जी ने आपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा के लिए ही इस मुद्दे को चुना है ताकि इन्हें सस्ती लोकप्रियता मिल सके, और अपनी आकांक्षा और अहंकार को शांत कर सकें|

रामदेव जी ने बयान दिया कि पाँच सौ और एक हज़ार रुपये के नोट बंद करो, बिना कुछ सोचे-विचारे| ऐसे में तो आम आदमी का पूरा दिन बर्बाद हो जाएगा; पैसा गिनने में ही| पैसों को बोरे में भरकर ले जाना पड़ेगा| ब्रज़ील में एक बार छोटे नोट के कारण काफी संकट झेलना पड़ा था, बाद में उन्हें बड़े नोटों में तब्दील करना पड़ा| वही संकट भारत में रामदेव जी लाना चाहते हैं क्या? ताकि भारत के लोग बोरा और झोला लेकर खरीदारी करने या बच्चे के स्कूल का फीस भरने या अस्पताल के डॉक्टर का फीस भरने जाएँ! ये हमेशा अव्यवहारिक बातों के पक्ष में खड़े रहते हैं| इन्हें यदि बहुत गुस्सा है काले धन को लेकर कि काला धन भारत लाना चाहिए तो पहले इन्हें भारत के संविधान को समझाना चाहिए| उससे पहले इन्हें खुद को पाक-साफ़ करना चाहिए था| इनको जो अकूत संपत्ति दान के रूप में विदेशों से मिली है, उसे बेचकर भारत लायें और यहाँ के लोगों के हित में लगाएं| हमेशा बचकानी मांगें! कभी प्रज्ञा ठाकुर जैसे अपराधीनी को स्वाभिमानी कहते हैं तो कभी राजनीतिज्ञों और फिल्म कलाकारों को गाली देते हैं| इन्हें तो मानव निर्माण ओर समाज निर्माण पर जोर देना चाहिए था| मुझे तरस आता है उन लेखकों और वक्ताओं पर, जो ऐसे व्यवसाइयों को योगी, संत अथवा भारतीय संस्कृति के द्योतक कहते हैं| किसी लेखक ने लिखा कि एक सन्यासी भर्ष्टाचार के खिलाफ खुलकर बोल रहा है, उनका कोई राजनैतिक स्वार्थ नहीं है| मुझे ऐसे लोगों पर गुस्सा नहीं तरस आता है| ऐसे लोगों के कारण ही समाज, स्वयम्भू भगवान, बाबा, योगी लोगों को अपना जीवन समर्पित कर अन्धविश्वास की तरफ बढ़ रहा है| मुझे दुःख है कि सरकार ऐसे ढोंगी लोगों को महामंडित कर रहा है| चार-चार मंत्री हवाईअड्डे जाते हैं इनको लाने के लिए| तीन-तीन दिन तक मान-मनौअल चलता है| क्या समझेंगे दुनिया के लोग कि सही मायने में बाबा लोग ही सही हैं? ऐशो-आराम की जिंदगी जीने वाले और चार्टर्ड प्लेन की सेवा लेने वाले रामदेव जी स्वयं को गरीबों का हमदर्द कहते हैं, जो अन्ना हजारे से इर्ष्या करने लगे, ऐसे लोगों को समाज में कोई स्थान नहीं मिलना चाहिए| लेकिन सरकार इन्हें स्थान देकर स्थापित किये जा रही है| उत्तर-पूरब में पिछले दस सालों से आमरण अनशन पर बैठीं इरोम शर्मीला को बार-बार आत्महत्या के जुर्म में गिरफ्तार कर नाक से जबरदस्ती खाना खिलाया गया, उस ओर सरकार का ध्यान क्यों नहीं गया? क्योंकि उनके पास भीड़ नहीं है, पैसा नहीं है, वो झूठ नहीं बोलती हैं और उस पर मीडिया की असीम कृपा भी नहीं है| वो बेचारी और उसका मुद्दा, दोनों ही गौण पड़े हैं| इनके जुर्म के लिए कानून है, तो फिर रामदेव जी के लिए क्यों नहीं?

क्या सरकार देश के हर व्यक्ति के बात को मानेगी जिन मुदों के लिए वह आमरण अनशन पर बैठेगा?  क्या इस तरह की परंपरा सरकार और संविधान के लिए उचित है? क्या सरकार ऐसी प्रवृति को स्थापित करना चाहती है? आज जिस तरह से रामदेव जी अनशन पर बैठे हैं काले धन को लेकर, क्या यह उचित है? जो चीजें भारत सरकार के अपने अधिकार क्षेत्र में नहीं है और जो जानकारी सशर्त सरकार को मिली है, इस शर्त पर कि नाम सार्वजनिक नहीं करना है; ऐसी मांगों का सरकार क्या करेगी? क्या रामदेव जी की खोखली लोकप्रियता के आगे सरकार बेबस हो जायेगी? मैं महसूस करता हूँ कि रामदेव जी को अन्तर्राष्ट्रीय कूटनीति का कोई ज्ञान नहीं है| बात दरअसल यह है कि सत्ता प्राप्ति कि महत्वाकांक्षा ने रामदेव जी विवेकहीन कर दिया है| वो कन्फ्यूज्ड हैं कि उन्हें क्या करना चाहिए? इसलिए कभी वो राजनीतिक पार्टी लेकर आते हैं तो कभी प्रज्ञा ठाकुर जैसे वामपंथी का समर्थन करते हैं| कभी अन्ना हजारे को समर्थन तो कभी उनसे इर्ष्या करते हैं| देश में एम.एन.सी. के खिलाफ जहर उगलते हैं और विदेश पहुँचते ही उन्ही से समझौता करते हैं| आज स्वयं ये एक एमएनसी से समझौता कर रहे हैं| ज़रा गौर कीजिये, अगर भारत देश में सभी भ्रष्टाचारियों को मौत की सजा मुकर्रर हो जाये तो फ्रांस का गैलोटीन (मानव वध करने का मशीन)भी न काफी होगा|

इससे पहले कि बाबा रामदेव जी सरकार से सवाल पूछें; देश की जनता उनसे कुछ सवालों का जवाब चाहती है:

(क) १९९५ में जब ये अपनी संस्था शुरू किये थे तब बालकृष्ण के अलावे इनके साथ एक और साधू थे| वो कहा हैं? उनके साथ क्या हुआ?
(ख) पिछले १६ साल में शून्य से करोड़ों रुपये का अम्पायर कैसे खड़ा किए?
(ग)  पातंजलि योगविद्यापीठ का आजीवन कुलपति क्यों और कैसे बन गए? जबकि यह यूजीसी के नियम के खिलाफ है|
(घ)  एक योग गुरु जो एक सक्रीय सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में अपनी पहचान स्थापित करना चाहता है; उसे जेड प्लस सिक्यूरिटी की क्या आवश्यकता है?
(ङ)   उनकी दवाइयाँ और योग अमीरों को होने वाली बीमारियाँ जैसे मधुमेह, उच्च रक्तचाप आदि के लिए ही क्यों होती हैं? गरीबों को होने वाली बीमारियों जैसे डायरिया, टीवी आदि पर इनका ध्यान क्यों नहीं होता?
(च)  अपने ब्रांड के नाम बिस्कुट और हेल्थ पावडर तक बेचने की आवश्यकता क्यों पड़ी? आने वाले समय में ये टी.शर्ट, बेल्ट और चश्मे भी बेचेंगे?
(छ) अगर ये वाकई राष्ट्र का कल्याण करना चाहते हैं तो पाखंड, लूट और अन्धविश्वास का अड्डा, धर्म गुरूओं, स्वयम्भू भगवान के आश्रम और मठों, ट्रस्टों और मंदिरों में जमा अकूत धन को रष्ट्रीय संपत्ति घोषित करने की बात क्यों नहीं करते?
(ज) वह अपने समकालीन पाखंडी धर्म गुरूओं की पोल क्यों नहीं खोलते; जो अपनी चमत्कारी कारनामों से देश के नौजवानों को दिग्भ्रमित कर रहे हैं| उन स्वयम्भू भगवानों के खिलाफ राष्ट्रिय आन्दोलन क्यों नहीं करते?
(झ) आज जो धरना के लिए लाखों-लाख रूपया-पंडाल बनाने, एसी रूम तैयार करने, शौचालय तैयार करने, मीडिया के लिए विशेष व्यवस्था करने, चार्टर्ड प्लेन आदि की सेवा लेने में-पानी की तरह बहाया जा रहा है उसकी उपयोगिता गरीबों के लिए क्यों नहीं? आज़ादी के बाद आज तक कौन सा ऐसा धरना हुआ जिसमे लाखों-लाख रूपया खर्चा कीया गया हो और आदमी को भाड़े पर नियुक्त किया गया हो?
(ञ)  आज जब आप हवाईअड्डे पर उतारते हैं तो आपको लाइव टेलीकास्ट किया जाता है जबकि उसी वक्त देश के किसी कोने में पुलिसवाले, नक्सलियो के गोलियों का शिकार हो रहे होते हैं, कही किसी महिला की अस्मत लूटी जा रही होती है, तो कहीं कोई डॉक्टर किसी मरीज के साथ जानवरों जैसा सलूक कर रहा होता है| तो मीडिया की नज़र इन सबको छोड़कर अपने चहेते बाबा पर टिकी होती है, ऐसा क्यों?
(ट)   रामदेव जी को चाहिए कि अलग-अलग क्षेत्र के विशेषज्ञों का पैनल बनायें और जिन-जिन मुद्दों को लेकर वो अपनी सस्ती लोकप्रियता की शक्ति का उपयोग करने जा रहे हैं| उन मुद्दों से समबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञों की सुझाव से ही मांग रखें|

ईश्वर ने आपको लोकप्रियता दी है तो उसका सदुपयोग करें, राष्ट्रहित में; ना कि अपनी अतिमहत्वाकांक्षा की पूर्ती के लिए राष्ट्र की लोकतान्त्रिक व्यवस्था को दाँव पर लगाएं|

सरकार से मेरा सुझाव है कि रुढिवाद और कट्टरपंथ को बढ़ावा देने वाले धर्म गुरु, स्वयम्भू भगवान, धार्मिक ट्रस्ट, एनजीओ आदि को बढ़ावा न दें, उसे स्थापित न करें|

3 comments:

  1. you are right sir agar baba ko desh ki itni hi chinta hoti to baba apni akoot daulat ko desh ke hit me kyo nahi lagate


    Aur ye mediya wale aise babao ke pichhe ghumte he media wale apni responsibility ko bhul kr Kewal TRP badhane me lge he halta

    kal tak jo baba cycle se chalte the aaj unke pass charted plan he iske alawa baba ke pas sab sukh suvidha ke sadhan maujood he


    baba garibo ko kyo nahi yog sikhate kya inke yog se amir hi thik ho sakte he

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  2. you are right sir agar baba ko desh ki itni hi chinta hoti to baba apni akoot daulat ko desh ke hit me kyo nahi lagate


    Aur ye mediya wale aise babao ke pichhe ghumte he media wale apni responsibility ko bhul kr Kewal TRP badhane me lge he halta

    kal tak jo baba cycle se chalte the aaj unke pass charted plan he iske alawa baba ke pas sab sukh suvidha ke sadhan maujood he


    baba garibo ko kyo nahi yog sikhate kya inke yog se amir hi thik ho sakte he

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  3. you are right sir agar baba ko desh ki itni hi chinta hoti to baba apni akoot daulat ko desh ke hit me kyo nahi lagate


    Aur ye mediya wale aise babao ke pichhe ghumte he media wale apni responsibility ko bhul kr Kewal TRP badhane me lge he halta

    kal tak jo baba cycle se chalte the aaj unke pass charted plan he iske alawa baba ke pas sab sukh suvidha ke sadhan maujood he


    baba garibo ko kyo nahi yog sikhate kya inke yog se amir hi thik ho sakte he

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