Monday 20 June 2011

भारत को भगवान कि नहीं पुलिस की पूजा करनी होगी


कपिल शर्मा की घटना ने एक बार फिर पुलिस बर्बरता का ज्वलंत और भयावह सवाल देश और आवाम के बीच ला खड़ा किया है| वैसे अंग्रेजों के समय और आज़ादी के बाद हिंदुस्तान में आज तक बहुत बड़ा फर्क देखने को नहीं मिला| पहले हम विदेशी हुकूमत के ज़ुल्म से त्रस्त थे और वर्तमान में 
अपने ही देश के अपने लोगों के ज़ुल्म से त्रस्त हैं| हमारे सभ्य समाज के लोगों ने इस तरह की अवधारणा समाज में पैदा किया है कि पाकिस्तानी ज़ुल्म गलत है; तो क्या हिंदुस्तान में अपने लोगों के द्वारा होने वाला ज़ुल्म जायज है| अंग्रेज गलत थे हिन्दुस्तानी ज़ुल्म करने वाले सही! दो तरह की बातें मानव जाति या मानव उत्थान के लिए कैसे उचित ठहराया जा सकता है? ज़ुल्म तो आखिर ज़ुल्म ही है| ज़ुल्म दुनिया में कहीं हो या किसी कोने में हो उसे अलग नजरिया से या फर्क करके नहीं देख सकते| दुनिया में या राज्य में जबसे पुलिसिया संस्था बनी और राज्य के द्वारा विशेषाधिकार मिला उसी समय से उस विशेषाधिकार का दुरुपयोग होना शुरू हो गया| सत्ता/सरकार ऐसा मानती है कि कानून व्यवस्था के बगैर सही समाज की कल्पना नहीं की जा सकती लेकिन पुलिस संस्था अपने व्यवस्था या व्यावहारिक पक्ष को सामाजिक (आज तक) नहीं बना पाई| आपको यह समझना होगा कि इस संस्था को चलाने वाले जो व्यक्ति हैं हमारे ही शिक्षा व्यवस्था और सामाजिक व्यवस्था के उपज हैं| जब तक व्यक्ति के भीतर ईमानदारी, चारित्रिक, आपसी समझ की धारणा, वफादारी, सही योग्यता, ज्ञान और निस्वार्थ सेवा के भाव नहीं होगी तब तक कोई भी संस्था सुंदर नहीं हो सकती| संस्था या व्यवस्था को सुंदर होने के लिए संचालन करने वाले व्यक्ति को सम्पूर्ण जीवन में अच्छा होना होगा| तब ही विचार अच्छा हो पायेगा| देखा गया है विचार के कारण ही चरित्र का निर्माण होता है| आप ही बतायें कि बगैर नैतिक शिक्षा के चरित्र का निर्माण कैसे  संभव है| पुलिसिया व्यवस्था किताबी ज्ञान से संचालित होती है| ऐसा तो है नहीं की इस संस्था में सरकार ने महर्षि नारद, महात्मा बुद्ध जैसे संतों की भर्ती कर दी है; सरकार की कोई ऐसी पाठशाला भी नहीं है ना आगे कोई योजना है कि समाज बनाने या संस्था को चलाने के लिए सुंदर व्यक्ति का निर्माण हो| सरकार के सिलेबस में सिर्फ मानव-मशीन या ‘जानवर’ बनाने की व्यवस्था है| इसके बहार सरकार चिंतन करना अभी उचित नहीं समझती| सत्ता, पैसा, अभाव और सरकार की व्यवस्था के कारण ज्यादातर लोग अपराध को जीने का जरिया बना लेते हैं| नारद जी और बुद्ध ने तो रत्नाकर को क्रमशः बाल्मीकि और ऊँगलीमाल जैसे को संत बना दिया; फिर हमारी व्यवस्था ज़ुल्म करके अपराध के रास्ते पर जाने के लिए क्यों विवश करती है? एक बात को समझना जरुरी है कि ज़ुल्म का सबसे बड़ा कारण है मनचाहा धनोपार्जन और गलत तरीके से सम्मान, वैभव और सुख की आकांक्षा का होना|

देखा जा रहा है, धन और अहंकार सम्पूर्ण जीवन मूल्य के साथ मानवी मूल्य को भी नष्ट कर दिया है| फिर आप किस तरह की उम्मीद पुलिसिया व्यवस्था से रखना चाहते हैं| बिल्लीसे कहो कि तुम्हे चूहे की रखवाली बहुत अच्छे तरीके से करनी है; आपके विवेक पर छोड़ देता हूँ क्या इस जन्म में यह संभव है?
हमलोग २१ वीं सदी में प्रवेश कर चुके हैं| तकनिकी रूप से हमारा देश और दुनियां के लोग दक्ष हो चुके हैं| पूरी दुनिया में नकली मानवाधिकार की बात बढ़ा-चढ़ा कर की जा रही है| दुनिया के सभी लोकतान्त्रिक और कल्याणकारी देश मानवाधिकार जैसी गंभीर समस्या को पहले क़तार में रखती है| इसके बावजूद भी मानवाधिकार के खिलाफ, पुलिस चुनौती बनकर, पुरे दुनिया के लिए मुसीबत बनकर खड़ी है| दुनिया के लगभग सभी देशों-राज्यों के संवेदनशील नेता के लिए चिंता का विषय है कि कैसे इस पुलिसिया विभाग के अमानवीय पक्ष को खत्म किया जाये| यह एक त्रासद पूर्ण विकराल सत्य के रूप में समाज के सामने खड़ा है| पुलिस के इन बर्बर रूप को यदि खत्म नहीं किया जा सकता तो कम से कम, कम तो किया जा सकता है|

वैसे आज दिल्ली पुलिस ने जो इस जघन्य अपराध को अंजाम दिया है, यह कोई नयी घटना नहीं है| फर्क इतना है कि कपिल के साथ जो घटना घटी उसको कुछ अखबार वालों ने गंभीरता से लिया| थोड़े लोगों के बीच प्रतिक्रिया भी आई है| अन्य कई घटनों के तरह इसे भी प्रमुख टी.वी.-अखबारवाले ने ना तो गंभीरता दिखाई ना ही संवेदना| कॉर्पोरेट और अखबार हमेशा अपने नज़रिए से चलती है| आम आदमी के जीवन की कीमत इनलोगों के नज़र में बहुत तुच्छ रहा है| अगर आम आदमी के चलते प्रेस-कॉर्पोरेट कभी गंभीर भी दिखी है तो वह भी अपने फायदे के लिए| कपिल एक व्यक्ति हो सकता है परन्तु ‘घटना’ राष्ट्र, समाज और व्यवस्था के लिए काफी गंभीर चुनौती है|

दिल्ली के तिहार जेलों में १०-२०% बंदी को छोड़ दिया जाये तो ७०–८०% बंदी सामाजिक, राजनैतिक, पारिवारिक और सामान्य पारिस्थिवस जेल में बंद हैं अर्थात ये सब पेशेवर अपराधी नही हैं; लेकिन बहुत कम ही ऐसे बंदी होंगे जिसे मानसिक, शरीरिक, आर्थिक प्रताड़ना दिल्ली पुलिस के द्वारा नहीं दी गयी होती है| यदी सरकार जेल में प्रवेश के समय नए बंदी का पूरा विडियोग्राफी की व्यवस्था करती है तो इसकी सच्चाई दुनिया के सामने लायी जा सकती है| दुनियाँ तब समझ पायेगी कि पुलिसिया व्यवस्था न्याय के लिए बनी है या अन्याय के लिए| जो ज़ुल्म कपिल पर हुआ वह घोर अपराध है परन्तु इससे बड़े-बड़े जघन्य अपराध पुलिस के द्वारा छोटे-छोटे गाँव, कस्बे और शहरों में रोजमर्रा की बात है| पुलिस को लगता है कि राष्ट्रपति पुरस्कार या अन्य कोई पुरस्कार और पढ़े-लिखे समाज की वाहवाही, हासिल करने का यही एक मात्र रास्ता है | उन्हें तो बस झूठ और ज़ुल्म के नीव पर अख़बारों में जय-जयकार और खोखली सम्मान मिलनी चाहिए|

बाबा साहेब के संविधान से पुलिस का संविधान बिल्कुल अलग है| संविधान कहता है हजारों दोषी छूट जाएँ कोई बात नहीं परन्तु एक भी निर्दोष नहीं फँसना चाहिए, परन्तु पुलिस की मुखेर कानून कहती है कि एक भी ताकतवर, पैसे और पैरवीवाला, राजनीतिज्ञ, अपनी जाति वाला नहीं फँसना चाहिए चाहे जितना निर्दोष मारा जाये| पुलिसिया ज़ुल्म के सामने तोजो और हिटलर जैसा क्रूर शासक का भी इतिहास बहुत छोटा है| हमारे मीडिया भाई का विचार, मन, कर्म, चरित्र, ज्ञान, स्वाभिमान, वचन को खरीद लिया जाता है कॉर्पोरेट व्यवस्था के द्वारा| भला यह कैसे संभव है अच्छे व्यक्ति जानवर के तरह बिकेंगे भी और पशु के तरह उनका स्वभाव या क्रिया या प्रतिक्रिया ना हो| उन्हें तो वही दिखाना और लिखना है जिससे इनकी टी.आर.पी. और पाठक बढती है|  कॉर्पोरेट जाल के सामने  मीडिया भाई की क्या औकात है कि वह अपने मन की मर्ज़ी चला लें| आप जनता ही कहते हैं कि आर.एस.एस. के बगैर बी.जे.पी. कुछ नहीं, दस जनपथ के बगैर सरकार कुछ नहीं, बाल ठाकरे के बगैर मुंबई कुछ नहीं, जयललिता, करूणानिधि, लालूजी, नितीश जी के बगैर जब कोई पार्टी या सरकार कुछ नहीं तो फिर मालिक के बगैर नौकर की क्या बिसात! बेरोजगारी के युग में तुम नहीं तो कोई और सही| इसके बावजूद आपको लगता है कि किसी कस्बे-गाँव में हो रहे ज़ुल्म को सरकार, और ऐसी कानून व्यवस्था के खिलाफ कोई साहस दिखायेगा? आप ने गुजरात के दंगे में पुलिस का विभत्स चेहरा देखा ही| मुंबई में फर्जी मुठभेर का वीभत्स रूप देखा ही| दिल्ली में फर्जी मुठभेर को देखा ही| उत्तर प्रदेश के भट्ठा परसोल में नंगा नाच करते पुलिस को देखा ही, नहीं देखे होंगे तो सी.डी. पर जरुर देख लेंगे, समझ में आ जायेगा इनके भक्षक होने का चेहरा| मै तो चंद नाम मात्र आपके सामने रख रहा हूँ|

लाखों, हजारों नरसंहारी, फर्जी मुठभेर, फर्जी जातीय और मजहबी दंगा; इतना ही नहीं हमारे  देश का पुलिसिया इतिहास फर्जी मुकदमा और मुठभेर का लंबा फेहरिस्त पेश करता है (जो आप कही भी इन्टरनेट पर देख सकते हैं); ऐसे ही गुण परिपूर्ण है हिंदुस्तान की पुलिस| इस पुलिस की जितनी भी गुणगान की जाये, कम होगी| भारत के लोगों को एक दिन भगवान की पूजा छोड़ पुलिस की पूजा करनी होगी, जयदरोगा-जयदरोगा करना भारत के लोगों की विवशता हो जायेगी| वैसे भी इस देश में देखा गया है; भय की पूजा हमेशा से होती रही है| हमलोग सांप की पूजा करते ही हैं, रावण की भी पूजा करते ही हैं, ऐसे अनगिनत परंपरा है जो सिर्फ हमारे मासूम समाज में ही संभव है| इसी पुलिस के कारण पंजाब की समस्या विकराल हो गयी; अपराध और नक्सल दिनों-दिन बढाता जा रहा है तो फिर हमारी पढ़े-लिखे समाज के लोगों को सबसे ज्यादा भरोसा इसी पर क्यों है; इसीलिए, क्योंकि उनके मासूम बच्चों की हत्या नहीं हुई, उनके परिवार के सदस्य बलात्कार का शिकार नही हुये, मुठभेर में मरने वाले उनके लोग नहीं होते| फर्जी मुठभेर में मरने वाले लोग (तथाकथित) सभ्य समाज के नहीं होते या किसी राजनीतिज्ञों के घर के नहीं होते| किसी भी तरह का पुलिसिया ज़ुल्म रानीतिज्ञों, स्वयम्भू भगवान, संत, साधू या सरकार पर नहीं होती| भारत का पुलिसिया ज़ुल्म भी जात, धर्म, मजहब पूछकर ही दी जाती है| वाह रे सरकार! इतने सारे आपके पुलिस के पास गुणों के सर्टिफिकेट हैं तब न आज़ादी से आज तक इतने मेहरबान हैं आप उनपर! मेहरबानी होगी क्यों नहीं; सरकार के मंत्री या नौकरशाह या सरकार को चलाने वाली व्यवस्था वाले लोगों पर तो कभी ज़ुल्म हुआ नहीं| यह ईमानदार पुलिस तो बहुत ही ईमानदारी से सरकार, नेता और कॉर्पोरेट लोगों की जान जो बचाते आये हैं| सभी नेता के अवगुणों को ढकते जो हैं| अपने-अपने राज्य या देश की सरकार की चमचागिरी, दलाली करने में कोई कसर नहीं छोड़ती| नेता तो नेता, नेताइन, बाल-बच्चे सबके दरबारी!...फिर क्या दिक्कत, इस अहंकारी, बर्बर, जुल्मी, निर्मोही पुलिस को| याद रखिये, इस पुलिस का एक और गुण है; उन्हें गिरगिट की तरह रंग बदलते देर नहीं लगता है|

याद नहीं है तो फिर से याद ताज़ा कर लीजिए| १२ घंटे भी नहीं हुये थे इस पुलिस को जयललिता का नमक चखते ही करूणानिधि से ५ साल के खाए नमक को भूल गया और फिर क्या था शुरू हो गया नंगा तांडव करूणानिधि के साथ, यही कारनामा फिर करूणानिधि के बनते हुआ| मायावती के पुलिस के बारे में कुछ भी कहेंगे तो कम ही होगा| नरेंद्र मोदी जी ने तो गुजरात के पुलिस को आर.एस.एस. का शपथ पत्र पढ़ा दिया| वैसे यह भी कहा गया सबसे लंबी सत्ता चलाने वाली वामपंथी सरकार ने तो एक-एक सिपाही, कर्मचारी को मार्क्सवादी पार्टी का मेम्बर ही बना दिया| कितनी गाथा-कथा सुनेंगे इस कलयुगी रावन की? मुझे तो बहुत बात कहनी थी पर मन में भय लगता है कि यह सरकारी व्यवस्था और बड़ा बाहुबली ना घोषित कर दे|

वैसे आवाम के लिए ज़रूरत है भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद या सुभाष चंद्र बोस के राह को चुनने की| बगैर इस राह के कुछ भी संभव नहीं दिखता| वैसे आपके सामने हजारों कपिल की कहानी मैंने सुनाई, परन्तु उस ज़ुल्म को कौन रोकेगा? भ्रष्टाचार या इस तरह के ज़ुल्म में क्या फर्क है? चाहे भ्रष्टाचर का ज़ुल्म हो या शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, सामाजिक ज़ुल्म दोनों को अलग चश्मे से हमारी समाज या सिविल सोसाइटी के लोग कैसे देख सकते हैं? भ्रष्टाचारी के लिए तो लोकपाल बिल बनेगा पर इस जुल्म के लिए कब कानून बनेगा? कौन बनाएगा? कौन सी सरकार इतनी संवेदनशील होगी जिससे किसी व्यक्ति के गुप्तांग में पेट्रोल ना डाला जाये? किसी को हीटर पर नंगा ना बैठाया जाये? किसी को उल्टा लटकना ना पड़े? बेटे के नाम पर पिता के साथ अत्याचार, पति के नाम पर पत्नी के साथ अत्याचार? कब तक चलेगा?

बिहार के ज़ुल्म के बारे में भी सभ्य समाज को जानना चाहिए| लाखों कपिल पर प्रत्येक रोज ज़ुल्म होते हैं| नेपाल से भी बड़ा राज और कानून का डंका है यहाँ पर – ‘सैयां भइल कोतवाल तो अब डर काहे का’ की कहावत यदि कहीं चरितार्थ है तो वह है बिहार में| क्या मजाल है कोई मंत्री, जनप्रतिनिधि या नेता थानेदार के सामने कुछ कह ले या बैठ जाये|

ज़ुल्म का सबसे बड़ा इन्तहा गुजरात में देखने को मिला और दूसरा अपने सहोदर भाई के ही राह पर चलने वाले हैं- बिहार में| बिहार के थाने में गुप्तांग और हीटर पर नंगा बैठाने की बात तो दिनचर्या है| मानो जैसे हम पानी पीते हैं वैसे ही उन्हें पेट्रोल पिलाया जाता है| यह बहुसंख्यक पीड़ित समाज, चीख-चीख कर न्याय की भीख मांग रही है- बचाईये इस ज़ुल्म से, बचाईये इस काले कानून से| कोई तो फरियादी सुनने आये|

मैंने जो कुछ देखे हैं बेचारे गरीब की दशा, अपने आप पर रोना आता है| लगता है ऐसे कमज़ोर कायर समाज का हिस्सा बनकर जीने से ज्यादा अच्छा है कायर के तरह मर जाना! सबके जुबान से एक ही आवाज़ आती है – घोर ज़ुल्म हुआ, दंड मिलना चाहिए, कानून बनाना चाहिए, किसी को भगत सिंह बनना चाहिए| कौन बनाएगा कानून जब सरकार जानती है कि मीडिया और धनपशु ऐसे ज़ुल्म के साथ हों, कौन बचायेगा आपको जब जनप्रतिनिधि को खुद को ही बचने की चिंता हो| सारे नेता जब काले धन के जुगाड़ में हों, शीशे के घर में बैठकर कौन चलाएगा दूसरे के घर पर पत्थर? आप कहते हैं की भगत सिंह बने पर मेरे घर में नहीं पड़ोस के घर में; पडोसी कहता है मेरे घर में नहीं बगल के घर में| तो क्या कभी भूल से भी भगत पैदा लेगा? एक बात जरूर अपने भीतर बैठा लीजियेगा, अभी आग पड़ोस के घर में लगी है, वहीँ पर इसे बुझाने की कोशिश करें अन्यथा इस आग की लपटें आपके घर को भी जला ले जाएगी|

1 comment:

  1. bahut hi krantikari vichr hai. mujhe vishwas hai aise vichr se hi kranti ayegi.

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