Thursday 9 June 2011

जुल्म के इतिहास में एक और नंदीग्राम - फारबिसगंज !

दिल्ली के रामलीला मैदान में हुए लोंगो के ऊपर पुलिस ज्यादती पर पुरे विपक्षी दल ,मीडिया ,मानवाधिकार आयोग ,यहाँ तक कि सर्वोच्य न्यायालय ने भी त्वरित और तीखी प्रतिक्रिया देते हुआ संज्ञान ली | परन्तु देस के सुदूर इलाके फारबिसगंज जिला अररिया जो कि पटना से ५०० कि० मी० दूर अंतराष्ट्रीय सीमा नेपाल के पास अवस्थित है , वहाँ सरकार , पूंजीपतियों और प्रशासन के मिली भगत से सिर्फ किसी व्यक्ति विशेष को लाभ पहुचाने हेतु प्रायोजित तरीके से , दर्जनों मासूम बेबाक बच्चों ,बूढों , नवजात शिशु और उनकी माँ को बड़े ही बेरहमी से गोली चलाकर मौत के घाट उतर दिया गया |जबकि सभी मृतक अत्यंत ही गरीब अंसारी मुसलमान परिवार से आते हैं | उनलोगों का कहना है कि सरकार ने जो 5 लोंगों के मरने कि बात कही है बिलकुल गलत है |
जबकि पुलिस कि गोली से दर्जनों लोगों कि हत्या कर लाश गायब कर  दी गयी | इतना ही नही, अंसारी समाज और मृतक परिवार के लोगों का कहना है कि ,एक महिला ,जो कि गर्भावस्था में थी , पुलिस ने जूते से कुचल कर पेट में ही उसके बच्चे को मार दिया और उस महिला के सिर्फ चेहरे पर सात - सात गोली मारी गयी | इतने से भी वहाँ के हब्सी पुलिस जवानो को ठंढक नही पहुंची और एक नवजवान  को दो पुलिस वालों ने लातों से कुचल कर मार दिया | क्या यह घटना गुजरात , नंदीग्राम , सिंगुर और उतरप्रदेश के भट्टा - पारसोल के याद को ताजा नही करती ? क्या कारन है कि जहाँ रामलीला मैदान में न तो कोई हत्या हुई , न कोई घायल हुआ , वहाँ मानवाधिकार  आयोग ,न्यायालयसभी ने संज्ञान लिया , किसी राजनितिक पार्टी ने हाय तौबा नहीं मचाई |
कुछ पार्टी के नेताओं ने सिर्फ अपनी राजनीति के लिये औपचारिकता निभाई | न जाने मीडिया के भाई लोग इस तीसरे नंदीग्राम फारबिसगंज कि घटना का सच कब सामने लायेंगे |

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