Saturday 18 June 2011

नैतिक मूल्य के बगैर मानव जीवन का कोई औचित्य नहीं



(क) छत्रपति शिवाजी का राज्याभिषेक हो रहा था, दरबार में उपस्थित सभी राजा-महाराजा, हीरे-जवाहरात, स्वर्ण मुद्राओं से सजी थालियाँ इत्यादि छत्रपति के सम्मान में भेंट स्वरूप समर्पित कर रहे थे| तभी किसी राजा ने उर्वशी से भी अत्यधिक मोहक, एक दिव्य सुन्दरी को राजा के समक्ष प्रस्तुत किया| शिवाजी ने कहा, “उठाओ तो पर्दा, देखें तो परदे के भीतर क्या है?” पर्दा उठा तो शिवाजी आश्चर्य और विश्मय से भर गए| “इतनी खूबसूरत, मानो स्वर्ग से उतर कर आई हो! काश, यह मेरी माँ होती तो, मैं, कितना सुंदर होता!”
    सभी दरबारी स्तब्ध रह गए| भारत इसी सांस्कृतिक एवं अध्यात्मिक धरोहर का जीता-जगता मिसाल रहा है| परन्तु वर्तमान के नेता लोग तो लपक पड़ते उस सुंदरी पर! मंत्रियों के बीच मारा-मारी हो जाती| दूसरे दिन अख़बारों के मुख्य पृष्ठ पर इस घटना की खबर छपती और पाठकों के लिए स्वादिष्ट व्यंजन बन जाता| इसके पीछे मात्र उपभोक्तावादी मानसिकता है| मारा-मारी करने वाले इन मसीहों से किसी की बहु-बेटी की इज्जत बचाने की जुगाड करना, उसी मकसद से सर पर जीत का सेहरा  बांधना और मंत्री तथा मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा देना, हमारी मूर्खता और नादानी नहीं तो और क्या है? बिल्ली से चूहे की रखवाली कहाँ तक न्यायोचित है?

(ख) इतिहास साक्षी है, कर्ण दुनिया का सबसे बड़ा नैतिकवान व्यक्ति था, परन्तु धर्म के विजयपथ पर चलने के कारण पांडवों की नैतिकता चलयमान थी| अतः कर्ण को पराजित होना पड़ा| कृष्ण और पैगम्बर को अपने ही सगे-सम्बन्धियों से लड़ना पड़ा था| ईसा मसीह और ध्रुव के साथ भी वैसा ही हुआ| जिस तरह समाज में भगत और आजाद की संख्या अधिक नहीं है, उसी तरह घटना छोटा या बड़ा नहीं होता है|

(ग)  एक शिक्षक ने एक बच्चा से सवाल किया, “८० रूपये किलो की चाय, १० किलो और १०० रुपये किलो की चाय, १० किलो; और दोनों को मिलाकर १२० रूपया प्रति किलो के दर से चाय बेची गयी तो बताओ कितना मुनाफा हुआ?” भारत का छात्र १० मिनट से जवाब तलाश रहा था| परन्तु जापान के छात्र ने २ सेकंड में कहा, “इसमें मिलवाट है, चाय विक्रेता को तुरंत जेल भेजा जाना चाहिए|” प्रसंग छोटा है, परन्तु नैतिकता का सीख देती है|

(घ)  जापान जैसा भौतिक समृद्धि से परिपूर्ण देश भी शिक्षा में नैतिकता का संपोषक है| किसी कारणवस जापान में ट्रेन ४ मिनट लेट हो गयी तो सरकार ने वहाँ के यात्रियों के पैसे लौटा दिए| ट्रेन के ड्राईवर ने नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे दिया और आत्महत्या पर उतारू उस ड्राईवर को जनता ने बचाया| जब तक ऐसी शिक्षा का समावेश हमारे देश और बिहार में नहीं होगा, नैतिकता की भावना नहीं पनपेगी तो देश का विकास संभव नहीं है| बिहार और अन्य कई राज्यों में ट्रेन प्रवेश करते ही देर हो जाती है| नेता या बड़े लोगों के द्वारा वैक्यूम काट दी जाती है| ट्रेन से घास, दूध, साईकिल या सब्जी लादना-उतरना हो, तो ट्रेन रोक दी जाती है| परवाह नहीं किया जाता है कि ट्रेन में कोई बीमार भी जा रहा है या किसी छात्र को प्रतियोगिता परीक्षा में भी भाग लेना है, इस अनैतिकता को आप क्या कहेंगे?

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