Thursday 16 June 2011

मनुष्य का मार्ग



मनुष्य देश-काल-पात्र के नियम के अनुसार चलते हैं, चलना पड़ता है| हर सीमित सत्ता को देश-काल-पात्र के अनुसार चलना पड़ता है| चलना फ़र्ज़ भी है|

परमपुरुष देश-काल-पात्र के द्वारा बाधित नहीं है| उनके पास ‘यह शुभ क्षण है’, ‘यह अशुभ क्षण है’ ऐसा कोई विचार नहीं है| हर हाल में वे जीव के साथ रहते हैं| हर हालत में जीव से उनका संपर्क रहता है| इसलिए कहा गया है कि वे तिथि नहीं मानते हैं| मनुष्य जब परमपुरुष का एकनिष्ठ होकर नामगान करते हैं, उसी वक्त परमपुरुष काल का विचार नहीं करके, पहुँच जाते हैं| जब जीव मुसीबत में रहते हैं, उसी वक्त परमपुरुष को पा जाते हैं| इसलिए ऐसा सोचना मनुष्य के लिए भी अनुचित है कि साधना के लिए अभी उचित समय नहीं है| परमपुरुष की साधना के काल-अकाल का विचार नहीं है| मनुष्य परमात्मा के साथ है, परमात्मा मनुष्य के साथ है, इसलिए हर हालत में मनुष्य निश्चिन्त रहे|

सृष्टि का जब सूत्रपात हुआ था उस वक्त भी परमपुरुष जीव के साथ थे, अभी भी हैं, और अनंतकाल तक साथ रहेंगे| इसलिए कभी भी जीवों के मन में घबड़ाहट या चिंता नहीं होनी चाहिए| वे जगत की सेवा करें, और परमपुरुष की साधना करें, यही है मनुष्य का जीवन| अन्य जीवों से मनुष्य के जीवन का यही पार्थक्य है कि मनुष्य आनंद के लिए काम करते हैं और अन्य जीव सुख के लिए| सुख और आनंद दोनों एक चीज नहीं हैं| एक कुत्ता हड्डी चबाता रहेगा, उसको उसी में सुख मिलेगा, किन्तु मनुष्य हड्डी चबाने से पहले सोचेगा कि चबाना उचित है या नही, यह खाद्य है या नहीं| वे विचार करके काम करेंगे, क्योंकि, मनुष्य का लक्ष्य है आनंन्द की प्राप्ति, सुख की प्राप्ति नहीं| अगर मनुष्य सुख के पीछे दौड़ना शुरू कर दिया तो उनकी धीरे घीरे पशु की दशा हो जाएगी| इसलिए मनुष्य का मार्ग सुख का मार्ग नहीं है - आनंद का मार्ग है| पशु का मार्ग सुख का मार्ग है और मनुष्य का मार्ग है आनन्द का मार्ग|


भगवान श्री आनंदमूर्ति जी का प्रवचन

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